tag:blogger.com,1999:blog-26644588236584589232024-02-20T21:28:09.985+05:30प्रेरणादिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.comBlogger102125tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-50834747706911700092017-07-02T19:52:00.001+05:302017-11-09T09:38:51.799+05:30प्रेम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: justify;">
रामकृष्ण परमहंस जी गले के कैंसर से पीड़ित थे। एक दिन डाक्टर ने कहा कि अब अन्तिम समय आ गया लगता है। यह जानकर उनकी पत्नी रोने लगी। इस पर रामकृष्ण जी ने कहा, शारदा! रो मत। क्योंकि जो मरेगा वह तो मरा ही हुआ था, और जो जिंदा था वह कभी नहीं मरेगा। और हाँ, चूड़ियां मत तोड़ना। फिर तूने मुझे चाहा था या इस देह को? तूने किसे प्रेम किया था? मुझे या इस शरीर को? अगर इस देह को किया था तो तेरी मर्जी, फिर तू चूड़ियां तोड़ लेना। अगर मुझे प्रेम किया था तो मैं नहीं मर रहा हूं। मैं रहूंगा। मैं उपलब्ध रहूंगा। और शारदा ने चूड़ियां नहीं तोड़ीं। शारदा की आंख से आंसू की एक बूंद नहीं गिरी। लोग तो समझे कि उसे इतना भारी धक्का लगा है कि वह विक्षिप्त हो गयी है। लोगों को तो उसकी बात विक्षिप्तता ही जैसी लगी। लेकिन उसने सब काम वैसे ही जारी रखा जैसे रामकृष्ण जिंदा हों। रोज सुबह वह उन्हें बिस्तर से आकर उठाती कि अब उठो परमहंसदेव, भक्त आ गए हैं–जैसा रोज उठाती थी, भक्त आ जाते थे, और उनको उठाती थी आकर। मसहरी खोलकर खड़ी हो जाती–जैसे सदा खड़ी होती थी। ठीक जब वे भोजन करते थे तब वह थाली लगाकर आ जाती थी, बाहर आकर भक्तों के बीच कहती कि अब चलो, परमहंसदेव! लोग हंसते, और लोग रोते भी कि बेचारी! इसका दिमाग खराब हो गया! किसको कहती है? थाली लगाकर बैठती, पंखा झलती। वहां कोई भी नहीं होता था ।<br />
इस प्रकार शारदा सधवा ही रही। प्रेम की एक ऊंची मंजिल उसने पायी। रामकृष्ण परमहंस उसके लिए कभी नहीं मरे। प्रेम मृत्यु को जानता ही नहीं। लेकिन प्रेम की मृत्यु में जो मरा हो पहले, वही फिर प्रेम के अमृत को जान पाता है। प्रेम स्वयं मृत्यु है, इसलिए फिर किसी और मृत्यु को प्रेम क्या जानेगा!...वैसे भी क्योंकि आत्मा तो अनश्वर है तो विलाप व्यर्थ है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-79439566745698018922016-03-25T13:03:00.001+05:302016-03-25T13:03:26.459+05:30परिणाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भगवान राम ने एक ही तीर से रावण को डाला था । परन्तु उसके शरीर में असंख्य छिद्र हो गए । लक्ष्मण ने राम जी से पूछा, भगवन् आपने एक तीर से रावण को मार डाला फिर असंख्य छिद्र कैसे हो गए ? इस पर श्री राम बोले, यह रावण के दुर्गुर्णों का परिणाम है अन्यथा न शस्त्र किसी को मारते हैं , न शत्रु किसी को मार सकता है ; अपितु मनुष्य का पतन उसके पापों से होता है।</div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-33550233042239628992014-11-27T12:45:00.000+05:302015-01-05T08:42:58.739+05:30निंदा और प्रशंसा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को , जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे । जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । यह देख वह बहुत दुखी हुआ । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था । तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे । उसने अगले दिन यही किया । शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया । वह संसार की रीति समझ गया । "कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान , लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है "|</div>
