हिन्दी दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रसिद्ध हिंदी कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ शांतिनिकेतन में अपना अध्ययन समाप्त कर जब वापस लौटने लगे तो उन्होंने संस्था के मुख्य आचार्य क्षितिमोहन सेन से आशीर्वाद मांगने के लिए उनके पांव छुए । आचार्य ने पीठ पर हाथ रखकर कहा ,'' तुम कभी सफल न बनना ।'' ‘सुमन’ इस बात से भौंचक्के रह गए । उन्होंने सोचा, ''शायद मुझ से कोई गलती हो गई, जिससे गुरुजी क्रुद्ध हो गए ।'' साहस करके उन्होंने पूछा, ''गुरुजी, मुझ से क्या अपराध हुआ है ?'' आचार्य बोले, ''देखो, हर वर्ष लाखों लोग सफल होते हैं, लेकिन उनमें काई एकाध् ही सार्थक हो पाता है ।'' इसलिए मेरी इच्छा है कि तुम सार्थक बनो ।''
7 टिप्पणियां:
सच है सार्थकता कहीं बेहतर है सफल होने से
सार्थकता के साथ सफल भी हों तो क्या कहने
EXCELLENT.
GOOD TEACHINGS (SEEKH).
THANKS.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बढिया प्रसंग!
सच में...जीवन में सार्थकता सफलता से कहीं अधिक मायने रखती है..
बहुत अच्छी सीख देता प्रसंग.....
इस ब्लाग के माध्यम से आप सचमुच बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं.....
सफ़ल होने से सार्थक होना कहीं बड़ी बात है। आपका ब्लॉग बहुत पसंड आया है, सारी पोस्ट पढ़ी हैं, आभार स्वीकारें इस सार्थक ब्लॉग को चलाने के लिये।
vakai anmol baat hai
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बड़े जतन से जिसे आपने सवांरा है।
वो संदेश नहीं संस्कारों का पिटारा है।
बधाई स्वीकार कीजिए।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
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