रविवार, 31 जनवरी 2010

इंसानियत

यह घटना उन दिनों की है, जब लालबहादुर शास्त्री हमारे प्रधानमन्त्री थे । एक दिन वह अपनी पत्नी ललिता शास्त्री के साथ एक साड़ी के कारखाने का दौरा करने गए । उनकी पत्नी को कुछ साड़ियां पंसद आईं । शास्त्री जी ने उन्हें बांधने को कहा और पैसे देने लगे । लेकिन मालिक ने पैसे लेने से इन्कार कर दिया । तब शास्त्री जी ने कहा, ''आज मैं प्रधानमंत्री हूं, इसलिए मुझे इतनी मूल्यवान साड़ियां मुफ्त में दे रहे हो, लेकिन जब मैं प्रधानमंत्री नहीं रहूंगा, तब भी क्या ऐसी साड़ियां आप मुझे मुफ्त दे सकेंगे?'' यह सुन कर मिल मालिक कुछ न बोल सका । उसने चुपचाप पैसे ले लिए ।

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

विद्वता

एक बार स्वामी विवेकानंद काशी में थे । वहां उनकी विद्वता की चर्चा बहुत फैल गई थी । अनेक लोगों ने उनसे अनेक कठिन प्रश्न किए थे । जिन का जवाब उन्होंने ऐसा दिया कि सब ने उनकी विद्वता का लोहा मान लिया था। एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, ''संत कबीर दास जी ने दाढ़ी क्यों रखी थी।'' स्वामी जी ने उत्तर दिया, ''भाई, अगर वह दाढ़ी नहीं रखते तो आप पूछते कि कबीर दास जी ने दाढ़ी क्यों नहीं रखी ।'' यह जवाब सुनकर वह व्यक्ति लज्जित होकर चुपचाप वहां से खिसक गया ।

सोमवार, 25 जनवरी 2010

संत

स्वामी दयानंद का एक शिष्य नाई था । एक बार वह स्वामी दयानंद के लिए अपने घर से भोजन लाया । स्वामी दयानंद ने उसे बड़े चाव से खा लिया। उनका दूसरा शिष्य उस घटना को देख रहा था । उसने स्वामी दयानंद से कहा,'' स्वामी जी, आप ने यह क्या किया ? आपने आज नाई की रोटी खा ली ।'' इस बात पर स्वामी दयानंद खिलखिला कर हँसने लगे । शिष्य बोला,''हाराज, क्षमा करें । यदि कोई धृष्टता गई हो क्षमा करें |'' स्वामी दयानंद बोले, ''त्स, रोटी तो गेहूं की थी, नाई की नहीं।'' यह सुन कर शिष्य निरुतर हो गया|

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

पेट

एक सज्जन के बहुत आग्रह पर प्रसिद्ध साहित्यकार बर्नाडे शा ने उन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया । लेकिन शा ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह मांसाहारियों के साथ भोजन नहीं खा पाएंगे । सज्जन ने उनकी पंसद का ध्यान रखने का आश्वासन दिया था । भोज वाले दिन शा शाकाहारी मेज पर रखे सलाद को खाने लगे । एक मांसाहारी सज्जन ने उस पर चोट करते हुए कहा, ''आप घास-फूस क्यों खा रहे हैं मुर्गा खाइए ना।'' शा ने जवाब दिया, ''जनाब मेरा पेट कोई कब्रिस्तान नहीं है कि मैं उसमें मुरदे डालता रहूं।''यह जवाब सुनकर वह निरुतर हो गया।

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

जाति

गांधीवादी नेता आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी ट्रेन में सफर कर रहे थे, उसमें एक महिला व एक पुरुष यात्री भी था । वे आचार्य कृपलानी को नहीं पहचानते थे । बातों ही बातों में उन्होंने उनसे पूछा, ''आप किस जाति के हैं?'' प्रश्न सुनकर कृपलानी तत्काल बोले, '' मैं तो कई जातियों का हूं।'' यह सुन कर लोग आश्चर्य में पड़ गए । एक बोला, ''वह कैसे?'' इस पर आचार्य कृपलानी बोले, ''जब मैं सुबह अपना जूता साफ करता हूं तब शूद्र हो जाता हूं, महाविद्यालय में पढ़ाने जाता हूं तो ब्राह्मण हो जाता हूं, वेतन का हिसाब करता हूं तो बनिया हो जाता हूं । अब आप ही बताइए मेरी क्या जाति है?'' आचार्य कृपलानी का यह उत्तर सुन कर उन यात्रियों को लज्जित हो जाना पड़ा ।

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

बराबर

फ्रांस के राजा हैनरी चतुर्थ एक दिन अपने अंगरक्षक के साथ घोड़े पर सवार होकर घूमने निकले । रास्ते में एक भिखारी ने राजा को अपनी टोपी उतार कर सलाम किया । जवाब में राजा ने भी अपनी टोपी उतार कर सलाम किया । अंगरक्षक ने कहा,'' क्षमा कीजिए, क्या यह ठीक है कि इतना बड़ा राजा अपनी टोपी उतार कर एक भिखारी को सलाम करें ?'' राजा ने कहा, ''भाई, अगर मैं सलाम न करता तो मेरा मन मुझे धिक्कारता की फ्रांस का राजा एक भिखारी के बराबर भी सभ्य नहीं है।''

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

नसीहत

टामस अलवा एडिसन अमरीका के प्रख्यात आविष्कारक थे । एक बार उनसे मिलने गई एक स्त्री ने उन्हें एक कागज पर अपने पुत्र के लिए कोई नसीहत लिखने को कहा । एडिसन ने कागज पर लिखा, ''काम के समय कभी भी घड़ी मत देखा करो।''

शनिवार, 9 जनवरी 2010

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा

रास बिहारी बोस का नाम कौन नहीं जानता । भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से अनन्य रूप से जुड़े रासबिहारी बोस उन दिनों जापान में निर्वासित जीवन बिता रहे थे । जापान में दक्षिण पश्चिम की ओर मुंह करके सोना अच्छा नहीं माना जाता है । किन्तु रासबिहारी बोस जितने दिन भी जापान में रहे, सदा दक्षिण पश्चिम दिशा में मुंह करके सोते रहे । जब उनके जापानी मित्रों ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया, ''भाई, तुम्हारे देश के दक्षिण पश्चिम की दिशा में ही तो मेरी मातृभूमि भारतवर्ष है । इस दिशा में मुंह करके सोने में मुझे यों लगता है, जैसे मैं रात भर अपनी मां की गोद में सोया हूं । जागते में तो अपनी प्यारी मातृभूमि को पा नहीं सकता, किन्तु यों सोते में तो पा लेता हूं ।'' उनकी बात सुनकर सभी मित्र मातृभूमि के प्रति उनकी श्रद्धा की भूरि-भूरि प्रशंसा किए बिना न रहे सके ।