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दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-18414097745871022882014-08-08T19:37:00.000+05:302015-03-23T12:11:28.636+05:30बोधपाठ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इंग्लैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान एक शाम महाराजा जयसिंह सादे कपड़ों में बॉन्ड स्ट्रीट में घूमने के लिए निकले और वहां उन्होने रोल्स रॉयस कम्पनी का भव्य शो रूम देखा और मोटर कार का भाव जानने के लिए अंदर चले गए। शॉ रूम के अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें “कंगाल भारत” का सामान्य नागरिक समझ कर वापस भेज दिया। शोरूम के सेल्समैन ने भी उन्हें बहुत अपमानित किया, बस उन्हें “गेट आऊट” कहने के अलावा अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अपमानित महाराजा जयसिंह वापस होटल पर आए और रोल्स रॉयस के उसी शोरूम पर फोन लगवाया और संदेशा कहलवाया कि अलवर के महाराजा कुछ मोटर कार खरीदने<br>
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चाहते हैं। कुछ देर बाद जब महाराजा रजवाड़ी पोशाक में और अपने पूरे दबदबे के साथ शोरूम पर पहुंचे तब तक</div>
<div style="text-align: justify;">
शोरूम में उनके स्वागत में “रेड कार्पेट” बिछ चुका था। वही अंग्रेज मैनेजर और सेल्समेन्स उनके सामने नतमस्तक खड़े थे। महाराजा ने उस समय शोरूम में पड़ी सभी छ: कारों को खरीदकर, कारों की कीमत के साथ उन्हें भारत पहुँचाने के खर्च का भुगतान कर दिया। भारत पहुँच कर महाराजा जयसिंह ने सभी छ: कारों को अलवर नगरपालिका को दे दी और आदेश दिया कि हर कार का उपयोग (उस समय के दौरान 8320 वर्ग कि.मी) अलवर राज्य में कचरा उठाने के लिए किया जाए। विश्व की अव्वल नंबर मानी जाने वाली सुपर क्लास रोल्स रॉयस कार नगरपालिका के लिए कचरागाड़ी के रूप में उपयोग लिए जाने के समाचार पूरी दुनिया में फैल गया और रोल्स रॉयस की इज्जत तार-तार हुई। युरोप-अमरीका में कोई अमीर व्यक्ति अगर ये कहता “मेरे पास रोल्स रॉयस कार” है तो सामने वाला पूछता “कौनसी?” वही जो भारत में कचरा उठाने के काम आती है! वही?</div>
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बदनामी के कारण और कारों की बिक्री में एकदम कमी आने से रोल्स रॉयस कम्पनी के मालिकों को बहुत नुकसान होने लगा। महाराज जयसिंह को उन्होने क्षमा मांगते हुए टेलिग्राम भेजे और अनुरोध किया कि रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बन्द करवावें। माफी पत्र लिखने के साथ ही छ: और मोटर कार बिना मूल्य देने के</div>
<div style="text-align: justify;">
लिए भी तैयार हो गए। महाराजा जयसिंह जी को जब पक्का विश्वास हो गया कि अंग्रेजों को वाजिब बोधपाठ मिल गया है तो महाराजा ने उन कारों से कचरा उठवाना बन्द करवाया !</div>
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दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-58083623432225031012013-01-16T17:49:00.001+05:302013-01-16T17:49:12.348+05:30व्यापार का साधन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
उन दिनों महावीरप्रसाद द्विवेदी सरस्वती नामक पत्रिका का संपादन करते थे । अपने लेखन के कारण वह काफी विख्यात हो चुके थे । एक बार एक सज्जन ने उन्हें स्वदेशी शक्कर की कुछ थैलियां भेंट की । उन महाशय का शक्कर की थैलियां देने के पीछे विचार यह था कि महावीर प्रसाद द्विवेदी सरस्वती में उनकी प्रशंसा में कुछ ऐसा लिख दें कि वह शहर भर में चर्चित हो जाएं ।</div>
<div style="text-align: justify;">
थैलियां देने के कुछ दिन बाद वह सज्जन फिर महावीर प्रसाद द्विवेदी से मिले और उन्हें अपनी थैलियों के विषय में याद दिलाया तो महावीर प्रसाद द्विवेदी मुस्कराते हुए उठे और अलमारी से उनकी थैलियां निकाल कर देते हुए बोले,'' भाई, तुम्हारी थैलियां जैसी की तैसी रखी हुई हैं। सरस्वती को व्यापार का साधन बना कर मैं उसे लक्ष्मी के समक्ष अपमानित नहीं कर सकता।''</div>
