सोमवार, 28 सितंबर 2009

निश्चय

यह घटना इंडोनेशिया की है । एक स्कूल का छात्र एक दिन अचानक हठ कर बैठा कि आज से मैं स्कूल नहीं जाऊंगा । पिता ने बड़े प्यार से कारण पूछा तो उस ने कहा, ''इस नए स्कूल में लड़के मेरा मजाक उड़ाते हैं।'' पिता ने कहा, ''इस में कौन सी नई बात है, कुछ समय बाद वे तुम से घुलमिल जाएंगे और तुम्हारे मित्र बन जाएंगे।'' ''कुछ भी हो, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा, कह कर लड़के ने किताबें पटक दी ।'' मां-बाप ने लाख समझाया, लेकिन लड़का अपनी जिद पर अड़ा रहा। पिता ने अपने एक मित्र को यह समस्या बताई तो वह मित्र उस लड़के को एक पानी के झरने के पास ले गए । उन्होंने एक बड़ा सा पत्थर पानी के बीच में फेंक दिया और कहा कि ह पत्थर पानी के बहाव में रूकावट डाल देगा | कुछ क्षणों के लिए पानी का वेग रूक गया, लेकिन फिर थोड़ी ही देर में वह अपनी गति से बहने लगा । वह पत्थर पानी में डूब गया ।
इस पर वह लड़के से बोला, ''बेटा, किसी भी प्रकार की रूकावट या बाधओं से नहीं घबराना चाहिए । देखो, पानी भी रूकावट पर विजय पा कर पहले की तरह बह रहा है। फिर तुम मनुष्य होकर बाधाओं से क्यों घबराते हो ?'' लड़के ने अगले दिन से स्कूल जाना प्रारम्भ कर दिया । कुछ दिनों में उसके सहपाठी उसके मित्र बन गए और बाद में स्वतंत्रता संग्राम में उसके अनुयायी बने । यह लड़का और कोई नहीं, बल्कि इंडोनेशिया के भूतपूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो थे । इंडोनेशिया को आजाद कराने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा ।


रविवार, 20 सितंबर 2009

रक्षक

एक बार स्वामी रामतीर्थ जापान गए । वहां उनका खूब सत्कार हुआ । उन्हें एक स्कूल में निमंत्रित किया गया । स्कूल का दौरा करने के दौरान जाने क्या सोच कर स्वामी रामतीर्थ ने नन्हें विद्यार्थी से पूछा, ''तुम किस धर्म को मानते हो ? ''बौद्ध धर्म को |'' विद्यार्थी ने उत्तर दिया । स्वामी जी ने फिर प्रश्न किया, ''हात्मा बुद्ध के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं ?'' विद्यार्थी ने झट उत्तर दिया, ''बुद्ध तो भगवान हैं ।'' यह कहकर उसने मन ही मन बुद्ध का ध्यान कर अपने देश की प्रथा के अनुसार बुद्ध को प्रणाम किया ।
तब स्वामी जी ने उस विद्यार्थी से पूछा, ''तुकन्फ्युशियस के बारे में क्या कहोगे?'' विद्यार्थी ने श्रद्धा भाव से कहा, '' कन्फ्युशियस एक महान् संत थे।'' उसने बुद्ध की तरह कन्फ्युशियस का ध्यान कर उसे भी प्रणाम किया। स्वामी मुस्करा कर बोले, ''अच्छा, अब मेरे एक और प्रश्न का जवाब दो,'' मान लो, अगर कोई देश तुम्हारे जापान पर आक्रमण करता है, और उसके मुख्य सेनाधिति बुद्ध या कन्फ्युशियस हों तो तुम क्या करोगे ?''
स्वामी रामतीर्थ का यह कहना था कि विद्यार्थी का चेहरा क्रोध और जोश के मिले-जुले भाव से तमतमा उठा । वह कड़क कर बोला, ''मैं अपनी तलवार से बुद्ध का सिर काट लूंगा और कन्फ्युशियस को पैरों तले कुचल दूंगा ।'' स्वामी रामतीर्थ यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए । उस बालक का उठा कर उसका मुख मंडल चूमते हुए बोले, ''जिस देश के रक्षक तुम जैसे हों, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ।''

