बुधवार, 19 मई 2010

भोजन का मूल्य

स्वतन्त्रता से पहले सौराष्ट्र में ढसा राज्य के राजा थे गोपालदास देसाई । वह जवानी के दिनों में बड़े ठाट-बाट से रहते थे । एक बार वह कहीं गए । स्टेशन पर उन्हें कोई कुली नजर नहीं आया । इतने में एक किसान सा लगने वाला आदमी उनके पास और सामान ले जाकर गाड़ी पर रख दिया । गोपालदास ने उसे चवन्नी दी तो उसने लेने से इन्कार कर दिया ।
उन्होंने कुछ सोच कर कहा, ''एक समय का भोजन कितने पैसों में मिलेगा?'' उसने जवाब दिया,''तब तो मेरी मजदूरी दो अरब इकन्नियां हैं क्योंकि मुझे 40 करोड़ मनुष्यों के भोजन का इंतजाम करना है ।'' यह कहकर वह चला गया । उसी दिन शाम को गोपालदास घूमते हुए एक विशाल सभा में जा पहुंचे, उन्होंने देखा कि वही आदमी जनता को संबोधित कर रहा है । वह और कोई नहीं गांधी जी थे । गोपालदास ने उसी समय राजगद्दी को त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े ।

3 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

प्रेरणा देती घटना। इससे ब्‍लॉग जगत को भी प्रेरणा प्राप्‍त करनी चाहिए।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत प्रेरक जानकारी।

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

महात्मा गांधी जिंदाबाद.
महात्मा गाँधी जी को बदनाम करने वाले लोग और संगठन मुर्दाबाद.
(बहुत बढ़िया)
धन्यवाद.
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