नेताजी सुभाषचंद्र बोस किसी गोष्ठी में व्याख्यान दे रहे थे, तभी बेशुमार भीड़ में से विरोधी पार्टी के किसी आदमी ने उन पर एक जूता फेंक दिया| नेताजी ने जूते की तरफ संकेत करते हुए कहा, ''जिस सज्जन ने इसे फेंका है, वह कृपया इसके साथ का जूता भी फेंक दें| वरना यह बेकार हो जाएगा ।'' फिर जूते को संभालते हुए उन्होंने आगे कहा,''अपने देश के लिए तुम्हारी यह भेंट मैं सदा याद रखूंगा ।
मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
रविवार, 27 दिसंबर 2009
विद्वता
एक बार स्वामी विवेकानंद काशी में थे । वहां उनकी विद्वता की चर्चा बहुत फैल गई थी । अनेक लोगों ने उनसे अनेक कठिन प्रश्न किए थे । जिन का जवाब उन्होंने ऐसा दिया कि सब ने उनकी विद्वता का लोहा मान लिया था। एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, ''संत कबीर दास जी ने दाढ़ी क्यों रखी थी।'' स्वामी जी ने उत्तर दिया, ''भाई , अगर वह दाढ़ी नहीं रखते तो आप पूछते कि कबीर दास जी ने दाढ़ी क्यों नहीं रखी ।'' यह जवाब सुनकर वह व्यक्ति लज्जित होकर चुपचाप वहां से खिसक गया ।
रविवार, 20 दिसंबर 2009
श्रेष्ठ
महात्मा गांधी दांडी यात्रा के दौरान एक स्थान पर कुछ देर के लिए रूके। जब वह जाने को हुए तो एक अंग्रेज उनसे मिलने आया । वह गांधी जी का प्रशंसक भी था । उसने गांधी जी को संबोधित करते हुए कहा, ''हैलो, मेरा नाम वाकर है।'' महात्मा गांधी उस समय जल्दी में थे, इसलिए उन्होंने विनम्रता से कहा, ''मैं भी वाकर हूं और अपनी राह को चल दिए |'' रास्ते में एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, '' यदि आप उनसे थोड़ी देर बात कर लेते तो आप का नाम अंग्रेजों के अखबार में छपता और आप को काफी सम्मान मिलता ।'' उन्होंने उत्तर दिया,'' मैं समय को सम्मान से श्रेष्ठ मानता हूं |
शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
फल
महात्मा बुद्ध किसी उपवन में विश्राम कर रहे थे । तभी बच्चों का एक झुंड आया और पेड़ पर पत्थर मार कर आम गिराने लगा । एक पत्थर बुद्ध के सिर पर लगा और सिर से खून बहने लगा । बुद्ध की आंखों में आंसू आ गए । बच्चों ने भयभीत होकर बुद्ध के चरण पकड़ लिए और क्षमायाचना करने लगे ।
बुद्ध ने कहा, ''बच्चों , मैं इसलिए दुःखी हूं कि तुम ने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए, लेकिन मुझे मारने पर मैं तुम्हें केवल भय ही दे सका ।''
बुद्ध ने कहा, ''बच्चों , मैं इसलिए दुःखी हूं कि तुम ने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए, लेकिन मुझे मारने पर मैं तुम्हें केवल भय ही दे सका ।''
शनिवार, 14 नवंबर 2009
अपराध
मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर अंग्रेजों की कैद में अपने जीवन के अंतिम दिन बड़े कष्ट से बिता रहे थे । एक बार एक व्यक्ति उनसे मिलने आया। उसने बादशाह से कहा, ''आप को जो कष्ट दिए जा रहे हैं, आप उसकी शिकायत क्यों नहीं करते ?''
उन्होंने दुःख भरे स्वर में जवाब दिया, '' मेरी यही सजा है क्योंकि बादशाह होने के नाते में देश का पहरेदार था । फिर भी मैं आराम की नींद सोता रहा । समय रहते न तो मैं जागा और न ही दुश्मन को ललकारा, इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है ?''
उन्होंने दुःख भरे स्वर में जवाब दिया, '' मेरी यही सजा है क्योंकि बादशाह होने के नाते में देश का पहरेदार था । फिर भी मैं आराम की नींद सोता रहा । समय रहते न तो मैं जागा और न ही दुश्मन को ललकारा, इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है ?''
सोमवार, 2 नवंबर 2009
संस्कार
रामकृष्ण परमहंस अपने लोटे को प्रतिदिन मांजते थे । यह देख कर उनका एक शिष्य मन ही मन सोचता था कि इस तरह लोटा मांजने का अर्थ क्या हैं? आखिरकार जब उस से नहीं रहा गया तो वह उनसे पूछ बैठा । रामकृष्ण परमहंस ने से जवाब में हंस कर कहा,''याद रखो कि हमें अपने अंतर्मन को भी इसी तरह मांजना है । यह लोटा कितना ही साफ क्यों न हो, यदि इसे प्रतिदिन मांजा न जाए तो यह मैला हो जाएगा । इसी तरह बुरे संस्कारों में पड़ कर हमारा मन दूषित न हो जाए इसके लिए भी हमें निरन्तर अच्छे संस्कारों से उसे मांजना चाहिए ताकि बुराई का मैल उसे गंदा न कर सके।''
रविवार, 25 अक्तूबर 2009
कर्त्तव्य
भारतीय इंजीनियरों के पितामह डॉक्टर विश्वेश्वरैया हमेशा निष्पक्ष ढंग से कार्य करते थे । एक बार जब वह मैसूर रियासत के दीवान थे तो किसी गांव में उनका कैंप लगा । एक दिन वहां काम करते वक्त उन की उंगलियों में चोट लग गई । गांव के डॉक्टर ने उचित रूप से मरहमपट्टी की । विश्वेश्वरैया ने 25 रूपए का चैक फीस के रूप में डॉक्टर को दे दिया । चैक को लौटाते हुए डॉक्टर बोला, ''मेरा सौभाग्य है कि आप की सेवा करने का मुझे अवसर मिला। इस पर विश्वेश्वैरया उस डॉक्टर पर बिगड़े और बोले, ''हर मरीज की सेवा करने का मौका आप का सौभाग्य है, आप को ऐसा महसूस करना चाहिए, जो लोग पैसा दे सकते हैं, उनसे लेना चाहिए ताकि जो लोग पैसा नहीं दे सकते उन से लेने की लालसा आप में न रहे। आप ने अपना कर्त्तव्य किया कृपया मुझे अपना कर्त्तव्य करने दें ।''
शनिवार, 17 अक्तूबर 2009
गौरव
दीवाली की शुभकामनाओं के साथ एक प्रस्तुति -
हाकी के दिवंगत जादूगर ध्यानचंद ने एक बार हिटलर के सामने अपनी बेहतरीन खेल कला का प्रदर्शन किया तो उसे खुश हो कर हिटलर ने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि वह जर्मनी की टीम में शामिल हो जाए तो उन्हें कप्तान बना दिया जाएगा ।
