बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

शुद्धता

एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरीका की यात्रा से स्वदेश लौट रहे थे। उनके प्रशंसक बंदरगाह पर उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही स्वामी जी बंदरगाह पर उतरे तो उतरते ही वे रज में लोटने लगे। उनके प्रशंसकों ने उन्हें मिट्टी में इस प्रकार लोटते हुए देखा तो वे हैरान रह गए। बाद में जब उन्होंने स्वामी जी से इस संदर्भ में पूछा तो वे बोले,‘‘ मैं पिछले दिनों विदेश में था और अशुद्ध हो गया था इसलिए मातृभूमि की रज में लोट कर शुद्ध हो रहा था।’’

4 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है , बहुत ही प्रेरणादायक लगी ।

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रेरणादायक प्रसंग

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

shuddh hone kaa yh tareekaa mujhe pasand aayaa.
thanks.
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