शनिवार, 11 जुलाई 2009

शिष्टाचार

यह घटना उस समय की है जब ईश्वरचन्द्र विद्यासागर संस्कृत कालेज के आचार्य थे । एक बार उन्हें किसी काम से प्रेसीडेंसी कालिज के अंग्रेज आचार्य कैर से मिलने जाना पड़ा । कैर उस समय जूते पहने मेज पर पांव फैलाए बैठे थे । खड़े होकर स्वागत करने की तो बात दूर रही, वह ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को देख कर भी उसी तरह बैठे रहे । ईश्वरचंद्र को यह अच्छा नहीं लगा, पर वह चुपचाप इस अपमान को पी गए ।
कुछ दिन बाद किसी काम से कैर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां आए। उन्हें देखकर ईश्वरचंद्र ने चप्पलों समेत अपने पांव उठा कर मेज पर फैला लिए और आराम से कुर्सी पर बैठे रहे । उन्होंने कैर से बैठने को भी नहीं कहा । कैरे ने उनके इस दुर्व्यवहार की शिकायत लिखित रूप से शिक्षा परिषद् के सचिव डा. मुआट से की । डा. मुआट ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को भलीभांति जानते थे, फिर भी एक दिन वह कैर को लेकर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां गए और बातचीत में कैर की शिकायत का जिक्र किया । इस पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कहा, ''हम भारतीय लोग अंग्रेजों से ही यूरोपीय शिष्टाचार सीखते हैं । जब मैं इनसे मिलने गया था तो यह इसी तरह बैठे रहे थे । इस से मैंने समझा कि यूरोपीय शिष्टाचार यही है, इसलिए मैंने इनका अनुशरण किया । इन्हें नाराज करने का मेरा इरादा बिल्कुल भी नहीं था । उनकी इस बात को सुनकर डा॰ मुआट और कैर को शार्मिंदा होना पड़ा ।

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