हिटलर ने प्रस्ताव को नकारते हुए ध्यानचंद ने जवाब दिया,'' मैं अपने देश की टीम में एक साधारण खिलाड़ी की हैसियत से खेलना ज्यादा सम्मान जनक मानता हूं । दूसरे देश की टीम का कप्तान बन कर मुझे संतोष और गौरव नहीं मिल सकता ।'' यह सुन कर हिटलर अवाक रह गया ।
हाकी के दिवंगत जादूगर ध्यानचंद ने एक बार हिटलर के सामने अपनी बेहतरीन खेल कला का प्रदर्शन किया तो उसे खुश हो कर हिटलर ने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि वह जर्मनी की टीम में शामिल हो जाए तो उन्हें कप्तान बना दिया जाएगा ।
हिटलर ने प्रस्ताव को नकारते हुए ध्यानचंद ने जवाब दिया,'' मैं अपने देश की टीम में एक साधारण खिलाड़ी की हैसियत से खेलना ज्यादा सम्मान जनक मानता हूं । दूसरे देश की टीम का कप्तान बन कर मुझे संतोष और गौरव नहीं मिल सकता ।'' यह सुन कर हिटलर अवाक रह गया ।
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
नींव का पत्थर
(२ अक्टूबर) शास्त्री जी के जन्म-दिन पर विशेष प्रस्तुति
लालबहादुर शास्त्री बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे, लोग उन के भाषण, निःस्वार्थ सेवा भावना जैसे गुणों से अनायास ही प्रभावित हो जाते थे, लेकिन जब वह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो बहुत ज्यादा संकोची हो गए | वह नहीं चाहते थे कि उन का नाम अखबारों में छपे और लोग उन की प्रशंसा और स्वागत करें । एक दिन शास्त्री जी के कुछ मित्रों ने उन से पूछा, ''शास्त्री जी , आप को अखबारों में नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों हैं ?'' शास्त्री जी कुछ देर सोच कर बोले, '' लाला लाजपत राय जी ने लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था, '' लालबहादुर, ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं, एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन को सारी दुनिया देखती है तथा प्रशंसा करती है, दूसरे वे पत्थर हैं जो ताजमहल की नींव में लगे हैं, जिनके जीवन में केवल अंधेरा ही अंधेरा है, लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा रखे हुए हैं ? लाला जी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं, मैं नींव का पत्थर ही बना रहना चाहता हूँ |
सोमवार, 28 सितंबर 2009
निश्चय
यह घटना इंडोनेशिया की है । एक स्कूल का छात्र एक दिन अचानक हठ कर बैठा कि आज से मैं स्कूल नहीं जाऊंगा । पिता ने बड़े प्यार से कारण पूछा तो उस ने कहा, ''इस नए स्कूल में लड़के मेरा मजाक उड़ाते हैं।'' पिता ने कहा, ''इस में कौन सी नई बात है, कुछ समय बाद वे तुम से घुलमिल जाएंगे और तुम्हारे मित्र बन जाएंगे।'' ''कुछ भी हो, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा, कह कर लड़के ने किताबें पटक दी ।'' मां-बाप ने लाख समझाया, लेकिन लड़का अपनी जिद पर अड़ा रहा। पिता ने अपने एक मित्र को यह समस्या बताई तो वह मित्र उस लड़के को एक पानी के झरने के पास ले गए । उन्होंने एक बड़ा सा पत्थर पानी के बीच में फेंक दिया और कहा कि यह पत्थर पानी के बहाव में रूकावट डाल देगा | कुछ क्षणों के लिए पानी का वेग रूक गया, लेकिन फिर थोड़ी ही देर में वह अपनी गति से बहने लगा । वह पत्थर पानी में डूब गया ।
इस पर वह लड़के से बोला, ''बेटा, किसी भी प्रकार की रूकावट या बाधओं से नहीं घबराना चाहिए । देखो, पानी भी रूकावट पर विजय पा कर पहले की तरह बह रहा है। फिर तुम मनुष्य होकर बाधाओं से क्यों घबराते हो ?'' लड़के ने अगले दिन से स्कूल जाना प्रारम्भ कर दिया । कुछ दिनों में उसके सहपाठी उसके मित्र बन गए और बाद में स्वतंत्रता संग्राम में उसके अनुयायी बने । यह लड़का और कोई नहीं, बल्कि इंडोनेशिया के भूतपूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो थे । इंडोनेशिया को आजाद कराने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा ।
इस पर वह लड़के से बोला, ''बेटा, किसी भी प्रकार की रूकावट या बाधओं से नहीं घबराना चाहिए । देखो, पानी भी रूकावट पर विजय पा कर पहले की तरह बह रहा है। फिर तुम मनुष्य होकर बाधाओं से क्यों घबराते हो ?'' लड़के ने अगले दिन से स्कूल जाना प्रारम्भ कर दिया । कुछ दिनों में उसके सहपाठी उसके मित्र बन गए और बाद में स्वतंत्रता संग्राम में उसके अनुयायी बने । यह लड़का और कोई नहीं, बल्कि इंडोनेशिया के भूतपूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो थे । इंडोनेशिया को आजाद कराने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा ।
रविवार, 20 सितंबर 2009
रक्षक
एक बार स्वामी रामतीर्थ जापान गए । वहां उनका खूब सत्कार हुआ । उन्हें एक स्कूल में निमंत्रित किया गया । स्कूल का दौरा करने के दौरान जाने क्या सोच कर स्वामी रामतीर्थ ने नन्हें विद्यार्थी से पूछा, ''तुम किस धर्म को मानते हो ? ''बौद्ध धर्म को |'' विद्यार्थी ने उत्तर दिया । स्वामी जी ने फिर प्रश्न किया, ''महात्मा बुद्ध के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं ?'' विद्यार्थी ने झट उत्तर दिया, ''बुद्ध तो भगवान हैं ।'' यह कहकर उसने मन ही मन बुद्ध का ध्यान कर अपने देश की प्रथा के अनुसार बुद्ध को प्रणाम किया ।
तब स्वामी जी ने उस विद्यार्थी से पूछा, ''तुम कन्फ्युशियस के बारे में क्या कहोगे?'' विद्यार्थी ने श्रद्धा भाव से कहा, '' कन्फ्युशियस एक महान् संत थे।'' उसने बुद्ध की तरह कन्फ्युशियस का ध्यान कर उसे भी प्रणाम किया। स्वामी मुस्करा कर बोले, ''अच्छा, अब मेरे एक और प्रश्न का जवाब दो,'' मान लो, अगर कोई देश तुम्हारे जापान पर आक्रमण करता है, और उसके मुख्य सेनाधिपति बुद्ध या कन्फ्युशियस हों तो तुम क्या करोगे ?''
