शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009

नींव का पत्थर

( अक्टूबर) शास्त्री जी के जन्म-दिन पर विशेष प्रस्तुति
लालबहादुर शास्त्री बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे, लोग उन के भाषण, निःस्वार्थ सेवा भावना जैसे गुणों से अनायास ही प्रभावित हो जाते थे, लेकिन जब वह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो बहुत ज्यादा संकोची हो गए | वह नहीं चाहते थे कि उन का नाम अखबारों में छपे और लोग उन की प्रशंसा और स्वागत करें एक दिन शास्त्री जी के कुछ मित्रों ने उन से पूछा, ''शास्त्री जी , आप को अखबारों में नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों हैं ?'' शास्त्री जी कुछ देर सोच कर बोले, '' लाला लाजपत राय जी ने लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था, '' लालबहादुर, ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं, एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन को सारी दुनिया देखती है तथा प्रशंसा करती है, दूसरे वे पत्थर हैं जो ताजमहल की नींव में लगे हैं, जिनके जीवन में केवल अंधेरा ही अंधेरा है, लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा रखे हुए हैं ? लाला जी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं, मैं नींव का पत्थर ही बना रहना चाहता हूँ |

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत ही अद्भुत संस्मरण सुनाया आपने...और शास्त्री जी को याद करने और कराने के लिये आभार ...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही बढिया प्रसंग सुनाया (पढाया) आपने ।
धन्यवाद्!!!