भारतीय इंजीनियरों के पितामह डॉक्टर विश्वेश्वरैया हमेशा निष्पक्ष ढंग से कार्य करते थे । एक बार जब वह मैसूर रियासत के दीवान थे तो किसी गांव में उनका कैंप लगा । एक दिन वहां काम करते वक्त उन की उंगलियों में चोट लग गई । गांव के डॉक्टर ने उचित रूप से मरहमपट्टी की । विश्वेश्वरैया ने 25 रूपए का चैक फीस के रूप में डॉक्टर को दे दिया । चैक को लौटाते हुए डॉक्टर बोला, ''मेरा सौभाग्य है कि आप की सेवा करने का मुझे अवसर मिला। इस पर विश्वेश्वैरया उस डॉक्टर पर बिगड़े और बोले, ''हर मरीज की सेवा करने का मौका आप का सौभाग्य है, आप को ऐसा महसूस करना चाहिए, जो लोग पैसा दे सकते हैं, उनसे लेना चाहिए ताकि जो लोग पैसा नहीं दे सकते उन से लेने की लालसा आप में न रहे। आप ने अपना कर्त्तव्य किया कृपया मुझे अपना कर्त्तव्य करने दें ।''
रविवार, 25 अक्तूबर 2009
शनिवार, 17 अक्तूबर 2009
गौरव
दीवाली की शुभकामनाओं के साथ एक प्रस्तुति -
हाकी के दिवंगत जादूगर ध्यानचंद ने एक बार हिटलर के सामने अपनी बेहतरीन खेल कला का प्रदर्शन किया तो उसे खुश हो कर हिटलर ने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि वह जर्मनी की टीम में शामिल हो जाए तो उन्हें कप्तान बना दिया जाएगा ।
हिटलर ने प्रस्ताव को नकारते हुए ध्यानचंद ने जवाब दिया,'' मैं अपने देश की टीम में एक साधारण खिलाड़ी की हैसियत से खेलना ज्यादा सम्मान जनक मानता हूं । दूसरे देश की टीम का कप्तान बन कर मुझे संतोष और गौरव नहीं मिल सकता ।'' यह सुन कर हिटलर अवाक रह गया ।
हाकी के दिवंगत जादूगर ध्यानचंद ने एक बार हिटलर के सामने अपनी बेहतरीन खेल कला का प्रदर्शन किया तो उसे खुश हो कर हिटलर ने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि वह जर्मनी की टीम में शामिल हो जाए तो उन्हें कप्तान बना दिया जाएगा ।
हिटलर ने प्रस्ताव को नकारते हुए ध्यानचंद ने जवाब दिया,'' मैं अपने देश की टीम में एक साधारण खिलाड़ी की हैसियत से खेलना ज्यादा सम्मान जनक मानता हूं । दूसरे देश की टीम का कप्तान बन कर मुझे संतोष और गौरव नहीं मिल सकता ।'' यह सुन कर हिटलर अवाक रह गया ।
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
नींव का पत्थर
(२ अक्टूबर) शास्त्री जी के जन्म-दिन पर विशेष प्रस्तुति
लालबहादुर शास्त्री बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे, लोग उन के भाषण, निःस्वार्थ सेवा भावना जैसे गुणों से अनायास ही प्रभावित हो जाते थे, लेकिन जब वह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो बहुत ज्यादा संकोची हो गए | वह नहीं चाहते थे कि उन का नाम अखबारों में छपे और लोग उन की प्रशंसा और स्वागत करें । एक दिन शास्त्री जी के कुछ मित्रों ने उन से पूछा, ''शास्त्री जी , आप को अखबारों में नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों हैं ?'' शास्त्री जी कुछ देर सोच कर बोले, '' लाला लाजपत राय जी ने लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था, '' लालबहादुर, ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं, एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन को सारी दुनिया देखती है तथा प्रशंसा करती है, दूसरे वे पत्थर हैं जो ताजमहल की नींव में लगे हैं, जिनके जीवन में केवल अंधेरा ही अंधेरा है, लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा रखे हुए हैं ? लाला जी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं, मैं नींव का पत्थर ही बना रहना चाहता हूँ |
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