बुधवार, 30 नवंबर 2011

प्रगति में बाधक

एक बार संत विनोबा भावे को गांधी जी ने पत्र लिखा । पत्र पढ़कर विनोबा जी ने उसे फाड़ दिया । यह देखकर आश्रम के छात्रों को बड़ी हैरानी हुई, क्योंकि सभी जानते थे कि विनोबा सदा ही गांधी जी के पत्र संभाल कर रखते थे। एक छात्र से न रहा गया उसने विनोबा जी से पूछ ही लिया,''आप ने पत्र क्यों फाड़ दिया?'' विनोबा जी ने बताया,''इस पत्र में कुछ गलत बातें लिखी थीं ।'' यह सुनकर छात्रों का कुतूहल बढ़ गया । एक ने पूछा,लेकिन गुरुदेव, ''आप तो कहते हैं कि गांधी जी कभी झूठ नहीं बोलते फिर उन्होंने झूठी या गलत बात कैसे लिखी?''''गांधी जी झूठ नहीं बोलते यह सच है, लेकिन इस पत्र में उन्होंने मेरी प्रशंसा की थी और मुझे सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति कहा था । सच तो यह है कि इस संसार में मुझ से भी अधिक गुणी व्यक्ति मौजूद हैं । अतः गांधी जी की यह बात सच नहीं हो सकती थी, शायद किसी दृष्टि से यह सच भी हो तो भी यह पत्र मुझ में अंहकार ही पैदा करता, जो मेरी प्रगति में बांधक होता। बस, इसलिए मैंने पत्र को फाड़ डाला।''