मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

ज्ञान का सागर

 राम तीर्थ एक बार ऋषिकेष में गंगा किनारे घूमने के इरादे से गए। वहां एक साधु को आराम से बैठा देख कर अचानक उनके मन में कोई विचार आया और पूछा, बाबा, ‌''आप के संन्यास को कितना समय हो गया ।''      ''हो गए होंगे 40 साल '' साधु ने उत्तर दिया।
  '' आप ने इन 40 वर्षों में आपने क्या प्राप्त किया ? " स्वामी रामतीर्थ ने पूछा।
  '' इसे देखते हो '', गंगा की और इशारा करते हुए साधु ने बड़े गर्व से कहा,'' मैं अगर चाहूं तो पानी पर चलकर दूसरे छोर पर जा सकता हूं। "
'' उस छोर से इस छोर पर वापिस भी आ सकते होगें ?
'' बिल्कुल वापिस आ सकता हूं,''  साधु की गर्दन गर्व से कुछ और तन गयी। '' इस के इलावा  और कुछ ? राम तीर्थ ने नया प्रश्न उछाल दिया।
'' क्या तुम इसे आम काम समझते हो ? ''  साधु ने तीखे स्वर में पूछा।
  राम तीर्थ साधु की बात पर मुस्करा दिए।
''बाबा माफ करना। मै तो यही कहंूगा की आप ने 40 साल यों ही खों दिये। नदी में नौका भी चलती हैं। दो आने उधर जाने के और दो आने इधर आने के लगते है।40 साल में आप ने केवल वहीं पाया जो कोर्इ भी व्यकित चार आने खर्च कर के पा सकता हैं। आप ने ज्ञान के सागर में छलांग लगार्इ जरूर, पर मोती की जगह पत्थर उठा लाए।      -  

बुधवार, 14 नवंबर 2012

सहनशक्ति

सरदार वल्लभ भाई पटेल फौजदारी के प्रसिद्ध वकील थे । एक बार वह फौजदारी के एक मामले में अदालत में पैरवी कर रहे थे । मामला संगीन था और उनकी जरा-सी असावधानी अभियुक्त को फांसी दिला सकती थी । वह गंभीरतापूर्वक अपने तर्क दे रहे थे । तभी किसी ने उनके नाम का एक तार लाकर उन्हें थमा दिया । उन्होंने तार खोला, पढ़ा और मोड़ कर जेब में रख लिया । फिर उन्होंने उसी तन्मयता से बहस शुरू कर दी ।
                                        अदालत का समय समाप्त हुआ तो वह लपक कर बाहर की तरफ चल दिए । तभी साथी वकील ने तेजी से पास आकर उनसे तार के बारे में पूछा तो वह बोले, ''मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई है । उसी की सूचना थी ।'' साथी ने कहा, ''इतनी बड़ी घटना घट गई और तुम बहस करते रहे ।'' वल्लभ भाई का उत्तर था, ''और क्या करता ?'' वह तो चली गई क्या अभियुक्त को भी चला जाने देता ?'' ऎसे थे लौह-पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

गृहमंत्री

   लालबहादुर शास्त्री जी के जन्म दिवस पर आपको हार्दिक बधाई

लालबहादुर शास्त्री (2 अक्तूबर, 1904 - 11 जनवरी, 1966), भारत के तीसरे और दूसरे स्थायी प्रधानमंत्री थे । वह 1963-1965 के बीच भारत के प्रधान मन्त्री थे। उनका जन्म मुगलसराय, उत्तर प्रदेश मे हुआ था।
                                                            उन दिनों लालबहादुर शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री थे । उन्हीं दिनों एक मित्र ने उनसे कहा, ''सिर्फ आधे इंच ऊंचाई कम होने के कारण मेरे पुत्र को थानेदार का पद नहीं मिला । इस मामले में यदि आप थोड़ी-सी सिफारिश कर दें तो संभव है काम बन जाए ।''
                                     शास्त्री जी ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, '' यदि सचमुच आपके पुत्र की ऊंचाई कम है तो उसे यह जगह किसी भी तरह नहीं मिल सकती ।''  मित्र जरा नाराज होकर बोला, ''आप का कद तो जरूरत से ज्यादा ठिगना है, फिर भी आप राज्य के गृह मंत्री हैं और मेरा पुत्र ऊंचाई से सिर्फ आधे इंच की कमी के कारण थानेदार नहीं बन सकता। क्या यह अन्याय नहीं है ?''
                                                                                   यह सुनकर शास्त्री जी मुस्कराए और बोले, ''आप ठीक कहते हैं। मैं ठिगना हूं फिर भी गृहमंत्री बन सकता हूं, लेकिन सच तो यह है कि इच्छा होने पर भी मैं थानेदार नहीं बन सकता । ठीक इसी प्रकार आप का बेटा भी ऊंचाई कम होने के कारण थानेदार तो नहीं बन सकता, लेकिन वह किसी दिन मेरी तरह गृह मंत्री जरूर बन सकता है । मेरी शुभकामनाएं उसके साथ है। '' शास्त्री जी के इस तर्क का मित्र के पास कोई जवाब न था ।

