रविवार, 15 अगस्त 2010

प्रेरणा

आजादी की ६३वीं वर्षगाठ पर आपको हार्दिक शुभकामनांए।
स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों की बात है, जब जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने हजारों निर्दोष भारतीयों पर गोलियां चलवाई थीं और धरती खून से लाल हो गई थी । जब भगतसिंह ने यह सुना, उस समय उनकी उम्र केवल 12 वर्ष थी । अगले दिन वह घर से स्कूल जाने के लिए निकले, पर स्कूल न जाकर जलियांवाला बाग गए। वहां धरती अभी तक लाल थी । वह वहीं बैठ गए और एक शीशी में खून से सनी मिट्टी भरने लगे । मिट्टी भर कर शीशी जेब में रख ली और वहीं बैठ कर घंटों सोचते रहे । जब उन का ध्यान टूटा तो शाम घिर आई थी । स्कूल में कब की छुट्टी हो चुकी थी ।
                                        जब वह देरी से घर पहुंचे तो बहन ने पूछा, ''इतनी देर कहां लगा दी ?'' '' जलियांवाला बाग गया था,'' फिर उन्होंने शीशी जेब से निकाली । बहन ने पूछा, ''इस में क्या है?'' '' यह शहिदों का खून है।'' ''इससे क्या होगा?'' भगतसिंह ने शीशी को मजबूती से पकड़ते हुए दृढ़ता से कहा,''मुझे प्रेरणा मिलेगी।'' उसी प्रेरणा का परिणाम था कि समय आने पर वह हंसते हंसते मातृभूमि के लिए शहीद हो गए ।

3 टिप्‍पणियां:

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रेरक प्रसंग लिखा हैं आपने.
आप बहुत कम लिखते हैं, कृपया थोड़ा ज्यादा लिखा करे.
आपकी लेखनी मुझे पसंद हैं.
प्लीज़ थोड़ा ज्यादा लिखने का प्रयास तो करे.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Rohit Singh ने कहा…

जाहिर है हिंद के जवानों का खून अभी भी नही जोशिला है। ये कड़ी अब तक नहीं टूटी। न ही टूटेगी। बस राजनीति इन्हें बांटना छोड़ दे।

Rohit Singh ने कहा…

हां एक बात लिखना भूल गया। जहां तक मुझे जानकारी है उसके अनुसार मुंशी प्रेमचंद जी को रायसाहब की पदवी लेने पर उनकी उलझन को पत्नी ने ही दूर किया था। उन्होंने पत्नी के पूछने पर जवाब दिया था कि क्या करुं......पदवी लेता हूं तो कुछ आमदनी भी होगी.... मैं तो जनता के लिए लिखता हूं...तब उनकी पत्नी ने सीधे पूछा था.....तो सरकार को क्या जवाब देंगे.....पत्नी का ईशारा समझ कर उन्होंने कहा कि सरकार को लिख देंगे की जनता की रायसाहबी उन्हें मंजूर है पर सरकार की नहीं....