</div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-41671768301053834622012-12-04T11:35:00.000+05:302012-12-04T11:35:21.798+05:30 ज्ञान का सागर <div style="text-align: justify;">
राम तीर्थ एक बार ऋषिकेष में गंगा किनारे घूमने के इरादे से गए। वहां एक साधु को आराम से बैठा देख कर अचानक उनके मन में कोई विचार आया और पूछा, बाबा, ''आप के संन्यास को कितना समय हो गया ।'' ''हो गए होंगे 40 साल '' साधु ने उत्तर दिया। <br /> '' आप ने इन 40 वर्षों में आपने क्या प्राप्त किया ? " स्वामी रामतीर्थ ने पूछा।<br /> '' इसे देखते हो '', गंगा की और इशारा करते हुए साधु ने बड़े गर्व से कहा,'' मैं अगर चाहूं तो पानी पर चलकर दूसरे छोर पर जा सकता हूं। " <br />'' उस छोर से इस छोर पर वापिस भी आ सकते होगें ? <br />'' बिल्कुल वापिस आ सकता हूं,'' साधु की गर्दन गर्व से कुछ और तन गयी। '' इस के इलावा और कुछ ? राम तीर्थ ने नया प्रश्न उछाल दिया। <br />'' क्या तुम इसे आम काम समझते हो ? '' साधु ने तीखे स्वर में पूछा।<br /> राम तीर्थ साधु की बात पर मुस्करा दिए।<br />''बाबा माफ करना। मै तो यही कहंूगा की आप ने 40 साल यों ही खों दिये। नदी में नौका भी चलती हैं। दो आने उधर जाने के और दो आने इधर आने के लगते है।40 साल में आप ने केवल वहीं पाया जो कोर्इ भी व्यकित चार आने खर्च कर के पा सकता हैं। आप ने ज्ञान के सागर में छलांग लगार्इ जरूर, पर मोती की जगह पत्थर उठा लाए। - <br /></div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-10542905817994089492012-11-14T12:58:00.000+05:302012-11-14T12:58:54.715+05:30सहनशक्ति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
सरदार वल्लभ भाई पटेल फौजदारी के प्रसिद्ध वकील थे । एक बार वह फौजदारी के एक मामले में अदालत में पैरवी कर रहे थे । मामला संगीन था और उनकी जरा-सी असावधानी अभियुक्त को फांसी दिला सकती थी । वह गंभीरतापूर्वक अपने तर्क दे रहे थे । तभी किसी ने उनके नाम का एक तार लाकर उन्हें थमा दिया । उन्होंने तार खोला, पढ़ा और मोड़ कर जेब में रख लिया । फिर उन्होंने उसी तन्मयता से बहस शुरू कर दी । <br />
अदालत का समय समाप्त हुआ तो वह लपक कर बाहर की तरफ चल दिए । तभी साथी वकील ने तेजी से पास आकर उनसे तार के बारे में पूछा तो वह बोले, ''मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई है । उसी की सूचना थी ।'' साथी ने कहा, ''इतनी बड़ी घटना घट गई और तुम बहस करते रहे ।'' वल्लभ भाई का उत्तर था, ''और क्या करता ?'' वह तो चली गई क्या अभियुक्त को भी चला जाने देता ?'' ऎसे थे लौह-पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल।</div>
</div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-31924842571529955302012-10-02T06:59:00.001+05:302012-10-02T07:01:04.490+05:30गृहमंत्री<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b> लालबहादुर शास्त्री जी के जन्म दिवस पर आपको हार्दिक बधाई </b><br />
<br />
लालबहादुर शास्त्री (2 अक्तूबर, 1904 - 11 जनवरी, 1966), भारत के तीसरे और दूसरे स्थायी प्रधानमंत्री थे । वह 1963-1965 के बीच भारत के प्रधान मन्त्री थे। उनका जन्म मुगलसराय, उत्तर प्रदेश मे हुआ था।<br />
उन दिनों लालबहादुर शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री थे । उन्हीं दिनों एक मित्र ने उनसे कहा, ''सिर्फ आधे इंच ऊंचाई कम होने के कारण मेरे पुत्र को थानेदार का पद नहीं मिला । इस मामले में यदि आप थोड़ी-सी सिफारिश कर दें तो संभव है काम बन जाए ।''</div>
<div style="text-align: justify;">
शास्त्री जी ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, '' यदि सचमुच आपके पुत्र की ऊंचाई कम है तो उसे यह जगह किसी भी तरह नहीं मिल सकती ।'' मित्र जरा नाराज होकर बोला, ''आप का कद तो जरूरत से ज्यादा ठिगना है, फिर भी आप राज्य के गृह मंत्री हैं और मेरा पुत्र ऊंचाई से सिर्फ आधे इंच की कमी के कारण थानेदार नहीं बन सकता। क्या यह अन्याय नहीं है ?''<br />
