राम तीर्थ एक बार ऋषिकेष में गंगा किनारे घूमने के इरादे से गए। वहां एक साधु को आराम से बैठा देख कर अचानक उनके मन में कोई विचार आया और पूछा, बाबा, ''आप के संन्यास को कितना समय हो गया ।'' ''हो गए होंगे 40 साल '' साधु ने उत्तर दिया।
'' आप ने इन 40 वर्षों में आपने क्या प्राप्त किया ? " स्वामी रामतीर्थ ने पूछा।
'' इसे देखते हो '', गंगा की और इशारा करते हुए साधु ने बड़े गर्व से कहा,'' मैं अगर चाहूं तो पानी पर चलकर दूसरे छोर पर जा सकता हूं। "
'' उस छोर से इस छोर पर वापिस भी आ सकते होगें ?
'' बिल्कुल वापिस आ सकता हूं,'' साधु की गर्दन गर्व से कुछ और तन गयी। '' इस के इलावा और कुछ ? राम तीर्थ ने नया प्रश्न उछाल दिया।
'' क्या तुम इसे आम काम समझते हो ? '' साधु ने तीखे स्वर में पूछा।
राम तीर्थ साधु की बात पर मुस्करा दिए।
''बाबा माफ करना। मै तो यही कहंूगा की आप ने 40 साल यों ही खों दिये। नदी में नौका भी चलती हैं। दो आने उधर जाने के और दो आने इधर आने के लगते है।40 साल में आप ने केवल वहीं पाया जो कोर्इ भी व्यकित चार आने खर्च कर के पा सकता हैं। आप ने ज्ञान के सागर में छलांग लगार्इ जरूर, पर मोती की जगह पत्थर उठा लाए। -
'' आप ने इन 40 वर्षों में आपने क्या प्राप्त किया ? " स्वामी रामतीर्थ ने पूछा।
'' इसे देखते हो '', गंगा की और इशारा करते हुए साधु ने बड़े गर्व से कहा,'' मैं अगर चाहूं तो पानी पर चलकर दूसरे छोर पर जा सकता हूं। "
'' उस छोर से इस छोर पर वापिस भी आ सकते होगें ?
'' बिल्कुल वापिस आ सकता हूं,'' साधु की गर्दन गर्व से कुछ और तन गयी। '' इस के इलावा और कुछ ? राम तीर्थ ने नया प्रश्न उछाल दिया।
'' क्या तुम इसे आम काम समझते हो ? '' साधु ने तीखे स्वर में पूछा।
राम तीर्थ साधु की बात पर मुस्करा दिए।
''बाबा माफ करना। मै तो यही कहंूगा की आप ने 40 साल यों ही खों दिये। नदी में नौका भी चलती हैं। दो आने उधर जाने के और दो आने इधर आने के लगते है।40 साल में आप ने केवल वहीं पाया जो कोर्इ भी व्यकित चार आने खर्च कर के पा सकता हैं। आप ने ज्ञान के सागर में छलांग लगार्इ जरूर, पर मोती की जगह पत्थर उठा लाए। -