शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

उपयोग

पंडित मदनमोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए जगह-जगह जा कर धन इकट्ठा कर रहे थे । एक बार वे सहयता मांगने हैदराबाद के नवाब के यहां पहुंचे, लेकिन उन्हें खाली हाथी वापस आना पड़ा । हैदराबाद में घूमते हुए उनकी दृष्टि एक नी व्यक्ति की अर्थी पर पड़ी, जिसे उस के परिजन अंतिम संस्कार करने श्मशान घाट ले जा रहे थे । परंपरा के अनुसार अर्थी पर पैसे लुटाए जा रहे थे । मालवीयजी शमयात्रा में शामिल हो कर पैसे उठाने लगे । एक संपन्न व्यक्ति को ऐसा करते देख कुछ लोगों ने टोका तो मालवीयजी ने पूरी घटना बताई कि किस उद्देश्य से वह हैदराबाद आए थे और कैसे उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा था । उन्होंने आगे कहा,''इस पैसे को जोड़ कर जो न प्राप्त होगा, उसे मैं हैदराबाद के सहयोग के रूप में निर्माण कार्य में लगाउंगा । यह सुनकर उस शवयात्रा में शामिल नाढ्य लोगों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने आपस में चंदा इकट्ठा करके कई हजार रूपये मालवीयजी को दिए ।

2 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर ! जी हाँ मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिये धनार्जन जिस तरह किया वह सर्वदा प्रेरक रहा है.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

सुन्दर प्रेरक प्रसंग्! ये मालवीय जी की निष्ठा ही थी जिसके कारण वो अपने उस धनार्जन के प्रयास में सफल हुए।