यह सुनकर शास्त्री जी मुस्कराए और बोले, ''आप ठीक कहते हैं। मैं ठिगना हूं फिर भी गृहमंत्री बन सकता हूं, लेकिन सच तो यह है कि इच्छा होने पर भी मैं थानेदार नहीं बन सकता । ठीक इसी प्रकार आप का बेटा भी ऊंचाई कम होने के कारण थानेदार तो नहीं बन सकता, लेकिन वह किसी दिन मेरी तरह गृह मंत्री जरूर बन सकता है । मेरी शुभकामनाएं उसके साथ है। '' शास्त्री जी के इस तर्क का मित्र के पास कोई जवाब न था । </div>
</div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-25482000908647374942012-08-15T14:45:00.000+05:302012-08-20T11:58:11.031+05:30गौरव की बात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #b45f06; text-align: justify;">
<div>
<b> <span style="color: #e69138;">स्वतंत्रता दिवस </span><span style="color: #6fa8dc;">पर हार्दिक</span><span style="color: #6aa84f;"> शुभकामनाएं</span></b><br />
</div>
<span style="color: #e69138;">बंगाल के एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर आ कर एक रेलगाड़ी खड़ी हुई। साफ सुथरे वस्त्र पहने एक युवक ने ‘कुली कुली’ पुकारना शुरू कर दिया । युवक के पास कोई भारी सामान नहीं था । केवल एक छोटी-सी पेटी थी । भला देहात के छोटे से स्टेशन पर कुली कहां होता ? परंतु तभी एक अधेड़ व्यक्ति साधरण ग्रामीण जैसे वस्त्र पहने युवक के पास आ गया । युवक ने उसे कुली समझ कर कहा, "तुम लोग बड़े सुस्त होते हो चलो, ले चलो </span><span style="color: #6fa8dc;">इसे ।" उस व्यक्ति ने पेटी उठा ली और उस युवक के पीछे पीछे चुपचाप चल दिया । घर पहुंच कर युवक पेटी रखवाकर उस व्यक्ति को मजदूरी देने लगा तो उस व्यक्ति ने कहा, "धन्यवाद, इस की आवश्यकता नहीं है?"" क्यों ?" युवक ने आश्चर्य से पूछा, किंतु उसी समय युवक के बड़े भाई घर से निकले और उन्होंने उस व्यक्ति को देख </span><span style="color: #6aa84f;">कर प्रणाम किया । अब युवक को पता लगा कि वह जिस व्यक्ति से पेटी उठवा कर लाया है वह तो बंगाल के प्रतिष्ठित विद्वान ईश्वर चंद्र विद्यासागर हैं । युवक उन के पैरों पर गिर पड़ा । विद्यासागर बोले, "मेरे देशवासी व्यर्थ अभिमान छोड़ दें और समझ लें कि अपने हाथों से अपना काम करना गौरव की बात है । वे स्वावलंबी बनें, यही मेरी मजदूरी है और तभी मेरा भारत श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है।"</span></div>
</div>
दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-33712361976129022522012-06-25T08:56:00.001+05:302012-06-25T08:56:39.264+05:30उपयोगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक दिन प्रसिद्ध ब्रिटिश विचारक जान रस्किन अपने मित्र के साथ लंदन की गलियों से गुजर रहे थे । रास्ता गंदा व कीचड़ भरा था । रस्किन का मित्र बारबार नाक-भौंह सिकोड़ता व कहता कि इस गंदगी में चलने में कितना कष्ट हो रहा है ? इस पर रस्किन हंस कर बोले, ''मित्र, यदि तुम विचार करो तो पाओगे कि हम हीरा, पन्ना और जवाहरातों पर चल रहे हैं ।''</div>
<div style="text-align: justify;">
उनका मित्र यह सुनकर चकित हुआ और उनकी तरफ देखने लगा । रस्किन ने आगे कहा, ''तुम्हीं बताओं कि यह काली मिट्टी क्या हैं ? क्या यह उसी खान में से नहीं निकलती है जिस में से हीरा निकलता है । इसलिए मैं कहता हूं कि इस संसार में गंदी या नाचीज कहलाने लायक कोई वस्तु नहीं है । जिसे हम लोग नाचीज समझते हैं, वह बहुधा सब से बढ़ कर उपयोगी निकल जाती है, केवल उसे अपनाने और उसे लेकर आगे बढ़ने का हौसला होना चाहिए।''</div>
