स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
बंगाल के एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर आ कर एक रेलगाड़ी खड़ी हुई। साफ सुथरे वस्त्र पहने एक युवक ने ‘कुली कुली’ पुकारना शुरू कर दिया । युवक के पास कोई भारी सामान नहीं था । केवल एक छोटी-सी पेटी थी । भला देहात के छोटे से स्टेशन पर कुली कहां होता ? परंतु तभी एक अधेड़ व्यक्ति साधरण ग्रामीण जैसे वस्त्र पहने युवक के पास आ गया । युवक ने उसे कुली समझ कर कहा, "तुम लोग बड़े सुस्त होते हो चलो, ले चलो इसे ।" उस व्यक्ति ने पेटी उठा ली और उस युवक के पीछे पीछे चुपचाप चल दिया । घर पहुंच कर युवक पेटी रखवाकर उस व्यक्ति को मजदूरी देने लगा तो उस व्यक्ति ने कहा, "धन्यवाद, इस की आवश्यकता नहीं है?"" क्यों ?" युवक ने आश्चर्य से पूछा, किंतु उसी समय युवक के बड़े भाई घर से निकले और उन्होंने उस व्यक्ति को देख कर प्रणाम किया । अब युवक को पता लगा कि वह जिस व्यक्ति से पेटी उठवा कर लाया है वह तो बंगाल के प्रतिष्ठित विद्वान ईश्वर चंद्र विद्यासागर हैं । युवक उन के पैरों पर गिर पड़ा । विद्यासागर बोले, "मेरे देशवासी व्यर्थ अभिमान छोड़ दें और समझ लें कि अपने हाथों से अपना काम करना गौरव की बात है । वे स्वावलंबी बनें, यही मेरी मजदूरी है और तभी मेरा भारत श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है।"