रविवार, 30 मई 2010

आत्मविश्वास

नील नदी के युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के सेनाध्यक्ष नेलसन थे । जंगी बेड़े के अनेक अधिकारियों की आंखों में निराशा व भय था । पर नेलसन अद्भुत आत्म विश्वास से भरे थे । सहसा बेड़े के कप्तान ने कहा, ''अगर हमारी जीत हो जाए तो दुनिया दंग रह जाएगी ।'' नेलसन ने गंभीर और दृढ़ स्वर में कहा,'' प्तान, हम जीतेंगे और अवश्य जीतेंगे ।'' सेनापति के इन शब्दों ने मंत्र-सा प्रभाव दिखाया और वे एक नए विश्वास, नए साहस से भर गए । फलस्वरूप उन की जीत हो गई ।

सोमवार, 24 मई 2010

मूल्यवान

इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया ने एक बार विएना के प्रसिद्ध पियानोवादक को अपने महल में बुलाया । उसका मधुर संगीत सुनकर महारानी खुश हो गई । आखिर में उन्होंने आस्ट्रिया का राष्ट्रगीत सुनने की इच्छा जाहिर की । राष्ट्रगीत पूरा होने तक महारानी खड़ी रही । पियानोवादक की खुशी की सीमा न रही । उसने अपने मित्रों से कहा, ''महारानी ने पुरस्कार के तौर पर मुझे हीरे का जड़ाउं हार दिया । लेकिन मेरे राष्ट्रगीत के सम्मान में उनका खड़ा होना मेरे हार से मूल्यवान था।''

शुक्रवार, 21 मई 2010

समय की कीमत

प्रसिद्ध चिकित्सक अमरनाथ झा समय के बड़े पाबंद माने जाते थे। एक बार वह पटना गए हुए थे। वहां साहित्यकारों की एक गोष्ठी आयोजित की गई थी । जिस में डॉक्टर झा को मुख्य अतिथि बनाया गया था । उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और आयोजकों से कहा कि वे निर्धारित समय यानी 6 बजे से आधा घंटा पहले किसी को उनके निवास स्थान पर भेज दें । डॉक्टर झा 5.30 बजे तैयार हो कर बैठ गए । लेकिन उनको लेने आने वाले सज्जन 6 बजे के बाद आए। आते ही वह क्षमा मांगने लगे । डॉक्टर झा ने गोष्ठी में जाने से इन्कार कर दिया । सज्जन बहुत गिड़गिड़ाए कि आपके बिना हमारी गोष्ठी असफल हो जाएगी । उन्होंने नम्रता से जवाब दिया,''आपकी गोष्ठी असफल होने का मुझे खेद है । पर देर से जाकर मुझे लेट लतीफ कहलाना स्वीकार नहीं है।

बुधवार, 19 मई 2010

भोजन का मूल्य

स्वतन्त्रता से पहले सौराष्ट्र में ढसा राज्य के राजा थे गोपालदास देसाई । वह जवानी के दिनों में बड़े ठाट-बाट से रहते थे । एक बार वह कहीं गए । स्टेशन पर उन्हें कोई कुली नजर नहीं आया । इतने में एक किसान सा लगने वाला आदमी उनके पास और सामान ले जाकर गाड़ी पर रख दिया । गोपालदास ने उसे चवन्नी दी तो उसने लेने से इन्कार कर दिया ।
उन्होंने कुछ सोच कर कहा, ''एक समय का भोजन कितने पैसों में मिलेगा?'' उसने जवाब दिया,''तब तो मेरी मजदूरी दो अरब इकन्नियां हैं क्योंकि मुझे 40 करोड़ मनुष्यों के भोजन का इंतजाम करना है ।'' यह कहकर वह चला गया । उसी दिन शाम को गोपालदास घूमते हुए एक विशाल सभा में जा पहुंचे, उन्होंने देखा कि वही आदमी जनता को संबोधित कर रहा है । वह और कोई नहीं गांधी जी थे । गोपालदास ने उसी समय राजगद्दी को त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े ।

