सोमवार, 2 नवंबर 2009

संस्कार

रामकृष्ण परमहंस अपने लोटे को प्रतिदिन मांजते थे । यह देख कर उनका एक शिष्य मन ही मन सोचता था कि इस तरह लोटा मांजने का अर्थ क्या हैं? आखिरकार जब उस से नहीं रहा गया तो वह उनसे पूछ बैठा । रामकृष्ण परमहंस ने से जवाब में हंस कर कहा,''याद रखो कि हमें अपने अंतर्मन को भी इसी तरह मांजना है । यह लोटा कितना ही साफ क्यों न हो, यदि इसे प्रतिदिन मांजा न जाए तो यह मैला हो जाएगा । इसी तरह बुरे संस्कारों में पड़ कर हमारा मन दूषित न हो जाए इसके लिए भी हमें निरन्तर अच्छे संस्कारों से उसे मांजना चाहिए ताकि बुराई का मैल उसे गंदा न कर सके।''