स्वामी रामतीर्थ का यह कहना था कि विद्यार्थी का चेहरा क्रोध और जोश के मिले-जुले भाव से तमतमा उठा । वह कड़क कर बोला, ''मैं अपनी तलवार से बुद्ध का सिर काट लूंगा और कन्फ्युशियस को पैरों तले कुचल दूंगा ।'' स्वामी रामतीर्थ यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए । उस बालक का उठा कर उसका मुख मंडल चूमते हुए बोले, ''जिस देश के रक्षक तुम जैसे हों, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ।''
तब स्वामी जी ने उस विद्यार्थी से पूछा, ''तुम कन्फ्युशियस के बारे में क्या कहोगे?'' विद्यार्थी ने श्रद्धा भाव से कहा, '' कन्फ्युशियस एक महान् संत थे।'' उसने बुद्ध की तरह कन्फ्युशियस का ध्यान कर उसे भी प्रणाम किया। स्वामी मुस्करा कर बोले, ''अच्छा, अब मेरे एक और प्रश्न का जवाब दो,'' मान लो, अगर कोई देश तुम्हारे जापान पर आक्रमण करता है, और उसके मुख्य सेनाधिपति बुद्ध या कन्फ्युशियस हों तो तुम क्या करोगे ?''
स्वामी रामतीर्थ का यह कहना था कि विद्यार्थी का चेहरा क्रोध और जोश के मिले-जुले भाव से तमतमा उठा । वह कड़क कर बोला, ''मैं अपनी तलवार से बुद्ध का सिर काट लूंगा और कन्फ्युशियस को पैरों तले कुचल दूंगा ।'' स्वामी रामतीर्थ यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए । उस बालक का उठा कर उसका मुख मंडल चूमते हुए बोले, ''जिस देश के रक्षक तुम जैसे हों, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ।''
गुलामी की जंजीरें
स्वतंत्रता से पूर्व की बात है, मौलाना अबुल कलाम आजाद ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ''भाईयों, गांधी जी का कहना है कि अंग्रेजी स्कूलों और अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा छोड़ दो, क्योंकि इससे हमारी गुलामी की जंजीरें मजबूत होती है ।''
यह सुन कर एक आदमी ने खड़े होकर कहा, ''अरे, गांधी से कहो कि पहले देशी स्कूल तो खुलवाएं । तब अंग्रेजी पढ़ाई बंद कराएं ।'' मौलाना आजाद ने उत्तर दिया, ''अगर अमृत नहीं मिलेगा तो क्या जहर पी लोगे?'' यह सुनकर उस आदमी का चेहरा शर्म से झुक गया और वह चुपचाप बैठ गया ।
यह सुन कर एक आदमी ने खड़े होकर कहा, ''अरे, गांधी से कहो कि पहले देशी स्कूल तो खुलवाएं । तब अंग्रेजी पढ़ाई बंद कराएं ।'' मौलाना आजाद ने उत्तर दिया, ''अगर अमृत नहीं मिलेगा तो क्या जहर पी लोगे?'' यह सुनकर उस आदमी का चेहरा शर्म से झुक गया और वह चुपचाप बैठ गया ।
रविवार, 13 सितंबर 2009
राष्ट्रभाषा का सम्मान
कल १४ सितम्बर यानि हिन्दी दिवस है| इस अवसर पर ईश्वर से प्रार्थना कि आपका हिन्दी प्रेम यूं ही फलता-फूलता रहे तथा एक दिन वट वृक्ष बन दुनिया के जंगल में दू.........र से नजर आए | आपको हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं| हिन्दी दिवस पर कल नहीं, आज ही ये विशेष प्रस्तुति :-
प्रसिद्ध गांधीवादी नेता और कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉक्टर पट्टाभिसीतारमैया अपने सभी पत्रों पर हिन्दी में ही पता लिखते थे । इस कारण दक्षिण के डाकखाने वालों को बड़ी असुविधा होती थी । एक बार उन सब ने उन्हें कहला भेजा कि आप अंग्रेजी में पते लिखा करें, ताकि बांटने में आसानी हो। पट्टाभिसीतारमैया ने जवाब दिया, भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है । अतः मैं अपने पत्र व्यवहार में उसी का प्रयोग करूंगा । डाकघर वालों ने कहा, देखिए, अगर आप ने अंग्रेजी में पते लिखने शुरू न किए तो हम आप के ऐसे सारे पत्र डेड लेटर आफिस में भिजवा देंगे ।
पट्टाभिसीतारमैया पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ । दोनों पक्षों के बीच एक अरसे तक शीतयुद्घ-सा जारी रहा । आखिर, डाकखाने वालों को ही झुकना पड़ा, मजबूरन उन्हें मछलीपट्टनम के डाकघर में एक हिन्दी जानने वाले आदमी को रखना ही पड़ा ।
प्रसिद्ध गांधीवादी नेता और कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉक्टर पट्टाभिसीतारमैया अपने सभी पत्रों पर हिन्दी में ही पता लिखते थे । इस कारण दक्षिण के डाकखाने वालों को बड़ी असुविधा होती थी । एक बार उन सब ने उन्हें कहला भेजा कि आप अंग्रेजी में पते लिखा करें, ताकि बांटने में आसानी हो। पट्टाभिसीतारमैया ने जवाब दिया, भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है । अतः मैं अपने पत्र व्यवहार में उसी का प्रयोग करूंगा । डाकघर वालों ने कहा, देखिए, अगर आप ने अंग्रेजी में पते लिखने शुरू न किए तो हम आप के ऐसे सारे पत्र डेड लेटर आफिस में भिजवा देंगे ।
पट्टाभिसीतारमैया पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ । दोनों पक्षों के बीच एक अरसे तक शीतयुद्घ-सा जारी रहा । आखिर, डाकखाने वालों को ही झुकना पड़ा, मजबूरन उन्हें मछलीपट्टनम के डाकघर में एक हिन्दी जानने वाले आदमी को रखना ही पड़ा ।
