डेनमार्क के मशहूर मूर्तिकार थोबीडन अपने समय के अद्वितीय कलाकार थे। एक दिन एक सभा में उसके एक प्रशंसक ने पूछा, ''जनाब आपने किस गुरु से यह मूर्तिकला सीखी और किस विद्यालय से प्रवीणता प्राप्त की।''
थोबीडन मुस्कराए व बोले, '' आत्मसुधार मेरा विद्यालय है और आत्मसमीक्षा मेरा गुरु । मैंने सदैव अपनी कृतियों में त्रुटि खोजी और अधिक उपयुक्त बनाने के लिए जो समझ में आया, उसे अविलंब अपनाया । यही कारण है कि आज मैं सपफलता के इस उच्च शिखर तक पहुंच सका हूं।''
थोबीडन मुस्कराए व बोले, '' आत्मसुधार मेरा विद्यालय है और आत्मसमीक्षा मेरा गुरु । मैंने सदैव अपनी कृतियों में त्रुटि खोजी और अधिक उपयुक्त बनाने के लिए जो समझ में आया, उसे अविलंब अपनाया । यही कारण है कि आज मैं सपफलता के इस उच्च शिखर तक पहुंच सका हूं।''
1 टिप्पणी:
" आत्मसुधार मेरा विद्यालय है और आत्मसमीक्षा मेरा गुरु"
एकदम सही कहा थोड़ीबन ने, फ़िर भी जिन्दा गुरू का होना श्रेयस्कर है।
आभार दिनेश जी।
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