मंगलवार, 11 मई 2010

अभिमान

जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तो उसी दौरान उसकी मुलाकात एक साधु से हुई थी । जब सिकंदर उसके पास पहुंचा तो वह धूप का आनंद ले रहा था । साधु की बातचीत से प्रभावित हो कर सिकंदर ने पूछा,''महाराज, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?'' उसने कहा,''तुरंत यहां से चले जाओ ।''
सिकंदर को ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । वह क्रोधित होकर बोला, ''क्या आप जानते हैं कि मैं वह सिकंदर हूं, जो कुछ भी कर सकता है।'' साधु ने शांत भाव से कहा,''यदि ऐसा है तो मुझे मार कर फिर से जिंदा कर दो।'' साधु की यह बात सुनकर सिकंदर का सिर शर्म से झुक गया ।

7 टिप्‍पणियां:

Darshan Lal Baweja ने कहा…

वाह वाह

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

बच गए बाबा, अगर गुस्से में आकर सिकंदर आपको जान से मार देता तो.......
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सटीक!!

राम त्यागी ने कहा…

अहंकार अँधा होता है

समयचक्र ने कहा…

अभिमान और अहंकार विनाश का कारण बनता है.....

Asha Joglekar ने कहा…

आपकी लघु कथाएँ प्रेरक तो हैं ही पर एकदम नई भी हैं । अहंकार तो आदमी को विनाश की और ही ले जाता है ।

ढपो्रशंख ने कहा…

ज्ञानदत्त पांडे ने लडावो और राज करो के तहत कल बहुत ही घिनौनी हरकत की है. आप इस घिनौनी और ओछी हरकत का पुरजोर विरोध करें. हमारी पोस्ट "ज्ञानदत्त पांडे की घिनौनी और ओछी हरकत भाग - 2" पर आपके सहयोग की अपेक्षा है.

कृपया आशीर्वाद प्रदान कर मातृभाषा हिंदी के दुश्मनों को बेनकाब करने में सहयोग करें. एक तीन लाईन के वाक्य मे तीन अंगरेजी के शब्द जबरन घुसडने वाले हिंदी द्रोही है. इस विषय पर बिगुल पर "ज्ञानदत्त और संजयदत्त" का यह आलेख अवश्य पढें.

-ढपोरशंख