एक बार सुभाषचन्द्र बोस एक अंग्रेज मित्र के साथ इंग्लैंड की एक सड़क पर चले जा रहे थे । तभी एक पालिश करने वाले अंग्रेज युवक ने उनके पास आ कर पूछा, ''साहब, पालिश कराइएगा?'' सुभाष बोस ने एक नजर अपने चमचमाते जूतों की ओर डाली, फिर जूते आगे बढ़ा दिए । पालिश करा के जब सुभाष चन्द्र कुछ आगे बढ़े तो एक अन्य अंग्रेज युवक ने उन से पूछा, ''साहब, पालिश कराइएगा?'' सुभाष बोस ने पुनः अपने जूते आगे बढ़ा दिए । यह देख कर उनके अंग्रेज मित्र ने पूछा, ''सुभाष, अभी थोड़ी देर पहले ही तो तुम ने जूते पालिश कराए हैं, फिर दोबारा पालिश क्यों करा रहे हो?'' सुभाष बोस ने निर्भीकता से जवाब दिया, बात यह है दोस्त कि अंग्रेजों से अपने जूतों पर पालिश कराते समय मेरा सिर गर्व से उंचा हो जाता है ।''
2 टिप्पणियां:
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
बहुत सार्गर्भित प्रसंग हैाभार्
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