एक बार एक गरीब किसान ने गौतम बुद्ध से अपने गांव आने का आग्रह किया। बुद्ध उस गांव में पहुंचे तो सारे गांव के लोग उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़े, लेकिन उसी दिन बुद्ध को गांव बुलाने वाले किसान के बैलों की जोड़ी कहीं खो गई । किसान अब दुविध में फंस गया कि वह महात्मा बुद्ध का प्रवचन सुनने जाए या अपने बैलों को खोजे । काफी सोचने के बाद उसने अपने बैलों को ही ढूंढ़ने का निर्णय किया ।
घंटों भटकने के बाद कहीं जा कर उसे अपने बैल मिले । थकामांदा किसान घर आते ही भोजन कर के सो गया । अगले दिन वह संकोच के साथ बुद्ध के पास गया । बुद्ध उसकी परेशानी समझ गए और बोले, ''मेरी नजर में यह किसान ही मेरा सच्चा अनुयायी है । इसने उपदेशों से अधिक कर्म को महत्त्व दिया है । अगर कल यह अपने बैल खोजने न जाता और यहां आ कर मेरा प्रवचन सुनने लगता तो इसे मेरी कही हुई बातें समझ में नहीं आतीं, क्योंकि इस का मन कहीं और भटक रहा होता । इसने कर्म को महत्त्व दे कर सराहनीय कार्य किया है।''
घंटों भटकने के बाद कहीं जा कर उसे अपने बैल मिले । थकामांदा किसान घर आते ही भोजन कर के सो गया । अगले दिन वह संकोच के साथ बुद्ध के पास गया । बुद्ध उसकी परेशानी समझ गए और बोले, ''मेरी नजर में यह किसान ही मेरा सच्चा अनुयायी है । इसने उपदेशों से अधिक कर्म को महत्त्व दिया है । अगर कल यह अपने बैल खोजने न जाता और यहां आ कर मेरा प्रवचन सुनने लगता तो इसे मेरी कही हुई बातें समझ में नहीं आतीं, क्योंकि इस का मन कहीं और भटक रहा होता । इसने कर्म को महत्त्व दे कर सराहनीय कार्य किया है।''
4 टिप्पणियां:
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मुझे भी अपना खोया बैल खोजने जाना है.
तथा गत से आगत होकर मिलूँगा.
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कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
कर्म की प्रधानता का महत्व सभी ने बताया है पर हम में से ज्यादातर भाग्य का रोना रोते है |
कर्म करते रहना ही श्रेष्ठ है ...!
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