सुकरात यूनान के महान विचारक और दार्शनिक थे । वह सड़क पर जहां भी खड़े हो जाते, लोग उन्हें घेर लेते और उन से तरह तरह के प्रश्न पूछते । कभी कभी तो लोग बेसिरपैर के प्रश्न भी पूछ बैठते, किंतु सुकरात शांत भाव से उन प्रश्नों का उत्तर देते रहते । लोगों से घिरे रहने के कारण सुकरात अधिक् समय तक घर से बाहर ही रहते । इस से उनकी पत्नी बेहद नाराज रहती । वैसे भी वह बड़े कठोर स्वभाव की स्त्री थी । अकारण ही सुकरात से झगड़ती रहती ।
एक बार किसी बात को लेकर वह उनसे झगड़ रही थी । सुकरात बड़े शांत भाव से उसे सुन रहे थे । जब काफी देर हो गई और उनकी पत्नी का बोलना बंद न हुआ तो सुकरात उठ कर बाहर जाने लगे । यह देखकर उनकी पत्नी का क्रोध और भी बढ़ गया । पास ही गंदे पानी से भरी बाल्टी रखी थी । क्रोध से तिलमिलाते हुए उसने सारा गंदा पानी सुकरात के उपर उड़ेल दिया । वह उपर से नीचे तक भीग गए और कपड़े भी गंदे हो गए । पर वह शांत रहे - जैसे कुछ हुआ ही न हो । थोड़ी देर बाद मुस्करा शांत भाव से सुकरात ने कहा, ''इतने भीषण गर्जन के बाद वर्षा तो होनी ही चाहिए थी।''
3 टिप्पणियां:
इतनी सहनशीलता थी, इसीलिये सुकरात ’सुकरात’ बन सके।
पत्नी के क्रोध पर कंट्रोल करना हो तो सहनशीलता ही एकमात्र उपाय है.
इसिलिए तो सुकरात महान थें,
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