सोमवार, 17 मई 2010

कर्णधार

एक बार पंडित नेहरू से मिलने के लिए एक देश का राजदूत, एक सैनिक और एक नवयुवक आया । उन्होंने सचिव से कहा कि वह पहले नवयुवक, फिर सैनिक और सब से आखिर में राजदूत को भेजें। जब वे तीनों मिलकर चले गए । तब सचिव ने पंडित नेहरू से पूछा, ''आपने राजदूत और सैनिक से पहले नवयुवक को क्यों बुलाया, जबकि नवयुवक से पहले उन दोनों ने अनुमति मांगी थी ?'' नेहरू जी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, नवयुवक ही देश के कर्णधार हैं। वही बड़े होकर सैनिक बनेंगे और वही युवक विदेशों से संबंध बनाएंगे । चूंकि दो देशों के बीच संबंध उनके नागरिकों की भावनाओं के आधार पर बनते हैं । इसलिए मैंने युवक को राजदूत और सैनिक से पहले बुलाया ।''

रविवार, 16 मई 2010

ब्लॉग संचार

हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रचार और प्रसार के लिए हम सभी के द्वारा प्रयासों की आवश्यकता है। क्योंकि विश्व स्तर पर तथा ब्लॉग जगत में हिन्दी का स्थान अभी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। एतदर्थ हिन्दी ब्लॉग टिप्स के सुझाव के अनुसार एक ब्लॉग एग्रीगेटर बनाया है ‘‘ब्लॉग संचार’’ आपसे अनुरोध है कि अपने ब्लॉग को यहां शामिल करें और दूसरों को भी शामिल करने के लिए कहें।

शुक्रवार, 14 मई 2010

सिफारिश

इंग्लैण्ड के एक मंत्री के निवास पर एक सिपाही रात को गश्त लगा रहा था मंत्री की पत्नी को उसके जूतों की आवाज के कारण नींद नहीं रही थी आखिर, उन्होंने अपने पति से इसकी शिकायत की मंत्री ने सिपाही को बुला कर कहा, ''कोठी के सामने गश्त मत लगाओ, नींद में बाधा पड़ती है '' सिपाही ने जवाब दिया, ''लेकिन मेरे अफसर ने मुझे यही आज्ञा दी है ''
''क्या तुम मेरी भी नहीं मानोगे ?'' सिपाही ने इन्कार कर दिया अगले दिन सिपाही ने यह सोच कर अपना सामान बांध लिया कि अब उसकी नौकरी नहीं रहेगी लेकिन तब उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उसके अफसर ने कर सूचना दी कि मंत्री महोदय ने उसकी तरक्की के लिए सिफारिश की है

मंगलवार, 11 मई 2010

अभिमान

जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तो उसी दौरान उसकी मुलाकात एक साधु से हुई थी । जब सिकंदर उसके पास पहुंचा तो वह धूप का आनंद ले रहा था । साधु की बातचीत से प्रभावित हो कर सिकंदर ने पूछा,''महाराज, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?'' उसने कहा,''तुरंत यहां से चले जाओ ।''
सिकंदर को ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । वह क्रोधित होकर बोला, ''क्या आप जानते हैं कि मैं वह सिकंदर हूं, जो कुछ भी कर सकता है।'' साधु ने शांत भाव से कहा,''यदि ऐसा है तो मुझे मार कर फिर से जिंदा कर दो।'' साधु की यह बात सुनकर सिकंदर का सिर शर्म से झुक गया ।

सोमवार, 3 मई 2010

शब्दों का असर

बगदाद के खलीफा का एक गुलाम था हाशम । वह बहुत बदसूरत था । सब गुलाम उसका मजाक उड़ाया करते थे । एक बार खलीफा अपने बहुत सारे गुलामों के साथ बग्घी में जा रहे थे । एक जगह कीचड़ में उनका घोड़ा फिसल गया । खलीफा के हाथ में पकड़े हीरे-मोतियों की पेटी गिर कर खुल गई। खलीपफा ने गुलामों से कहा,'' ल्दी से हीरे-मोती बीन लो । सब को इनाम दिया जाएगा ।''
सुनकर सारे गुलाम हीरे-मोती बटोरने के लिए दौड़ पड़े । सिर्फ हाशम खड़ा रहा । खलीफा ने कहा, ''तुम क्यों नहीं जाते?'' उसने कहा, '' से कीमती हीरा तो आप हैं, मैं आप को छोड़कर क्यों जाऊं ?'' खलीफा उससे बहुत खुश हुए और उसी वक्त उसे आजाद कर दिया ।