शनिवार, 27 जून 2009

प्रतिज्ञा

डाक्टर जाकिर हुसैन उस समय राष्ट्रपति नहीं थे । उनके घर पर एक नौकर था । नौकर कार्य करने में तो कुशल था, पर बहुत आलसी था । वह समय पर नहीं उठता था । घर के सभी सदस्यों ने जाकिर हुसैन से इस बारे में उसकी शिकायत की। जाकिर हुसैन एक दिन सुबह उठे और सोते हुए नौकर के पास जा कर मधुर स्वर में बोले, ''मालिक, उठिए, मैं आप के लिए मुंह सापफ करने को पानी लाया हूँ।'' यह सुन कर नौकर लगा कि वह सपना देख रहा है, अतः वह नहीं उठा । कुछ समय के बाद जाकिर हुसैन चाय ला कर बोले, ''मालिक, अब तो उठिए, मैं आपके लिए चाय लाया हूँ ।'' नौकर ने आंख खोल कर देखा कि मालिक सचमुच चाय का कप लिए खड़े हैं । वह शर्म से जमीन में गड़ गया । उसी समय उसने प्रतिज्ञा की कि वह जल्दी उठकर समय पर सारे काम किया करेगा ।

गुरुवार, 25 जून 2009

विचारशील

गहरी नींद में सोते हुए नेपोलियन को उसके सेनापति ने मध्य रात्रि में जगाया और दक्षिणी मोर्चे पर शत्रुओं द्वारा अचानक हमला किए जाने की खबर दी। नेपोलियन आंखें मलते हुए उठा और दीवार पर टंगे 34 नंबर के नक्शे को उतारते हुए बोला, ''इसमें बताए हुए तरीके के अनुसार काम करो '' सेनापति चकित रह गया कि जिस हमले का उसे अनुमान तक था, उस हमले की संभावना को नेपोलियन ने समय से पूर्व ही कैसे सोच लिया और कैसे उस का प्रतिकार खोल लिया
सेनापति को आश्चर्यचकित देख कर नेपालियन ने कहा, '' विचारशील लोग अच्छी से अच्छी आशा करते हैं, किंतु बुरी से बुरी परिस्थिति के लिए भी तैयार रहते हैं मेरी मनः स्थिति सदा ऐसी ही रही है इसलिए मुझे विपत्ति आने से पहले ही उसका अनुमान लगाने और उपाय सोचने में संकोच नहीं होता ''

मंगलवार, 23 जून 2009

नींव का पत्थर

लाल बहादुर शास्त्री बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे । लोग उन के भाषण, निःस्वार्थ सेवा भावना जैसे गुणों से अनायास ही प्रभावित हो जाते थे । लेकिन जब वह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो बहुत ज्यादा संकोची हो गए। वह नहीं चाहते थे कि उनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा और स्वागत करें।
एक दिन शास्त्री जी के कुछ मित्रों ने उनसे पूछा, ''शास्त्री जी, आपको अखबारों में नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों है ?'' शास्त्री जी कुछ देर सोच कर बोले, ''लाला लाजपत राय जी ने लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था कि लाल बहादुर ताज महल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं । एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन को सारी दुनिया देखती है तथा प्रशंसा करती है । दूसरे वे पत्थर हैं जो ताजमहल की नींव लगे हैं, जिन के जीवन में केवल अंधेरा ही अंधेरा है लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा रखे हुए हैं? तुम नींव के पत्थर बनने का प्रयास करना । '' लाला जी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं । अतः मैं नींव का पत्थर ही बना रहना चाहता हूँ ।

गुरुवार, 18 जून 2009

उपयोग

जब मौलाना अबुल कलाम आजाद की पत्नी बेगम आजाद का कलकत्ते में देहांत हुआ उस समय मौलाना आजाद अहमदाबाद की जेल में कैद थे । उनके कृतज्ञ देशवासी बेगम आजाद की स्मृति में स्मारक बनाना चाहते थे । इस के लिए उन्होंने आजाद स्मृति कोष बनाया और धन इकट्ठा करने लगे ।
जब मौलाना आजाद जेल से छूट कर आए तो उन्हें इस बात का पता चला । उन्होंने तत्काल कहा, ''बेगम आजाद स्मृति कोष बंद किया जाए और इस कोष में इकट्ठे धन को इलाहाबाद के कमला नेहरू अस्पताल को दे दिया जाए ।'' इस तरह उस धन से कमला नेहरु अस्पताल में बेगम आजाद कक्ष बनवाया गया ।

सीख

नेहरू जी 1950 में लंदन गए । वहां एक समारोह में उनकी भेंट ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री चर्चिल से हुई । चर्चिल नेहरू जी के कटु आलोचक थे । लेकिन वहां दोनों की खुल कर बात हुई , दोनों पुराने दिनों को याद कर रहे थे। इसी चर्चा के दौरान चर्चिल ने नेहरू जी से पूछा- आपने अंग्रेजों की जेल में कितने वर्ष बिताए ? नेहरू जी ने उत्तर दिया- लगभग 10 वर्ष । इस पर चर्चिल ने कहा, ‘हम ने आप के साथ ऐसा व्यवहार किया । आप को तो हम से घृणा करनी चाहिए।' नेहरू जी ने उत्तर दिया, ''यह बात नहीं है, हमने एक ऐसे नेता के अधीन काम किया है जिस ने हमें दो बातें सिखाई हैं । पहली तो यह कि किसी से डरो मत और दूसरी यह कि किसी से घृणा मत करो ।'' हम तब आप से डरते भी नहीं थे और इसलिए अब घृणा भी नहीं करते । चर्चिल निरुत्तर हो गये ।

बुधवार, 17 जून 2009

सच्चा उपदेश

एक बार रात के समय महात्मा बुद्ध प्रवचन कर रहे थे प्रवचन सुनने के लिए बैठा एक व्यक्ति बार-बार नींद के झोंके ले रहा था थोड़ी देर बाद महात्मा बुद्ध ने उसे पुकार कर पूछा-वत्स, सो रहे हो ? नहीं, महात्मन् , हड़बड़ा कर उस ने कहा महात्मा बुद्ध का प्रवचन चलता रहा वह व्यक्ति पहले की तरह उंघता रहा। महात्मा बुद्ध बीच-बीच में वही प्रश्न पूछ-कर उसे जगा दिया करते थे, लेकिन नहीं महात्मन् कह कर वह फिर से सो जाता था।
काफी समय के बाद बुद्ध ने पूछा- वत्स, जीवित हो? नहीं महात्मन् , हर बार की तरह इस बा भी उस ने कहा श्रोताओं में हंसी की लहर दौड़ गई महात्मा बुद्ध भी मुस्कराए फिर गंभीर हो कर बोले- वत्स, निन्द्रा में तुम से सही उत्तर निकल गया, जो निद्रा में है, वह मृतक समान ही है