शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

पेट

एक सज्जन के बहुत आग्रह पर प्रसिद्ध साहित्यकार बर्नाडे शा ने उन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया । लेकिन शा ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह मांसाहारियों के साथ भोजन नहीं खा पाएंगे । सज्जन ने उनकी पंसद का ध्यान रखने का आश्वासन दिया था । भोज वाले दिन शा शाकाहारी मेज पर रखे सलाद को खाने लगे । एक मांसाहारी सज्जन ने उस पर चोट करते हुए कहा, ''आप घास-फूस क्यों खा रहे हैं मुर्गा खाइए ना।'' शा ने जवाब दिया, ''जनाब मेरा पेट कोई कब्रिस्तान नहीं है कि मैं उसमें मुरदे डालता रहूं।''यह जवाब सुनकर वह निरुतर हो गया।

3 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

प्रेरक प्रसंग। लेकिन जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ कि बर्नाड शा दार्शनिक के रूप में अधिक जाना जाता है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

दिनेश शर्मा ने कहा…

श्यामल जी,
आपकी बात सही है परन्तु हर व्यक्ति के जीवन में अनेक पहलु होते हैं जिनके बारे में स्पष्ट रूप से टिप्पणी कर पाना संभव नहीं होता। शेष....आप विद्वान हैं।

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

main PETA india or us se jude tamaam sites se judaa huaa hoon.
main bhi non-veg ke khilaaf raha hoon.
shaa jaise bade aadmi jab non-veg ke khilaaf maujood honge, to nishchit roop se annay logo ko nonveg chhodne or shaakaahaar apnaa ne ki prernaa milegi.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com