वल्लभ भाई पटेल का बचपन गांव में बीता था । वह जिस गांव में रहते थे, वहां कोई अंग्रेजी स्कूल नहीं था । इसलिए अंग्रेजी पढ़ने वाले विद्यार्थी नित्य 10-11 किलोमीटर पैदल चल कर दूसरे गांव जाते थे । गर्मियों में सुबह 7 बजे स्कूल लगता था । इसलिए सूर्योदय से पहले ही घर से निकल कर खेतों से होते हुए जाना पड़ता था । एक खेत की मेड़ पर लगे पत्थर से अकसर किसी न किसी को ठोकरे लग जाती थी । एक दिन उसी खेती की मेड़ पार करने के बाद छात्रों की एक टोली ने देखा कि उनमें से एक साथी कम है । दरअसल वल्लभ भाई पटेल पीछे छूट गए थे । टोली मुड़ कर लौटी तो देखा कि वल्लभ भाई पटेल की खेत की मेड़ पर किसी चीज से जोर आजमाइश कर रहे हैं । साथियों ने आवाज दी, ''तुम पीछे क्यों रूक गए ?'' ''बस यह पत्थर हटा लूं ।'' वल्लभ भाई पटेल ने वह पत्थर हटाया और साथियों के साथ चलते हुए बोले, ''रास्ते के इस पत्थर से अकसर अड़चन पड़ती थी । अंधेरे में जाने कितनों के पैरों में चोटें आई होंगी । आते जाते चोट लगे और रूकावट पड़े, ऐसी चीज को हटा देने के सिवा कोई चारा नहीं । मैंने निश्चय किया था कि आज इसे हटा कर ही आगे बढूंगा । इसलिए रूक गया था ।''
7 टिप्पणियां:
prernadayak.
बहुत बढ़िया सीख-प्रेरणा दी हैं आपने.
निश्चित रूप से लोगो को विचार करना चाहिए.
दूसरो के रास्ते में आने वाली कठिनाइयों अपनी कठिनाई समझने और उनको हटाने वाला महान होता हैं. तत्काल (उस वक्त) भले ही वो महान ना कहलाये. पर भविष्य में, आगे चलकर वो महान जरूर कहलाता हैं.
बहुत बढ़िया लिखा उसके लिए धन्यवाद.
थैंक्स.
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that is realy fantastic story about Mr. patel thanx to giveing every one this real life effort.
बहुत बढिया । निश्चय करने पर आदमी क्या नही कर सकता ।
acchi lagi. aaj ke samay me aise log virle hi milte hain, jo dukhdayi bhi hai.
बहुत अच्छा लिखा है |बिना निश्चय कोई काम नहीं हो पाता |बधाई
आशा
patelji ki mahanta ka ek aur udaharan !
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