शनिवार, 12 सितंबर 2009
निडर
एक बार सुभाषचन्द्र बोस एक अंग्रेज मित्र के साथ इंग्लैंड की एक सड़क पर चले जा रहे थे । तभी एक पालिश करने वाले अंग्रेज युवक ने उनके पास आ कर पूछा, ''साहब, पालिश कराइएगा?'' सुभाष बोस ने एक नजर अपने चमचमाते जूतों की ओर डाली, फिर जूते आगे बढ़ा दिए । पालिश करा के जब सुभाष चन्द्र कुछ आगे बढ़े तो एक अन्य अंग्रेज युवक ने उन से पूछा, ''साहब, पालिश कराइएगा?'' सुभाष बोस ने पुनः अपने जूते आगे बढ़ा दिए । यह देख कर उनके अंग्रेज मित्र ने पूछा, ''सुभाष, अभी थोड़ी देर पहले ही तो तुम ने जूते पालिश कराए हैं, फिर दोबारा पालिश क्यों करा रहे हो?'' सुभाष बोस ने निर्भीकता से जवाब दिया, बात यह है दोस्त कि अंग्रेजों से अपने जूतों पर पालिश कराते समय मेरा सिर गर्व से उंचा हो जाता है ।''
रविवार, 6 सितंबर 2009
वचन
वेब मिलर एक अमरीकी पत्रकार थे । सन् 1931 में गाँधी जी गोलमेज परिषद् में भाग लेने के लिए विलायत गए थे । एक दिन वेब मिलर गाँधी जी से मिलने आए । काफी देर बात-चीत होने के बाद उन्होंने सिगरेट रखने का अपना डिब्बा आगे बढ़ा कर गाँधी जी से कहा, ''इस डब्बे पर आप भी अपना हस्ताक्षर कर दीजिए ।'' उस डिब्बे पर अनेक प्रख्यात व्यक्तियों के हस्ताक्षर थे । गाँधी जी ने डिब्बा हाथ में लिया, खोल कर देखा और हंसते हुए बोले, ''यह सिगरेट की डिबिया है । धूम्रपान के संबंध में मेरे विचार आप जानते ही हैं, अगर आप वचन दें कि इस डिब्बे में कभी भी सिगरेट नहीं रखेंगे तो मैं हस्ताक्षर कर दूंगा ।'' वेब मिलर ने वचन दिया और गाँधी जी ने हस्ताक्षर कर दिए । तब से वेब मिलर उस डिब्बे में विजटिंग कार्ड रखने लगे ।
रविवार, 30 अगस्त 2009
अपराध
छात्रावास में जब सभी छात्रों को भोजन परोसा गया तो कई छात्रों ने प्लेट में रखी सब्जी को देख कर नाक-भौं सिकोड़ ली । उस दिन सब्जी में बैंगन का भुरता बना था । अधिकांश छात्र शोर मचाने लगे । कुछ ने उस में जली हुई रोटी के किनारे तोड़े तथा उन में पानी मिलाकर प्लेट दूर खिसका दी और कभी रसोइए पर तो कभी सब-अधिकारी पर फब्तियां कसी जाने लगीं । जब भोजन कक्ष में यह हंगामा मच रहा था तो बाहर एक व्यक्ति भोजन करने वाले सभी छात्रों के जूतों को इधर-उधर से उठा कर करीने से लगा रहा था । शोर बढ़ गया तो वह व्यक्ति अन्दर गया। सरका कर रखी गई जली रोटी के टुकड़े, पानी तथा भुरते वाली प्लेट उठाई और उस में जैसा भी कुछ मिला, उसे मजे से खाने लगा । अब लड़कों से नहीं रहा गया । उन्होंने दूसरी प्लेट मंगाने को कहा तो व्यक्ति के हाथ रूक गए, उस ने अपनी खामोशी तोड़ी और कहा, तुम लोगों को मालूम नहीं कि तुम्हारे आस-पास की बस्तियों में ऐसे लोग भी रहते हैं जिनको यह भी खाने को मिल जाए, तो तुम ने फेंका है तो वे भूखे नहीं सोएंगे, मगर तुम लोगों ने इस खाने को इस लायक भी नहीं छोड़ा कि यह किसी को दिया जा सके । इसीलिए मैंने सोचा कि यदि मैं ही इसे खा लूं तो कम से कम मेरा खाना तो किसी भूखे को दिया जा सकेगा । अन्न के अनादर को सब से बड़ा अपराध मानने वाला यह व्यक्ति था- डा॰ जाकिर हुसैन । जो हमारे देश के तीसरे राष्ट्रपति हुए ।
रविवार, 23 अगस्त 2009
देश भक्त
फ्रांस की एक नदी में वर्षा के कारण बाढ़ आई हुई थी । शाम के वक्त लगभग 12 वर्ष का एक लड़का नदी के किनारे-किनारे चला जा रहा था । अचानक उसने देखा कि नदी के बांध में एक जगह छेद हो गया है और उसमें से पानी रिस रहा है । ‘इस तरह तो पूरा नगर पानी में डूब जाएगा|'' यह सोच कर उसने छेद वाली जगह पर भरपूर मिट्टी डाल दी । लेकिन पानी के अधिक वेग के कारण मिट्टी रूक नहीं सकी । उधर छेद बड़ा होता जा रहा था । नगर में जाकर सूचना देने में देर हो जाती, क्योंकि तब तक बाँध टूट सकता था, यह सोच कर लड़का स्वयं छेद वाली जगह में लेट गया । पूरी रात इसी तरह बीत गई । उधर लड़के के माता-पिता बहुत चिंतित थे। उन्हें डर था कि नदी के किनारे चलते हुए उन का लड़का नदी में न गिर गया हो । वे सुबह होते ही नदी के किनारे-किनारे चल पड़े । लड़के ने उन्हें देखा तो चिल्ला कर अपने पास बुलाया और पानी रोकने का इंतजाम करने को कहा। उसके माता-पिता ने नगर में जाकर इस बात की सूचना दी तो शीघ्र ही आवश्यक प्रबंध किए गए । बालक की इस वीरता और देशभक्ति पर सरकार ने उसे सम्मानित किया। यही बालक आगे चलकर फ्रांस का राष्ट्रपति बना । इस देशभक्त का नाम था - नेपोलियन ।
शनिवार, 15 अगस्त 2009
आजादी का सिपाही
