एक बार राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की पुत्री उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आई । साथ में उसका पुत्र भी था । कुछ देर राष्ट्रपति भवन में अपने माता-पिता के साथ ठहरने के पश्चात् जब वह विदा होने लगी तो बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी नाती को एक रूपया दिया । नाना के इस उपहार पर बाबू राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी को बड़ा आश्चर्य हुआ । वह बोल पड़ी, ''आप इतने बड़े पद पर हैं, फिर भी अपने नाती को केवल यह तुच्छ उपहार दे रहे हैं।''
पत्नी की बात सुन कर राजेन्द्र प्रसाद बड़े सहज भाव से बोले, ''मैंने तो इसे एक रूपया दे दिया, लेकिन जितनी मेरी तनख्वाह है और जितने पूरे भारत में बच्चे हैं, अगर मैं सभी का एक-एक रूपया दूं तो क्या मेरी तनख्वाह से यह सब पूरा पड़ पाएगा?'' उनके इस विषय से उनकी पत्नी एकदम निरूत्तर हो गई और बेटी ने प्रसन्नतापूर्वक विदाई ली ।
पत्नी की बात सुन कर राजेन्द्र प्रसाद बड़े सहज भाव से बोले, ''मैंने तो इसे एक रूपया दे दिया, लेकिन जितनी मेरी तनख्वाह है और जितने पूरे भारत में बच्चे हैं, अगर मैं सभी का एक-एक रूपया दूं तो क्या मेरी तनख्वाह से यह सब पूरा पड़ पाएगा?'' उनके इस विषय से उनकी पत्नी एकदम निरूत्तर हो गई और बेटी ने प्रसन्नतापूर्वक विदाई ली ।