शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

कर्त्तव्य-परायणता

बात उन दिनों की है, जब बगदाद में खलीफा उमर थे । वह जितने इन्साफ पसंद, नेक-दिल थे, उतने ही अनुशासन प्रिय और कर्त्तव्य-परायण भी । उन्होंने शराबियों की शराब की लत छुड़ाने के लिए घोषणा की, यदि कोई व्यक्ति शराब पीता हुआ या पीये हुए पकड़ा गया तो उसे भरे दरबार में 25 कोड़े लगाए जाऐंगे । यह सुन कर शराबी घबरा गए। उन्होंने इस ऐलान की सच्चाई जानने के लिए खलीफा के पुत्र को शराब पिला कर बाजार में छोड़ दिया । उसे तुरंत दरबार में पेश किया गया । दरबारियों के समझाने के बावजूद खलीफा ने आज्ञा दी, ''अपराधी की नंगी पीठ पर 25 कोड़े लगाए जाएं ।'' इतने कोड़े खाने पर उनका पुत्र बेहोश होकर गिर पड़ा और उसने वहीं दम तोड़ दिया।

3 टिप्‍पणियां:

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

kaash aisi kartavya-praayantaa desh ki sarkaaro or naagriko main hoti.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com

संगीता पुरी ने कहा…

ये पुरानी कहानी है .. आज तो इसकी भी परिभाषा बदल गयी है !!

निर्मला कपिला ने कहा…

संगीता जी ने सही कहा है मगर इन कथाओं का प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है ताकि आजकल की पीढी को अपने पूर्वजों की आदर्श पता चलें। धन्यवाद और शुभकामनायें