आजादी से कुछ साल पहले की बात है । पूरे देश में आन्दोलन की लहर थी । उसी लहर में उड़ीसा के ढेंकानाल जिले में अनगुल गांव की जनता वहां के राजा के खिलाफ एकजुट होने लगी । वहां प्रजा परिषद् के गठन की मांग होने लगी । वहां का राजा अंग्रेजों की कठपुतली था । आन्दोलन से घबरा कर उसने अंग्रेजों से सहायता मांगी, अंग्रेजों ने सहायता देने के बदले यह शर्त रखी कि आन्दोलन दबाने के बाद उस राज्य का संचालन उन्हें सौंपना होगा । राजा ने शर्त मान ली । उसी दिन अंग्रेज फौजी अनगुल जाने के लिए नदी के दूसरे पार आ धमके। नदी के किनारे एक 12 वर्षीय लड़के से फौज की एक टुकड़ी के कप्तान ने कड़क कर कहा, ''ए लड़के, नाव लगा, हमें पार जाना है|'' कप्तान ने सोचा कि दूसरे लड़कों की तरह वह भी कांप कर हुक्म पूरा करेगा, लेकिन वह लड़का तन कर खड़ा रहा और उसकी आज्ञा नहीं मानी । कप्तान चौंक गया, फिर गुस्से से कांपते हुए बोला, ''चल, नाव लगा ।'' ''नहीं, मैं नहीं लगाऊंगा|'' उस लड़के ने कड़क कर कहा । ''बहुत हो चुका| चलो! नाव पर चढ़ो|'' गोरे कप्तान ने झुंझला कर बाकी अंग्रेजों को आदेश दिया । ''नहीं, खबरदार! जो कोई नाव पर चढ़ा|'' लड़का पतवार लेकर बीच में अड़ गया । एक अंग्रेज सिपाही इसे बचपन की चंचलता समझ कर आगे बढ़ा । तभी पतवार का चैड़ा सिरा उस के सिर से टकराया और अगले ही क्षण वह खून से लथपथ सिर को थामे पानी में गोते लगा रहा था । यह दृश्य देख कर क्रोध् से अंग्रेज कप्तान हिंसक हो उठा और अगले ही क्षण उस की पिस्तौल गरजी, धांय-धांय ? और इस तरह अनगुल का वह साहसी किशोर बाजीराव अपने गांव की स्वतंत्रता को कायम रखने के प्रयास में शहीद हो गया ।
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
कर्त्तव्य
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कलकत्ता के बड़ा बाजार से होकर गुजर रहे थे कि रास्ते में उन्हें 14-15 वर्ष की आयु का एक लड़का मिला । नंगे पैर, फटे-पुराने कपडे और बुझा-सा चेहरा उस की हालात बताने के लिए पर्याप्त थे । उसने ईश्वरचंद्र विद्यासागर से गिड़गिड़ाते हुए कहा , ''कृपया मुझे एक आना दे दीजिए, मैं दो दिन से भूखा हूँ।''
उन्होंने उस लड़के से कहा, ''ठीक है, आज मैं तुम्हें एक आना दे दूंगा, लेकिन कल क्या करोगे ?'' ''कल मैं किसी दूसरे से मांग लूंगा ।'' लड़के ने कहा |'' अगर चार आने दे दूं तो क्या करोगे?'' ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उससे फिर पूछा| ''उसमें से एक आने का भोजन करूंगा और शेष 3 आने के संतरे ला कर यही सड़क पर बैठ कर बेचूंगा |'' लड़के ने कहा ।'' और अगर एक रुपया दे दूं तो ?''तब फेरी लगाऊंगा ,'' लड़के ने प्रसन्न होकर कहा । ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उसे एक रूपया दे दिया। वह लड़का उस रूपए से सामान ला कर बेचने लगा । बहुत दिनों बाद एक दिन वह अपनी दुकान पर बैठा था । तभी उसकी दृष्टि ईश्वरचंद्र विद्यासागर पर पड़ी । वह उन्हें अपने दुकान पर ले आया और हाथ जोड़कर बोला, ''आप ने मुझ पर जो उपकार किया था उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। यह लीजिए, आपका रूपया ।'' ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने मुस्कराते हुए कहा, ''इस में आभार मानने की कोई जरूरत नहीं है । एक देशवासी होने के नाते यह मेरा कर्त्तव्य था । तुम्हें मेरा वह एक रूपया देना सार्थक हुआ। अब यह रूपया तुम किसी और योग्य एवं जरूरतमंद को दे देना ।''
उन्होंने उस लड़के से कहा, ''ठीक है, आज मैं तुम्हें एक आना दे दूंगा, लेकिन कल क्या करोगे ?'' ''कल मैं किसी दूसरे से मांग लूंगा ।'' लड़के ने कहा |'' अगर चार आने दे दूं तो क्या करोगे?'' ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उससे फिर पूछा| ''उसमें से एक आने का भोजन करूंगा और शेष 3 आने के संतरे ला कर यही सड़क पर बैठ कर बेचूंगा |'' लड़के ने कहा ।'' और अगर एक रुपया दे दूं तो ?''तब फेरी लगाऊंगा ,'' लड़के ने प्रसन्न होकर कहा । ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उसे एक रूपया दे दिया। वह लड़का उस रूपए से सामान ला कर बेचने लगा । बहुत दिनों बाद एक दिन वह अपनी दुकान पर बैठा था । तभी उसकी दृष्टि ईश्वरचंद्र विद्यासागर पर पड़ी । वह उन्हें अपने दुकान पर ले आया और हाथ जोड़कर बोला, ''आप ने मुझ पर जो उपकार किया था उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। यह लीजिए, आपका रूपया ।'' ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने मुस्कराते हुए कहा, ''इस में आभार मानने की कोई जरूरत नहीं है । एक देशवासी होने के नाते यह मेरा कर्त्तव्य था । तुम्हें मेरा वह एक रूपया देना सार्थक हुआ। अब यह रूपया तुम किसी और योग्य एवं जरूरतमंद को दे देना ।''
शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
उपयोग