</div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-42737250670742649282012-06-07T07:14:00.000+05:302012-06-07T14:34:33.379+05:30एक सूचना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आपका मेरी वेब-साइट <a href="http://www.phalgutirth.co.in/">www.phalgutirth.co.in</a> पर स्वागत है। जहां आपको <a href="http://www.amansandesh.blogspot.com%20/">अमन संदेश</a> और <a href="http://www.preranasandesh.blogspot.com/">प्रेरणा</a> दोनों की सामग्री एक साथ एक स्थान पर उपलब्ध हो सकेगी। आशा है आपको खुशी होगी एवं आपका सहयोग बना रहेगा। </div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-44102805274663603022012-03-13T17:57:00.000+05:302012-03-13T17:57:35.247+05:30मित्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">अमरीका में गृह युद्ध चल रहा था । उस समय अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति थे । एक बार वह घायलों के खेमें में गए । वहां से घूमते-घूमते वह दुश्मन सैनिकों के खेमें में भी चले गए और उन से प्यार से बातें करने लगे। जब वह बाहर निकले तो एक बुढि़या ने उनसे पूछा, ''तुम अपने दुश्मनों से इतने प्यार से क्यों बोलते हो, जब कि तुम्हें तो उन्हें खत्म कर देना चाहिए।'' अब्राहम लिंकन ने मुस्करा कर उत्तर दिया, ''क्या मैं अपने दुश्मनों का खत्म नहीं कर देता, जब मैं उनसे दोस्ती कर के उन्हें अपना मित्र बना लेता हूं।''</div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-43077646926869180412011-11-30T16:29:00.000+05:302011-11-30T16:29:16.122+05:30प्रगति में बाधकएक बार संत विनोबा भावे को गांधी जी ने पत्र लिखा । पत्र पढ़कर विनोबा जी ने उसे फाड़ दिया । यह देखकर आश्रम के छात्रों को बड़ी हैरानी हुई, क्योंकि सभी जानते थे कि विनोबा सदा ही गांधी जी के पत्र संभाल कर रखते थे। एक छात्र से न रहा गया उसने विनोबा जी से पूछ ही लिया,''आप ने पत्र क्यों फाड़ दिया?'' विनोबा जी ने बताया,''इस पत्र में कुछ गलत बातें लिखी थीं ।'' यह सुनकर छात्रों का कुतूहल बढ़ गया । एक ने पूछा,लेकिन गुरुदेव, ''आप तो कहते हैं कि गांधी जी कभी झूठ नहीं बोलते फिर उन्होंने झूठी या गलत बात कैसे लिखी?''''गांधी जी झूठ नहीं बोलते यह सच है, लेकिन इस पत्र में उन्होंने मेरी प्रशंसा की थी और मुझे सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति कहा था । सच तो यह है कि इस संसार में मुझ से भी अधिक गुणी व्यक्ति मौजूद हैं । अतः गांधी जी की यह बात सच नहीं हो सकती थी, शायद किसी दृष्टि से यह सच भी हो तो भी यह पत्र मुझ में अंहकार ही पैदा करता, जो मेरी प्रगति में बांधक होता। बस, इसलिए मैंने पत्र को फाड़ डाला।''दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-24958689647636453172011-10-10T06:25:00.000+05:302012-07-07T09:46:17.354+05:30सच्चा उपदेश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक दिन महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास पहुंचा और बोला,''आज मैंने एक भिखारी को बुला कर बहुत देर तक उसे धर्म की शिक्षा दी, प्रेरक उपदेश दिए, परन्तु उस मूर्ख ने मेरी बातों पर कोई गौर नहीं किया ।'' <br />
शिष्य की बात सुन कर बुद्ध ने उसे भिखारी को बुला लाने को कहा । जब भिखारी दीनहीन अवस्था में आया तो बुद्ध ने उसे भर पेट खाना खिला कर प्रेमपूर्वक विदा कर दिया । इस पर उनके शिष्य ने आश्चर्य से पूछा,''आप ने उसे बिना कोई उपदेश दिए भेज दिया?'' इस पर बुद्ध बोले,''आज उसके लिए भोजन ही उपदेश था । उसे प्रवचन से ज्यादा अन्न की जरूरत थी । यही सच्चा उपदेश है ।'' यह सुन कर उनका शिष्य निरुत्तर हो गया ।</div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-23230296412637104012011-10-04T19:50:00.000+05:302011-10-04T19:50:52.614+05:30प्रजा की धरोहरदिल्ली के सिंहासन पर उन दिनों गुलाम वंशीय बादशाह नसीरूद्दीन का शासन था । वह बड़ा नीतिनिष्ठ एवं पुरुषार्थी शासक था । पुस्तक लिखने से उसको जो आय होती, उसी से वह अपना जीवन निर्वाह करता था । राजकोष से उसने कभी एक पैसा भी अपने या अपने परिवार के निजी खर्च के लिए नहीं लिया था । मुसलमान शासकों के रिवाज के विपरीत उसके एक ही पत्नी थी । नौकर कोई भी नहीं था । यहां तक कि रसोई भी स्वयं बेगम को अपने हाथ से बनानी पड़ती थी ।<br />
