रविवार, 26 जुलाई 2009

साहस

नेपोलियन अपनी सेना आल्प्स पर्वत से होकर ले जाना चाहता था और रास्ता खोजने स्वयं पहाड़ की तलहटी में आया था वहां एक बुढ़िया रहती थी। नेपोलियन उससे रास्ते की जानकारी लेने के बात करने लगा तो वह बोली, '' मूर्ख तेरे जैसे कितने ही इस दुर्गम पहाड़ पर चढ़ने के प्रयास में जान गंवा बैठे हैं बेमौत मरने से कोई लाभ नहीं वापस लौट जा |''
नेपोलियन ने मुस्कराते हुए कहा, ''माताजी , अच्छा हुआ, आप ने मुझे कठिनाईयों से आगाह कर दिया इससे मेरा हौसला बढ़ा है और अधिक समझदारी से काम लेने की सीख मिली है आप की कृपा से मैं यह पहाड़ एक दिन अवश्य पार करके रहूंगा |'' यह सुनकर बुढ़िया दंग रह गई खतरों को इस तरह चुनौती देने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता उसने आशीर्वाद दिया और कहा, ''साहसी व्यक्ति के लिए संसार में कोई काम असंभव नहीं होता |''
नेपोलियन आल्पस पर्वत पार करने में सफल हो गया पर वह बुढ़िया ने इस संवाद को समय-समय पर याद करता रहा-''साहसी व्यक्ति के लिए संसार में कोई काम असंभव नहीं होता |''

शनिवार, 18 जुलाई 2009

अहसास

हजरत अली के पास एक नौकर था । एक दिन वह किसी बात पर अपने मालिक से नाराज हो गया और नौकरी छोड़ कर चला गया । कुछ दिनों बाद हजरत अली जब मस्जिद में नमाज पढ़ने गए तो नौकर भी चुपचाप उनके पीछे-पीछे वहां पहुंचा और तलवार निकाल कर उन पर वार कर दिया । हजरत अली को काफी चोट आई । कुछ लोगों ने उन्हें उठाया और उपचार करने लगे तथा कुछ लोगों ने दौड़ कर उस नौकर को पकड़ लिया | वे उसे हजरत अली के सामने ले आए । इतने में हजरत अली को प्यास लगी । उन्होंने पानी मांगा, लोग दौड़े गए और शरबत ले आए। गिलास में जब शरबत हजरत अली के सामने पेश किया गया तो उन्होंने नौकर की ओर इशारा करके कहा- ''मुझे नहीं, पहले इसे पिलाओ, देखते नहीं, कितना थक गया है, कितनी बुरी तरह हांफ रहा है ।''
लोगों ने नौकर की ओर गिलास बढ़ाया । उसकी आंखों से आंसू बहने लगे । हजरत अली ने बड़े प्यार से कहा- ''भाई, रोओ मत । गलती हम सब से हो जाती है। शरबत पी लो ।''
नौकर उनके पैरों पर गिर पड़ा और अपने किए की माफी मांगने लगा । हजरत अली ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''मेरे प्यारे भाई, जो अपनी गलती को जान लेता है और भविष्य में गलती न करने का फैसला कर लेता है, वह जिंदगी में बहुत उंचा उठ जाता है ।

शनिवार, 11 जुलाई 2009

शिष्टाचार

यह घटना उस समय की है जब ईश्वरचन्द्र विद्यासागर संस्कृत कालेज के आचार्य थे । एक बार उन्हें किसी काम से प्रेसीडेंसी कालिज के अंग्रेज आचार्य कैर से मिलने जाना पड़ा । कैर उस समय जूते पहने मेज पर पांव फैलाए बैठे थे । खड़े होकर स्वागत करने की तो बात दूर रही, वह ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को देख कर भी उसी तरह बैठे रहे । ईश्वरचंद्र को यह अच्छा नहीं लगा, पर वह चुपचाप इस अपमान को पी गए ।
कुछ दिन बाद किसी काम से कैर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां आए। उन्हें देखकर ईश्वरचंद्र ने चप्पलों समेत अपने पांव उठा कर मेज पर फैला लिए और आराम से कुर्सी पर बैठे रहे । उन्होंने कैर से बैठने को भी नहीं कहा । कैरे ने उनके इस दुर्व्यवहार की शिकायत लिखित रूप से शिक्षा परिषद् के सचिव डा. मुआट से की । डा. मुआट ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को भलीभांति जानते थे, फिर भी एक दिन वह कैर को लेकर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां गए और बातचीत में कैर की शिकायत का जिक्र किया । इस पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कहा, ''हम भारतीय लोग अंग्रेजों से ही यूरोपीय शिष्टाचार सीखते हैं । जब मैं इनसे मिलने गया था तो यह इसी तरह बैठे रहे थे । इस से मैंने समझा कि यूरोपीय शिष्टाचार यही है, इसलिए मैंने इनका अनुशरण किया । इन्हें नाराज करने का मेरा इरादा बिल्कुल भी नहीं था । उनकी इस बात को सुनकर डा॰ मुआट और कैर को शार्मिंदा होना पड़ा ।

रविवार, 5 जुलाई 2009

झूठा अभिमान

आल्सिबाइडिस एक संपन्न जमींदार था उसे अपनी संपत्ति और जागीर पर बड़ा गर्व था एक दिन उसने सुकरात के पास जा कर अपने ऐश्वर्य का वर्णन करना आरंभ कर दिया सुकरात चुपचाप उस की बात सुनता रहा थोड़ी देर बाद उसने पृथ्वी का एक नक्शा मंगवाया वह नक्शा फैला कर जमींदार से बोला,'' इस में अपना यूनान देश कहां हैं ?'' यह रहा यूनान| जमींदार ने नक्शे पर एक स्थान पर उंगली रखते हुए कहा। और अपना ऐटिका प्रांत कहां है ? सुकरात ने पूछा जमींदार अपने छोटे से प्रांत को बड़ी कठिनाई से ढूंढ सका सुकरात ने उस से फिर पूछा-इसमें आपकी जागीर कहां है?नक्शे में इतनी छोटी जागीर कैसे दिखाई जा सकती है ? जमींदार बोला इस पर सुकरात ने कहा, भाई, जिस भूमि के लिए इतने बड़े नक्शे में एक बिंदु भी नहीं रखा जा सकता, उस थोड़ी सी भूमि पर तुम गर्व करते हो ? इस पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारी भूमि और तुम कहां हो, कितने बड़े हो ? जरा यह सोचो | फिर यह गर्व किस बात पर ?