गुलामी की जंजीरें

स्वतंत्रता से पूर्व की बात है, मौलाना अबुल कलाम आजाद ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ''भाईयों, गांधी जी का कहना है कि अंग्रेजी स्कूलों और अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा छोड़ दो, क्योंकि इससे हमारी गुलामी की जंजीरें मजबूत होती है ।''
यह सुन कर एक आदमी ने खड़े होकर कहा, ''अरे, गांधी से कहो कि पहले देशी स्कूल तो खुलवाएं । तब अंग्रेजी पढ़ाई बंद कराएं ।'' मौलाना आजाद ने उत्तर दिया, ''अगर अमृत नहीं मिलेगा तो क्या जहर पी लोगे?'' यह सुनकर उस आदमी का चेहरा शर्म से झुक गया और वह चुपचाप बैठ गया ।

रविवार, 13 सितंबर 2009

राष्ट्रभाषा का सम्मान

कल १४ सितम्बर यानि हिन्दी दिवस है| इस अवसर पर श्वर से प्रार्थना कि आपका हिन्दी प्रेम यूं ही फलता-फूलता रहे तथा एक दिन वट वृक्ष बन दुनिया के जंगल में दू.........र से नजर आए | आपको हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं| हिन्दी दिवस पर कल नहीं, आज ही ये विशेष प्रस्तुति :-
प्रसिद्ध गांधीवादी नेता और कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉक्टर पट्टाभिसीतारमैया अपने सभी पत्रों पर हिन्दी में ही पता लिखते थे । इस कारण दक्षिण के डाकखाने वालों को बड़ी असुविधा होती थी । एक बार उन सब ने उन्हें कहला भेजा कि आप अंग्रेजी में पते लिखा करें, ताकि बांटने में आसानी हो। पट्टाभिसीतारमैया ने जवाब दिया, भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है । अतः मैं अपने पत्र व्यवहार में उसी का प्रयोग करूंगा । डाकघर वालों ने कहा, देखिए, अगर आप ने अंग्रेजी में पते लिखने शुरू न किए तो हम आप के ऐसे सारे पत्र डेड लेटर आफिस में भिजवा देंगे ।
पट्टाभिसीतारमैया पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ । दोनों पक्षों के बीच एक अरसे तक शीतयुद्घ-सा जारी रहा । आखिर, डाकखाने वालों को ही झुकना पड़ा, मजबूरन उन्हें मछलीपट्टनम के डाकघर में एक हिन्दी जानने वाले आदमी को रखना ही पड़ा ।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

निडर

एक बार सुभाषचन्द्र बोस एक अंग्रेज मित्र के साथ इंग्लैंड की एक सड़क पर चले जा रहे थे । तभी एक पालिश करने वाले अंग्रेज युवक ने उनके पास आ कर पूछा, ''साहब, पालिश कराइएगा?'' सुभाष बोस ने एक नजर अपने चमचमाते जूतों की ओर डाली, फिर जूते आगे बढ़ा दिए । पालिश करा के जब सुभाष चन्द्र कुछ आगे बढ़े तो एक अन्य अंग्रेज युवक ने उन से पूछा, ''साहब, पालिश कराइएगा?'' सुभाष बोस ने पुनः अपने जूते आगे बढ़ा दिए । यह देख कर उनके अंग्रेज मित्र ने पूछा, ''सुभाष, अभी थोड़ी देर पहले ही तो तुम ने जूते पालिश कराए हैं, फिर दोबारा पालिश क्यों करा रहे हो?'' सुभाष बोस ने निर्भीकता से जवाब दिया, बात यह है दोस्त कि अंग्रेजों से अपने जूतों पर पालिश कराते समय मेरा सिर गर्व से उंचा हो जाता है ।''

रविवार, 6 सितंबर 2009

वचन

वेब मिलर एक अमरीकी पत्रकार थे । सन् 1931 में गाँधी जी गोलमेज परिषद् में भाग लेने के लिए विलायत गए थे । एक दिन वेब मिलर गाँधी जी से मिलने आए । काफी देर बात-चीत होने के बाद उन्होंने सिगरेट रखने का अपना डिब्बा आगे बढ़ा कर गाँधी जी से कहा, ''इस डब्बे पर आप भी अपना हस्ताक्षर कर दीजिए ।'' उस डिब्बे पर अनेक प्रख्यात व्यक्तियों के हस्ताक्षर थे । गाँधी जी ने डिब्बा हाथ में लिया, खोल कर देखा और हंसते हुए बोले, ''यह सिगरेट की डिबिया है । धूम्रपान के संबंध में मेरे विचार आप जानते ही हैं, अगर आप वचन दें कि इस डिब्बे में कभी भी सिगरेट नहीं रखेंगे तो मैं हस्ताक्षर कर दूंगा ।'' वेब मिलर ने वचन दिया और गाँधी जी ने हस्ताक्षर कर दिए । तब से वेब मिलर उस डिब्बे में विजटिंग कार्ड रखने लगे ।