आजादी से कुछ साल पहले की बात है । पूरे देश में आन्दोलन की लहर थी । उसी लहर में उड़ीसा के ढेंकानाल जिले में अनगुल गांव की जनता वहां के राजा के खिलाफ एकजुट होने लगी । वहां प्रजा परिषद् के गठन की मांग होने लगी । वहां का राजा अंग्रेजों की कठपुतली था । आन्दोलन से घबरा कर उसने अंग्रेजों से सहायता मांगी, अंग्रेजों ने सहायता देने के बदले यह शर्त रखी कि आन्दोलन दबाने के बाद उस राज्य का संचालन उन्हें सौंपना होगा । राजा ने शर्त मान ली । उसी दिन अंग्रेज फौजी अनगुल जाने के लिए नदी के दूसरे पार आ धमके। नदी के किनारे एक 12 वर्षीय लड़के से फौज की एक टुकड़ी के कप्तान ने कड़क कर कहा, ''ए लड़के, नाव लगा, हमें पार जाना है|'' कप्तान ने सोचा कि दूसरे लड़कों की तरह वह भी कांप कर हुक्म पूरा करेगा, लेकिन वह लड़का तन कर खड़ा रहा और उसकी आज्ञा नहीं मानी । कप्तान चौंक गया, फिर गुस्से से कांपते हुए बोला, ''चल, नाव लगा ।'' ''नहीं, मैं नहीं लगाऊंगा|'' उस लड़के ने कड़क कर कहा । ''बहुत हो चुका| चलो! नाव पर चढ़ो|'' गोरे कप्तान ने झुंझला कर बाकी अंग्रेजों को आदेश दिया । ''नहीं, खबरदार! जो कोई नाव पर चढ़ा|'' लड़का पतवार लेकर बीच में अड़ गया । एक अंग्रेज सिपाही इसे बचपन की चंचलता समझ कर आगे बढ़ा । तभी पतवार का चैड़ा सिरा उस के सिर से टकराया और अगले ही क्षण वह खून से लथपथ सिर को थामे पानी में गोते लगा रहा था । यह दृश्य देख कर क्रोध् से अंग्रेज कप्तान हिंसक हो उठा और अगले ही क्षण उस की पिस्तौल गरजी, धांय-धांय ? और इस तरह अनगुल का वह साहसी किशोर बाजीराव अपने गांव की स्वतंत्रता को कायम रखने के प्रयास में शहीद हो गया ।
1 टिप्पणी:
badhiya post
स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामना
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