बुधवार, 23 जून 2010

हौंसला

रूस के एक वायुयान इंजीनियर की पहले महायुद्ध में एक टांग कट गई थी। दूसरे महायुद्ध के दौरान वह अस्पतालों में घायलों को देखने पहुंचे । उन्होंने मरीजों को हौंसले बनाए रखने के लिए कहा, ''नकली टांग का फायदा यह है कि चोट लगने पर महसूस नहीं होती ।''
यह सुनकर उन्होंने अपना बेंत एक आदमी को दे कर कहा कि इसे जोर से मेरी टांग पर मारो । उसने बहुत जोर से बेंत मारी, इंजीनियर ने हंसते हुए कहा,'' देखो, मुझे कोई असर नहीं हुआ।'' इस पर सब हंस पड़े । कमरे से बाहर निकलते ही उनके मुख पर पीड़ा के चिन्ह उभर आए । उनके साथी अफसर ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा, ''उसने गलत टांग पर बेंत मार दिया था।''

गुरुवार, 17 जून 2010

स्पष्टवादिता

बालगंगाधर तिलक बचपन से ही सत्यवादी एवं निर्भीक स्वभाव के थे । बचपन में उनकी कक्षा के कुछ विद्यार्थियों ने मूंगफली खाकर छिलके फर्श पर इधर-उधर फैक दिए । अध्यापक ने आ कर देखा कि फर्श पर छात्रों ने कूड़ा फैलाया हुआ है । उन्होंने छात्रों को डांटते हुए कहा, ''यह मूंगफली के छिलके किस-किस ने फेंके हैं ?'' सब लड़के चुप रहे । किसी ने भी अपनी भूल कुबूल नहीं की तो अध्यापक ने गुस्से में लड़कों से हाथ खुलवाए और दो-दो डंडे लगाए ।
जब बाल गंगाधर तिलक की बारी आई तो वह नम्रतापूर्वक स्पष्ट शब्दों में बोले, ''सर, मैंने मूंगफली नहीं खाई । अतः छिलके फेंकने का सवाल ही पैदा नहीं होता । मैं अपराधी नहीं हूं । इसलिए मैं मार नहीं खाउंगा ।'' फिर बताओ, ''मूंगफली किसने खाई है ?'' ''सर, मुझे चुगलखोरी की आदत पंसद नहीं है । इसलिए मैं किसी अन्य छात्रा का नाम भी नहीं लूंगा ।'' लेकिन मार भी नहीं खा सकता ।'' उनकी स्पष्टवादिता ने उन्हें स्कूल से निकलवा दिया । लेकिन उनके इसी गुण ने उन्हें आगे चल कर भारत माता का महान् सपूत बना दिया ।

शनिवार, 12 जून 2010

अहिंसा का पुजारी

गांधी जी हमेशा अपने साथ लाठी रखा करते थे । एक बार जवाहर लाल नेहरू अपने पिता मोतीलाल नेहरू के साथ गांधी जी से मिलने गए । शाम हो चुकी थी । गांधी जी के कमरे में एक दीया जल रहा था । जैसे ही वे दोनों कमरे में घुसे, दीया बुझ गया । नेहरू दरवाजे के पास पड़ी लाठी से टकरा गए। नेहरू ने पूछा, ''बापू आप तो अंहिसा के पुजारी हैं । फिर आप यह लाठी अपने साथ क्यों रखते हैं?'' ''तुम्हारे जैसे उद्दंड लड़कों को सीधा करने के लिए |'' गांधी जी ने जवाब दिया ।

मंगलवार, 8 जून 2010

लगन

टामस एलवा एडीसन एक महान् वैज्ञानिक थे । उन दिनों वह स्टोरेज बैटरी बनाने में लगे हुए थे । पच्चीस बार उन्होंने प्रयत्न किया, पर वह अपने उद्देश्य में सफल न हो सके ।
जब उन्होंने छब्बीसवीं बार प्रयत्न करना प्रारम्भ कर दिया तो एक आदमी ने उनसे पूछा, ''आप इसे बनाने की 25 बार कोशिश कर चुके हैं और असफल रहे हैं । इतना समय और परिश्रम आपने व्यर्थ में ही गंवाया । इससे आप को क्या मिला?''
एडीसन मुस्कराते हुए तपाक से बोले, ''25 ऐसे ‘तरीके’ जिनसे स्टोरेज बैटरी किसी हालत में नहीं बन सकती ।''

शुक्रवार, 4 जून 2010

न्याय

यहूदी धर्म गुरु वूल्पफ बहुत ही शांतिप्रिय एवं न्यायी थे । एक बार उनके घर से एक चांदी का बरतन चोरी हो गया । वूल्पफ ' को नौकरानी पर संदेह था। पर नौकरानी अपने को निर्दोष बता रही थी । अतः वूल्पफ की पत्नी धर्म न्यायालय से न्याय पाने के लिए घर से निकल पड़ी । धर्म गुरु भी अपना धर्माचार्य का चोगा पहने चलने को तैयार होने लगे, तो उनकी पत्नी बोली, ''आप को मेरे साथ चलने की जरूरत नहीं है । न्यायालय में क्या और कैसे बोला जाता है, यह मैं खूब जानती हूं।'' ''तुम तो सब कुछ जानती हो, लेकिन यह अनपढ़ भोली भाली नौकरानी कुछ नहीं जानती, मैं उसके पक्ष में न्यायालय जा रहा हूं, ताकि उसे न्याय मिल सके ।''