पंडित मदनमोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए जगह-जगह जा कर धन इकट्ठा कर रहे थे । एक बार वे सहयता मांगने हैदराबाद के नवाब के यहां पहुंचे, लेकिन उन्हें खाली हाथी वापस आना पड़ा । हैदराबाद में घूमते हुए उनकी दृष्टि एक धनी व्यक्ति की अर्थी पर पड़ी, जिसे उस के परिजन अंतिम संस्कार करने श्मशान घाट ले जा रहे थे । परंपरा के अनुसार अर्थी पर पैसे लुटाए जा रहे थे । मालवीयजी शमयात्रा में शामिल हो कर पैसे उठाने लगे । एक संपन्न व्यक्ति को ऐसा करते देख कुछ लोगों ने टोका तो मालवीयजी ने पूरी घटना बताई कि किस उद्देश्य से वह हैदराबाद आए थे और कैसे उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा था । उन्होंने आगे कहा,''इस पैसे को जोड़ कर जो धन प्राप्त होगा, उसे मैं हैदराबाद के सहयोग के रूप में निर्माण कार्य में लगाउंगा । यह सुनकर उस शवयात्रा में शामिल धनाढ्य लोगों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने आपस में चंदा इकट्ठा करके कई हजार रूपये मालवीयजी को दिए ।
रविवार, 2 अगस्त 2009
रूप और गुण
प्रख्यात दार्शनिक सुकरात शक्ल-सूरत से कुरुप था । वह रोज आईने में अपना चेहरा देखा करता था । एक दिन वह आईने में अपना चेहरा देख रहा था कि उस का शिष्य सामने आ खड़ा हुआ और अपने गुरु को आईने में चेहरा देखता देख कर मुस्करा उठा । सुकरात उसके मुस्कराने का कारण समझ गया । वह बोला, ''मैं तुम्हारे मुस्कराने का मतलब समझता हूँ । तुम इसलिए मुस्कराए हो न कि मैं कुरुप हूं और आईने में बड़े गोर से अपना चेहरा देख रहा हूँ? मैं ऐसा रोज करता हूँ ।'' शिष्य हतप्रभ खड़ा रह गया । उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था । शर्म के मारे उस का सिर नीचे झुका रहा । वह क्षमा मांगता, इससे पूर्व ही सुकरात बोला, ''आईना देखने से मुझे अपनी कुरुपता का आभास होता रहता है । मैं अपने रूप से भलीभांति परिचित हूं, इसलिए प्रयत्न करता हूं कि मुझ से हमेशा अच्छे काम होते रहें । मैं समाज की भलाई में लगा रहूं ताकि अच्छे कामों से मेरी कुरुपता ढक सके।'' कह कर सुकरात खामोश हो गया ।
''गुरुवर, इसका तात्पर्य तो यह हुआ कि रूपवान लोगों को आईना देखना ही नहीं चाहिए?'' शिष्य सकुचाते हुए बोला ।
''नहीं,ऐसी बात नहीं । आईना उन्हें भी देखते रहना चाहिए । केवल इसलिए कि उन्हें ध्यान रहे कि वे जितने सुंदर हैं उतने ही अच्छे और भलाई के काम करें । उन्हें बुरे काम से बचना चाहिए, ताकि उन की सुंदरता को कुरुपता का ग्रहण न लग सके । व्यक्ति के गुणों अवगुणों का संबंध रूपवान व कुरुप होने से नहीं, बल्कि अच्छे व बुरे विचारों से कामों से है । अच्छा काम करने से रूपवान और सुंदर लेते हैं । बुरे काम उनके रूपवान व्यक्तित्व पर ग्रहण जैसे होते हैं ।'' सुकरात ने उत्तर दिया।
रविवार, 26 जुलाई 2009
साहस
नेपोलियन अपनी सेना आल्प्स पर्वत से होकर ले जाना चाहता था और रास्ता खोजने स्वयं पहाड़ की तलहटी में आया था । वहां एक बुढ़िया रहती थी। नेपोलियन उससे रास्ते की जानकारी लेने के बात करने लगा तो वह बोली, '' मूर्ख तेरे जैसे कितने ही इस दुर्गम पहाड़ पर चढ़ने के प्रयास में जान गंवा बैठे हैं । बेमौत मरने से कोई लाभ नहीं । वापस लौट जा |''
नेपोलियन ने मुस्कराते हुए कहा, ''माताजी , अच्छा हुआ, आप ने मुझे कठिनाईयों से आगाह कर दिया । इससे मेरा हौसला बढ़ा है और अधिक समझदारी से काम लेने की सीख मिली है । आप की कृपा से मैं यह पहाड़ एक दिन अवश्य पार करके रहूंगा |'' यह सुनकर बुढ़िया दंग रह गई । खतरों को इस तरह चुनौती देने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता । उसने आशीर्वाद दिया और कहा, ''साहसी व्यक्ति के लिए संसार में कोई काम असंभव नहीं होता |''
नेपोलियन आल्पस पर्वत पार करने में सफल हो गया । पर वह बुढ़िया ने इस संवाद को समय-समय पर याद करता रहा-''साहसी व्यक्ति के लिए संसार में कोई काम असंभव नहीं होता |''
नेपोलियन ने मुस्कराते हुए कहा, ''माताजी , अच्छा हुआ, आप ने मुझे कठिनाईयों से आगाह कर दिया । इससे मेरा हौसला बढ़ा है और अधिक समझदारी से काम लेने की सीख मिली है । आप की कृपा से मैं यह पहाड़ एक दिन अवश्य पार करके रहूंगा |'' यह सुनकर बुढ़िया दंग रह गई । खतरों को इस तरह चुनौती देने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता । उसने आशीर्वाद दिया और कहा, ''साहसी व्यक्ति के लिए संसार में कोई काम असंभव नहीं होता |''
नेपोलियन आल्पस पर्वत पार करने में सफल हो गया । पर वह बुढ़िया ने इस संवाद को समय-समय पर याद करता रहा-''साहसी व्यक्ति के लिए संसार में कोई काम असंभव नहीं होता |''
शनिवार, 18 जुलाई 2009
अहसास