एक बार रसोई बनाते समय उनकी बेगम साहिबा का हाथ जल गया । बेगम ने बादशाह से कुछ दिन के लिए नौकरानी रखने की प्रार्थना की तो बादशाह ने उत्तर दिया,''प्रजाकोष पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। वह तो मेरे पास प्रजा की धरोहर मात्र है। उस में से मैं अपने खर्च के लिए एक पैसा भी नहीं ले सकता और मेरी स्वयं की कमाई इतनी है नहीं कि उसमें से नौकर रखा जाए। तुम ही बताओं हम नौकर कहां से रखें।'' अपने पति की बात सुनकर उनकी बेगम अत्यंत प्रभावित हुई।दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-45357221071007596202011-07-15T17:26:00.001+05:302011-07-15T17:27:19.990+05:30व्यक्तिगत धारणा<div style="text-align: justify;">नेपोलियन बोनापार्ट ने अपने एक विरोधी को उच्च पद पर नियुक्त किया तो कुछ अधिकारियों ने कहा, ''सम्राट, इस व्यक्ति के विचार आप के बारे में अच्छे नहीं हैं ।'' नेपोलियन ने हंसते हुए कहा, ''जिस पद के लिए मैंने उस व्यक्ति को नियुक्त किया है, उसके लिए वह पूर्णतया योग्य है ।'' मेरे बारे में उसकी व्यक्तिगत धारणा क्या है, इसकी मुझे परवाह नहीं, क्योंकि कोई किसी का कुछ भी बिगाड़ अथवा संवार नहीं सकता।''</div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-9712722536321127632011-05-17T15:28:00.000+05:302011-05-17T15:28:05.609+05:30समय का मूल्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">अमरीका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन के समय की पाबंदी का विश्व भर में उदाहरणस्वरूप प्रयोग किया जाता है । वह समय का मूल्य जानते थे । अतः सदैव अपने एक एक पल का सदुपयोग करते थे । एक बार उन्होंने अपने कुछ मित्रों को भोजन पर निमंत्रित किया । समय दिन के 3 बजे का था। संयोगवश मेहमान समय पर नहीं आए तो उन्होंने भोजन करना शुरू कर दिया । कुछ ही मिनटों की देरी से आने वाले मेहमानों को यह देख कर बहुत बुरा लगा। जार्ज वाशिंगटन ने कहा, ''क्षमा कीजिए । खाना मेज पर लगाने से पूर्व मेरा रसोइया मुझ से यह नहीं पूछता कि मेहमान आए या नहीं वह केवल यह पूछता है कि समय हुआ या नहीं?'' उनकी यह बात सुनते ही मेहमान लज्जित हो गए।</div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-24025110791589030862011-05-02T18:10:00.000+05:302011-05-02T18:10:36.314+05:30आत्म-विश्वास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">उन दिनों पेले फुटबाल के नए-नए खिलाड़ी के रूप में उभरे थे । एक बार वह एक जगह मैच खेलने गए । मैच के दौरान उन्होंने एक बाल गोल पोस्ट पर दागी परंतु गोल नहीं हुआ तब उन्होंने शर्त ठोंक दी, ''मैंने 300 के कोण से बाल मारा और गोल हुआ कैसे नहीं ?'' जबरदस्त विश्वास था उनके कथन में और जब पोल नापा गया तो पोल सचमुच टेढ़ा था । </div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-80151214363904980232011-04-10T08:56:00.000+05:302011-04-10T08:56:18.763+05:30सहनशीलता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> सुकरात यूनान के महान विचारक और दार्शनिक थे । वह सड़क पर जहां भी खड़े हो जाते, लोग उन्हें घेर लेते और उन से तरह तरह के प्रश्न पूछते । कभी कभी तो लोग बेसिरपैर के प्रश्न भी पूछ बैठते, किंतु सुकरात शांत भाव से उन प्रश्नों का उत्तर देते रहते । लोगों से घिरे रहने के कारण सुकरात अधिक् समय तक घर से बाहर ही रहते । इस से उनकी पत्नी बेहद नाराज रहती । वैसे भी वह बड़े कठोर स्वभाव की स्त्री थी । अकारण ही सुकरात से झगड़ती रहती । <br />
