बगदाद के खलीफा का एक गुलाम था हाशम । वह बहुत बदसूरत था । सब गुलाम उसका मजाक उड़ाया करते थे । एक बार खलीफा अपने बहुत सारे गुलामों के साथ बग्घी में जा रहे थे । एक जगह कीचड़ में उनका घोड़ा फिसल गया । खलीफा के हाथ में पकड़े हीरे-मोतियों की पेटी गिर कर खुल गई। खलीपफा ने गुलामों से कहा,'' जल्दी से हीरे-मोती बीन लो । सब को इनाम दिया जाएगा ।''
सुनकर सारे गुलाम हीरे-मोती बटोरने के लिए दौड़ पड़े । सिर्फ हाशम खड़ा रहा । खलीफा ने कहा, ''तुम क्यों नहीं जाते?'' उसने कहा, ''सब से कीमती हीरा तो आप हैं, मैं आप को छोड़कर क्यों जाऊं ?'' खलीफा उससे बहुत खुश हुए और उसी वक्त उसे आजाद कर दिया ।
सुनकर सारे गुलाम हीरे-मोती बटोरने के लिए दौड़ पड़े । सिर्फ हाशम खड़ा रहा । खलीफा ने कहा, ''तुम क्यों नहीं जाते?'' उसने कहा, ''सब से कीमती हीरा तो आप हैं, मैं आप को छोड़कर क्यों जाऊं ?'' खलीफा उससे बहुत खुश हुए और उसी वक्त उसे आजाद कर दिया ।
7 टिप्पणियां:
शब्दों का असर या कहें हाजिर जबावी अच्छी लगी - हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत अच्छी कथा,
शब्द...
बहुत बडी एहमियत रखते हैं....
acchhi laghu katha.
बहुत अच्छी कथा!
बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने.
जुबान की कीमत हर आदमी को समझनी चाहिए, जो जुबान की कीमत नहीं समझते वे सदा घाटे मैं रहते हैं.
धन्यवाद.
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शब्दों में अथाह शक्ति है बस सही वक्त पर सही रूप से कहे जाने चाहिये हाशिम की तरह
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
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