सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

सच्चा उपदेश

एक दिन महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास पहुंचा और बोला,''आज मैंने एक भिखारी को बुला कर बहुत देर तक उसे धर्म की शिक्षा दी, प्रेरक उपदेश दिए, परन्तु उस मूर्ख ने मेरी बातों पर कोई गौर नहीं किया ।''
शिष्य की बात सुन कर बुद्ध ने उसे भिखारी को बुला लाने को कहा । जब भिखारी दीनहीन अवस्था में आया तो बुद्ध ने उसे भर पेट खाना खिला कर प्रेमपूर्वक विदा कर दिया । इस पर उनके शिष्य ने आश्चर्य से पूछा,''आप ने उसे बिना कोई उपदेश दिए भेज दिया?'' इस पर बुद्ध बोले,''आज उसके लिए भोजन ही उपदेश था । उसे प्रवचन से ज्यादा अन्न की जरूरत थी । यही सच्चा उपदेश है ।'' यह सुन कर उनका शिष्य निरुत्तर हो गया ।

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

प्रजा की धरोहर

दिल्ली के सिंहासन पर उन दिनों गुलाम वंशीय बादशाह नसीरूद्दीन का शासन था । वह बड़ा नीतिनिष्ठ एवं पुरुषार्थी शासक था । पुस्तक लिखने से उसको जो आय होती, उसी से वह अपना जीवन निर्वाह करता था । राजकोष से उसने कभी एक पैसा भी अपने या अपने परिवार के निजी खर्च के लिए नहीं लिया था । मुसलमान शासकों के रिवाज के विपरीत उसके एक ही पत्नी थी । नौकर कोई भी नहीं था । यहां तक कि रसोई भी स्वयं बेगम को अपने हाथ से बनानी पड़ती थी ।
एक बार रसोई बनाते समय उनकी बेगम साहिबा का हाथ जल गया । बेगम ने बादशाह से कुछ दिन के लिए नौकरानी रखने की प्रार्थना की तो बादशाह ने उत्तर दिया,''प्रजाकोष पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। वह तो मेरे पास प्रजा की धरोहर मात्र है। उस में से मैं अपने खर्च के लिए एक पैसा भी नहीं ले सकता और मेरी स्वयं की कमाई इतनी है नहीं कि उसमें से नौकर रखा जाए। तुम ही बताओं हम नौकर कहां से रखें।'' अपने पति की बात सुनकर उनकी बेगम अत्यंत प्रभावित हुई।