<div style="text-align: justify;">एक बार किसी बात को लेकर वह उनसे झगड़ रही थी । सुकरात बड़े शांत भाव से उसे सुन रहे थे । जब काफी देर हो गई और उनकी पत्नी का बोलना बंद न हुआ तो सुकरात उठ कर बाहर जाने लगे । यह देखकर उनकी पत्नी का क्रोध और भी बढ़ गया । पास ही गंदे पानी से भरी बाल्टी रखी थी । क्रोध से तिलमिलाते हुए उसने सारा गंदा पानी सुकरात के उपर उड़ेल दिया । वह उपर से नीचे तक भीग गए और कपड़े भी गंदे हो गए । पर वह शांत रहे - जैसे कुछ हुआ ही न हो । थोड़ी देर बाद मुस्करा शांत भाव से सुकरात ने कहा, ''इतने भीषण गर्जन के बाद वर्षा तो होनी ही चाहिए थी।''</div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-87321207973922281482011-03-20T14:05:00.001+05:302011-03-20T14:07:02.089+05:30सफलता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: red;">होली</span><span style="background-color: red;"> </span><span style="background-color: red;">के</span><span style="background-color: red;"> </span><span style="background-color: red;">शुभ अवसर</span> <span style="background-color: magenta;">प</span><span style="background-color: magenta;">र जापान औ</span><span style="background-color: magenta;">र</span> <span style="background-color: #ffd966;">आप सभी के लिए</span> <span style="background-color: #274e13;"><span style="background-color: yellow;">शुभकामना। </span> </span></div><div style="text-align: justify;">विख्यात अंग्रेजी नाटककार आस्कर वाइल्ड का लिखा पहला नाटक सफलता नहीं पा सका। लोगों ने उनकी प्रतिक्रिया जानने लिए उनसे कहा कि कहिए कैसा रहा आपका नाटक ? प्रत्युत्तर में वे आत्मविश्वास से बोले ''नाटक तो सफल रहा ,पर दर्शक असफल हो गए।'' </div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-23412173844687348402011-02-20T08:20:00.001+05:302011-02-20T08:21:21.242+05:30कर्म का महत्तव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">एक बार एक गरीब किसान ने गौतम बुद्ध से अपने गांव आने का आग्रह किया। बुद्ध उस गांव में पहुंचे तो सारे गांव के लोग उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़े, लेकिन उसी दिन बुद्ध को गांव बुलाने वाले किसान के बैलों की जोड़ी कहीं खो गई । किसान अब दुविध में फंस गया कि वह महात्मा बुद्ध का प्रवचन सुनने जाए या अपने बैलों को खोजे । काफी सोचने के बाद उसने अपने बैलों को ही ढूंढ़ने का निर्णय किया ।<br />
घंटों भटकने के बाद कहीं जा कर उसे अपने बैल मिले । थकामांदा किसान घर आते ही भोजन कर के सो गया । अगले दिन वह संकोच के साथ बुद्ध के पास गया । बुद्ध उसकी परेशानी समझ गए और बोले, ''मेरी नजर में यह किसान ही मेरा सच्चा अनुयायी है । इसने उपदेशों से अधिक कर्म को महत्त्व दिया है । अगर कल यह अपने बैल खोजने न जाता और यहां आ कर मेरा प्रवचन सुनने लगता तो इसे मेरी कही हुई बातें समझ में नहीं आतीं, क्योंकि इस का मन कहीं और भटक रहा होता । इसने कर्म को महत्त्व दे कर सराहनीय कार्य किया है।''</div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-33634239617559200572011-02-13T06:41:00.000+05:302011-02-13T06:41:11.373+05:30कर्त्तव्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के गांव दौलतपुर ;जिला रायबरेली में एक मकान की दीवार बहुत कमजोर हो गई थी और किसी भी समय गिर सकती थी । उन्होंने जिलाधिकारी को लिखकर बताया कि उस मकान की दीवार किसी भी समय गिर सकती है, जिससे गुजरने वालों के प्राण भी जा सकते हैं । <br />
