सोमवार, 13 सितंबर 2010

सार्थक

हिन्दी दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रसिद्ध हिंदी कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ शांतिनिकेतन में अपना अध्ययन समाप्त कर जब वापस लौटने लगे तो उन्होंने संस्था के मुख्य आचार्य क्षितिमोहन सेन से आशीर्वाद मांगने के लिए उनके पांव छुए । आचार्य ने पीठ पर हाथ रखकर कहा ,'' तुम कभी सफल न बनना ।'' ‘सुमन’ इस बात से भौंचक्के रह गए । उन्होंने सोचा, ''शायद मुझ से कोई गलती हो गई, जिससे गुरुजी क्रुद्ध हो गए ।'' साहस करके उन्होंने पूछा, ''गुरुजी, मुझ से क्या अपराध हुआ है ?'' आचार्य बोले, ''देखो, हर वर्ष लाखों लोग सफल होते हैं, लेकिन उनमें काई एकाध् ही सार्थक हो पाता है ।'' इसलिए मेरी इच्छा है कि तुम सार्थक बनो ।''

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

निर्देश

अमरीका के प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन के घर में एक बार चोरी हो गई । उसके बाद उन्होंने अपने घर के बाहर एक बोर्ड लगा दिया जिस पर लिखा - ''इस घर में अब एक ही वस्तु चुराने लायक रही है, वह है चांदी की तश्तरी जो रसोईघर में रखी अलमारी के सब से उपरी खाने में रखी है । पास ही में एक डलिया में बिल्ली के बच्चे हैं । यदि कोई सज्जन डलिया भी ले जाना चाहे तो बिल्ली के बच्चों को किसी कपड़े से ढक जाए । लेकिन किसी प्रकार का शोर न मचाए, अन्यथा घर के लोगों को असुविधा होगी । बाद में उसे भी हो सकती है ।'' यह बोर्ड टंगने के बाद पिफर कभी उनके यहां चोरी नहीं हुई ।