हजरत अली के पास एक नौकर था । एक दिन वह किसी बात पर अपने मालिक से नाराज हो गया और नौकरी छोड़ कर चला गया । कुछ दिनों बाद हजरत अली जब मस्जिद में नमाज पढ़ने गए तो नौकर भी चुपचाप उनके पीछे-पीछे वहां पहुंचा और तलवार निकाल कर उन पर वार कर दिया । हजरत अली को काफी चोट आई । कुछ लोगों ने उन्हें उठाया और उपचार करने लगे तथा कुछ लोगों ने दौड़ कर उस नौकर को पकड़ लिया | वे उसे हजरत अली के सामने ले आए । इतने में हजरत अली को प्यास लगी । उन्होंने पानी मांगा, लोग दौड़े गए और शरबत ले आए। गिलास में जब शरबत हजरत अली के सामने पेश किया गया तो उन्होंने नौकर की ओर इशारा करके कहा- ''मुझे नहीं, पहले इसे पिलाओ, देखते नहीं, कितना थक गया है, कितनी बुरी तरह हांफ रहा है ।''
लोगों ने नौकर की ओर गिलास बढ़ाया । उसकी आंखों से आंसू बहने लगे । हजरत अली ने बड़े प्यार से कहा- ''भाई, रोओ मत । गलती हम सब से हो जाती है। शरबत पी लो ।''
नौकर उनके पैरों पर गिर पड़ा और अपने किए की माफी मांगने लगा । हजरत अली ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''मेरे प्यारे भाई, जो अपनी गलती को जान लेता है और भविष्य में गलती न करने का फैसला कर लेता है, वह जिंदगी में बहुत उंचा उठ जाता है ।
शनिवार, 11 जुलाई 2009
शिष्टाचार
यह घटना उस समय की है जब ईश्वरचन्द्र विद्यासागर संस्कृत कालेज के आचार्य थे । एक बार उन्हें किसी काम से प्रेसीडेंसी कालिज के अंग्रेज आचार्य कैर से मिलने जाना पड़ा । कैर उस समय जूते पहने मेज पर पांव फैलाए बैठे थे । खड़े होकर स्वागत करने की तो बात दूर रही, वह ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को देख कर भी उसी तरह बैठे रहे । ईश्वरचंद्र को यह अच्छा नहीं लगा, पर वह चुपचाप इस अपमान को पी गए ।
कुछ दिन बाद किसी काम से कैर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां आए। उन्हें देखकर ईश्वरचंद्र ने चप्पलों समेत अपने पांव उठा कर मेज पर फैला लिए और आराम से कुर्सी पर बैठे रहे । उन्होंने कैर से बैठने को भी नहीं कहा । कैरे ने उनके इस दुर्व्यवहार की शिकायत लिखित रूप से शिक्षा परिषद् के सचिव डा. मुआट से की । डा. मुआट ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को भलीभांति जानते थे, फिर भी एक दिन वह कैर को लेकर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां गए और बातचीत में कैर की शिकायत का जिक्र किया । इस पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कहा, ''हम भारतीय लोग अंग्रेजों से ही यूरोपीय शिष्टाचार सीखते हैं । जब मैं इनसे मिलने गया था तो यह इसी तरह बैठे रहे थे । इस से मैंने समझा कि यूरोपीय शिष्टाचार यही है, इसलिए मैंने इनका अनुशरण किया । इन्हें नाराज करने का मेरा इरादा बिल्कुल भी नहीं था । उनकी इस बात को सुनकर डा॰ मुआट और कैर को शार्मिंदा होना पड़ा ।
कुछ दिन बाद किसी काम से कैर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां आए। उन्हें देखकर ईश्वरचंद्र ने चप्पलों समेत अपने पांव उठा कर मेज पर फैला लिए और आराम से कुर्सी पर बैठे रहे । उन्होंने कैर से बैठने को भी नहीं कहा । कैरे ने उनके इस दुर्व्यवहार की शिकायत लिखित रूप से शिक्षा परिषद् के सचिव डा. मुआट से की । डा. मुआट ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को भलीभांति जानते थे, फिर भी एक दिन वह कैर को लेकर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के यहां गए और बातचीत में कैर की शिकायत का जिक्र किया । इस पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कहा, ''हम भारतीय लोग अंग्रेजों से ही यूरोपीय शिष्टाचार सीखते हैं । जब मैं इनसे मिलने गया था तो यह इसी तरह बैठे रहे थे । इस से मैंने समझा कि यूरोपीय शिष्टाचार यही है, इसलिए मैंने इनका अनुशरण किया । इन्हें नाराज करने का मेरा इरादा बिल्कुल भी नहीं था । उनकी इस बात को सुनकर डा॰ मुआट और कैर को शार्मिंदा होना पड़ा ।
रविवार, 5 जुलाई 2009
झूठा अभिमान
आल्सिबाइडिस एक संपन्न जमींदार था । उसे अपनी संपत्ति और जागीर पर बड़ा गर्व था । एक दिन उसने सुकरात के पास जा कर अपने ऐश्वर्य का वर्णन करना आरंभ कर दिया । सुकरात चुपचाप उस की बात सुनता रहा । थोड़ी देर बाद उसने पृथ्वी का एक नक्शा मंगवाया । वह नक्शा फैला कर जमींदार से बोला,'' इस में अपना यूनान देश कहां हैं ?'' यह रहा यूनान| जमींदार ने नक्शे पर एक स्थान पर उंगली रखते हुए कहा। और अपना ऐटिका प्रांत कहां है ? सुकरात ने पूछा । जमींदार अपने छोटे से प्रांत को बड़ी कठिनाई से ढूंढ सका । सुकरात ने उस से फिर पूछा-इसमें आपकी जागीर कहां है?नक्शे में इतनी छोटी जागीर कैसे दिखाई जा सकती है ? जमींदार बोला । इस पर सुकरात ने कहा, भाई, जिस भूमि के लिए इतने बड़े नक्शे में एक बिंदु भी नहीं रखा जा सकता, उस थोड़ी सी भूमि पर तुम गर्व करते हो ? इस पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारी भूमि और तुम कहां हो, कितने बड़े हो ? जरा यह सोचो | फिर यह गर्व किस बात पर ?