बुधवार, 15 अगस्त 2012

गौरव की बात

 स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
बंगाल के एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर आ कर एक रेलगाड़ी खड़ी हुई। साफ सुथरे वस्त्र पहने एक युवक ने ‘कुली कुली’ पुकारना शुरू कर दिया । युवक के पास कोई भारी सामान नहीं था । केवल एक छोटी-सी पेटी थी । भला देहात के छोटे से स्टेशन पर कुली कहां होता ? परंतु तभी एक अधेड़ व्यक्ति साधरण ग्रामीण जैसे वस्त्र पहने युवक के पास आ गया । युवक ने उसे कुली समझ कर कहा, "तुम लोग बड़े सुस्त होते हो चलो, ले चलो इसे ।" उस व्यक्ति ने पेटी उठा ली और उस युवक के पीछे पीछे चुपचाप चल दिया । घर पहुंच कर युवक पेटी रखवाकर उस व्यक्ति को मजदूरी देने लगा तो उस व्यक्ति ने कहा, "धन्यवाद, इस की आवश्यकता नहीं है?"" क्यों ?"  युवक ने आश्चर्य से पूछा, किंतु उसी समय युवक के बड़े भाई घर से निकले और उन्होंने उस व्यक्ति को देख कर प्रणाम किया । अब युवक को पता लगा कि वह जिस व्यक्ति से पेटी उठवा कर लाया है वह तो बंगाल के प्रतिष्ठित विद्वान ईश्वर चंद्र विद्यासागर हैं । युवक उन के पैरों पर गिर पड़ा । विद्यासागर बोले, "मेरे देशवासी व्यर्थ अभिमान छोड़ दें और समझ लें कि अपने हाथों से अपना काम करना गौरव की बात है । वे स्वावलंबी बनें, यही मेरी मजदूरी है और तभी मेरा भारत श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है।"

सोमवार, 25 जून 2012

उपयोगी

एक दिन प्रसिद्ध ब्रिटिश विचारक जान रस्किन अपने मित्र के साथ लंदन की गलियों से गुजर रहे थे । रास्ता गंदा व कीचड़ भरा था । रस्किन का मित्र बारबार नाक-भौंह सिकोड़ता व कहता कि इस गंदगी में चलने में कितना कष्ट हो रहा है ? इस पर रस्किन हंस कर बोले, ''मित्र, यदि तुम विचार करो तो पाओगे कि हम हीरा, पन्ना और जवाहरातों पर चल रहे हैं ।''
                                                उनका मित्र यह सुनकर चकित हुआ और उनकी तरफ देखने लगा । रस्किन ने आगे कहा, ''तुम्हीं बताओं कि यह काली मिट्टी क्या हैं ? क्या यह उसी खान में से नहीं निकलती है जिस में से हीरा निकलता है । इसलिए मैं कहता हूं कि इस संसार में गंदी या नाचीज कहलाने लायक कोई वस्तु नहीं है । जिसे हम लोग नाचीज समझते हैं, वह बहुधा सब से बढ़ कर उपयोगी निकल जाती है, केवल उसे अपनाने और उसे लेकर आगे बढ़ने का हौसला होना चाहिए।''

गुरुवार, 7 जून 2012

एक सूचना

आपका मेरी वेब-साइट  www.phalgutirth.co.in पर स्वागत है। जहां आपको अमन संदेश और प्रेरणा दोनों की सामग्री एक साथ एक स्थान पर उपलब्ध हो सकेगी। आशा है आपको खुशी होगी एवं आपका सहयोग बना रहेगा। 

मंगलवार, 13 मार्च 2012

मित्र

अमरीका में गृह युद्ध चल रहा था । उस समय अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति थे । एक बार वह घायलों के खेमें में गए । वहां से घूमते-घूमते वह दुश्मन सैनिकों के खेमें में भी चले गए और उन से प्यार से बातें करने लगे। जब वह बाहर निकले तो एक बुढि़या ने उनसे पूछा, ''तुम अपने दुश्मनों से इतने प्यार से क्यों बोलते हो, जब कि तुम्हें तो उन्हें खत्म कर देना चाहिए।'' अब्राहम लिंकन ने मुस्करा कर उत्तर दिया, ''क्या मैं अपने दुश्मनों का खत्म नहीं कर देता, जब मैं उनसे दोस्ती कर के उन्हें अपना मित्र बना लेता हूं।''