मंगलवार, 23 जून 2009

नींव का पत्थर

लाल बहादुर शास्त्री बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे । लोग उन के भाषण, निःस्वार्थ सेवा भावना जैसे गुणों से अनायास ही प्रभावित हो जाते थे । लेकिन जब वह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो बहुत ज्यादा संकोची हो गए। वह नहीं चाहते थे कि उनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा और स्वागत करें।
एक दिन शास्त्री जी के कुछ मित्रों ने उनसे पूछा, ''शास्त्री जी, आपको अखबारों में नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों है ?'' शास्त्री जी कुछ देर सोच कर बोले, ''लाला लाजपत राय जी ने लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था कि लाल बहादुर ताज महल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं । एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन को सारी दुनिया देखती है तथा प्रशंसा करती है । दूसरे वे पत्थर हैं जो ताजमहल की नींव लगे हैं, जिन के जीवन में केवल अंधेरा ही अंधेरा है लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा रखे हुए हैं? तुम नींव के पत्थर बनने का प्रयास करना । '' लाला जी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं । अतः मैं नींव का पत्थर ही बना रहना चाहता हूँ ।

2 टिप्‍पणियां:

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) ने कहा…

प्रेरक पोस्ट.. सही कहा आपने.. नींव का पत्थर बने रहने से ही उन्नति के द्वार खुलते हैं..

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

भई वाह्! दिनेश जी, कितना प्रेरणादायक प्रसंग सुनाया आपने....बस इसी तरह से अलख जगाए रखिए।