जिलाधिकारी की आज्ञा से एक अधिकारी गांव पहुंचा । स्थिति की जांच कर के उसने पाया कि द्विवेदी जी की आशंका का कोई ठोस आधार नहीं है । उसने कहा, ''द्विवेदी जी, आप की शंका हमारी समझ में नहीं आई । यदि दीवार को गिरना होगा तो गिर जाएगी । उसके गंभीर परिणाम क्या हो सकते हैं ?'' इस पर द्विवेदी जी मुस्कराए और उसे अधिकारी से बोले, ''आप ठीक कहते हैं। बस, इतनी सी बात आप एक कागज पर लिख कर मुझे दे दीजिए कि इस दीवार के गिरने से यदि किसी व्यक्ति की जान चली गई तो उसकी जिम्मेदारी आपकी होगी।'' यह सुनकर अधिकारी निरूत्तर हो गया और उसने तुरंत उस दीवार को गिराने का आदेश दे दिया ।</div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-35935465216936768592011-01-31T20:12:00.000+05:302011-01-31T20:12:33.584+05:30विनम्रता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">एक बार अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपने दोस्त के साथ घोड़ा गाड़ी से कहीं जा रहे थे । रास्ते में एक मजदूर ने उन्हें थोड़ा झुक कर प्रणाम किया। उसके उत्तर में अब्राहम लिंकन ने उससे भी और ज्यादा झुक कर प्रणाम किया। यह देखकर उनके मित्र ने उनसे पूछा, ''आप ने उस छोटे से मजदूर को इतना झुक कर प्रणाम क्यों किया ?'' अब्राहम लिंकन ने जवाब दिया, ''मैं नहीं चाहता कि विनम्रता में कोई मुझ से आगे निकल जाए ।'' यह सुन कर उनके मित्र का सिर श्रद्धा से झुक गया । </div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-54526154169792762712011-01-23T12:36:00.003+05:302011-01-23T12:44:00.097+05:30समर्पण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><div style="color: red;"><i><b>आज नेता जी का जन्म-दिन है। इस अवसर पर भारत मां के उस सपूत को हमारा नमन।</b></i></div>बात उस समय की है जब रंगून में <a href="http://preranasandesh.blogspot.com/2009/12/blog-post_29.html">नेताजी सुभाष चंद्र बोस</a> की आजाद हिंद फौज में भर्ती होने के लिए अपार भीड़ लगी थी । नेताजी ने एक मंच से जनता को संबोधित करते हुए कहा, ''दोस्तों, आजादी बलिदान चाहती है, <span style="color: red;">तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा</span>।'' भीड़ चिल्ला उठी, ''नेताजी, आप के एक इशारे पर हम अपना तन मन धन भारत मां के चरणों में निछावर कर देंगे ।'''' ठीक है दोस्तों, आगे आइए और इस शपथपत्र पर हस्ताक्षर कीजिए।''भीड़ में आपाधपी मच गई । हर एक शपथपत्र पर पहले हस्ताक्षर कर नेताजी की नजरों में चढ़ना चाहता था । इससे पहले कि भीड़ में से कोई आगे बढ़ कर शपथपत्र पर अपने हस्ताक्षर करता, नेताजी की आवाज गूंजी, ''ठहरो, मुझे तुम्हारे खून के हस्ताक्षर चाहिए । जो आजादी के लिए सर्वस्व अर्पित करने का दंभ भरता हो वह अपने खून से हस्ताक्षर करे,''यह सुनकर भीड़ की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई और लोग धीरे-धीरे खिसकने लगे । अचानक 17 लड़कियां आगे बढ़ीं और आनन-फानन में उन्होंने अपनी कमर से छुरियां निकालीं और अपनी उंगली काट कर शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। </div></div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2664458823658458923.post-26296192678850113182011-01-11T14:13:00.000+05:302011-01-11T14:13:25.988+05:30लाल बहादुर शास्त्री<div align="justify"><b>लाल बहादुर शास्त्री</b><b> जी की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन </b></div><div align="justify">उस समय लाल बहादुर शास्त्री गृह मंत्री थे । एक बार उन्होंने इलाहाबाद स्थित अपना निवास स्थान इसलिए खाली कर दिया क्योंकि मकान मालिक को उसकी आवश्यकता थी । उन्होंने किराए पर दूसरा मकान लेने के लिए आवेदन पत्र भरा ।<br />
काफी समय हो गया लेकिन लाल बहादुर शास्त्री को मकान नहीं मिल सका | लाल बहादुर शास्त्री के मित्र ने अधिकारियों से पूछताछ की । अधिकारियों ने बताया, शास्त्री जी का कड़ा आदेश है कि जिस क्रम में उनका आवेदन पत्र दर्ज है । उसी क्रम के अनुसार मकान दिए जाएं । कोई पक्षपात न किया जाए। सच यह था कि 176 आवेदकों के नाम पहले दर्ज थे ।</div>दिनेश शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04611824902026596107noreply@blogger.com9