शनिवार, 27 जून 2009
प्रतिज्ञा
डाक्टर जाकिर हुसैन उस समय राष्ट्रपति नहीं थे । उनके घर पर एक नौकर था । नौकर कार्य करने में तो कुशल था, पर बहुत आलसी था । वह समय पर नहीं उठता था । घर के सभी सदस्यों ने जाकिर हुसैन से इस बारे में उसकी शिकायत की। जाकिर हुसैन एक दिन सुबह उठे और सोते हुए नौकर के पास जा कर मधुर स्वर में बोले, ''मालिक, उठिए, मैं आप के लिए मुंह सापफ करने को पानी लाया हूँ।'' यह सुन कर नौकर लगा कि वह सपना देख रहा है, अतः वह नहीं उठा । कुछ समय के बाद जाकिर हुसैन चाय ला कर बोले, ''मालिक, अब तो उठिए, मैं आपके लिए चाय लाया हूँ ।'' नौकर ने आंख खोल कर देखा कि मालिक सचमुच चाय का कप लिए खड़े हैं । वह शर्म से जमीन में गड़ गया । उसी समय उसने प्रतिज्ञा की कि वह जल्दी उठकर समय पर सारे काम किया करेगा ।
गुरुवार, 25 जून 2009
विचारशील
गहरी नींद में सोते हुए नेपोलियन को उसके सेनापति ने मध्य रात्रि में जगाया और दक्षिणी मोर्चे पर शत्रुओं द्वारा अचानक हमला किए जाने की खबर दी। नेपोलियन आंखें मलते हुए उठा और दीवार पर टंगे 34 नंबर के नक्शे को उतारते हुए बोला, ''इसमें बताए हुए तरीके के अनुसार काम करो । '' सेनापति चकित रह गया कि जिस हमले का उसे अनुमान तक न था, उस हमले की संभावना को नेपोलियन ने समय से पूर्व ही कैसे सोच लिया और कैसे उस का प्रतिकार खोल लिया ।
सेनापति को आश्चर्यचकित देख कर नेपालियन ने कहा, '' विचारशील लोग अच्छी से अच्छी आशा करते हैं, किंतु बुरी से बुरी परिस्थिति के लिए भी तैयार रहते हैं । मेरी मनः स्थिति सदा ऐसी ही रही है । इसलिए मुझे विपत्ति आने से पहले ही उसका अनुमान लगाने और उपाय सोचने में संकोच नहीं होता । ''
मंगलवार, 23 जून 2009
नींव का पत्थर
लाल बहादुर शास्त्री बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे । लोग उन के भाषण, निःस्वार्थ सेवा भावना जैसे गुणों से अनायास ही प्रभावित हो जाते थे । लेकिन जब वह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो बहुत ज्यादा संकोची हो गए। वह नहीं चाहते थे कि उनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा और स्वागत करें।
एक दिन शास्त्री जी के कुछ मित्रों ने उनसे पूछा, ''शास्त्री जी, आपको अखबारों में नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों है ?'' शास्त्री जी कुछ देर सोच कर बोले, ''लाला लाजपत राय जी ने लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था कि लाल बहादुर ताज महल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं । एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन को सारी दुनिया देखती है तथा प्रशंसा करती है । दूसरे वे पत्थर हैं जो ताजमहल की नींव लगे हैं, जिन के जीवन में केवल अंधेरा ही अंधेरा है लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा रखे हुए हैं? तुम नींव के पत्थर बनने का प्रयास करना । '' लाला जी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं । अतः मैं नींव का पत्थर ही बना रहना चाहता हूँ ।
गुरुवार, 18 जून 2009
उपयोग
जब मौलाना अबुल कलाम आजाद की पत्नी बेगम आजाद का कलकत्ते में देहांत हुआ उस समय मौलाना आजाद अहमदाबाद की जेल में कैद थे । उनके कृतज्ञ देशवासी बेगम आजाद की स्मृति में स्मारक बनाना चाहते थे । इस के लिए उन्होंने आजाद स्मृति कोष बनाया और धन इकट्ठा करने लगे ।
जब मौलाना आजाद जेल से छूट कर आए तो उन्हें इस बात का पता चला । उन्होंने तत्काल कहा, ''बेगम आजाद स्मृति कोष बंद किया जाए और इस कोष में इकट्ठे धन को इलाहाबाद के कमला नेहरू अस्पताल को दे दिया जाए ।'' इस तरह उस धन से कमला नेहरु अस्पताल में बेगम आजाद कक्ष बनवाया गया ।
सीख
नेहरू जी 1950 में लंदन गए । वहां एक समारोह में उनकी भेंट ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री चर्चिल से हुई । चर्चिल नेहरू जी के कटु आलोचक थे । लेकिन वहां दोनों की खुल कर बात हुई , दोनों पुराने दिनों को याद कर रहे थे। इसी चर्चा के दौरान चर्चिल ने नेहरू जी से पूछा- आपने अंग्रेजों की जेल में कितने वर्ष बिताए ? नेहरू जी ने उत्तर दिया- लगभग 10 वर्ष । इस पर चर्चिल ने कहा, ‘हम ने आप के साथ ऐसा व्यवहार किया । आप को तो हम से घृणा करनी चाहिए।' नेहरू जी ने उत्तर दिया, ''यह बात नहीं है, हमने एक ऐसे नेता के अधीन काम किया है जिस ने हमें दो बातें सिखाई हैं । पहली तो यह कि किसी से डरो मत और दूसरी यह कि किसी से घृणा मत करो ।'' हम तब आप से डरते भी नहीं थे और इसलिए अब घृणा भी नहीं करते । चर्चिल निरुत्तर हो गये ।
बुधवार, 17 जून 2009
सच्चा उपदेश
एक बार रात के समय महात्मा बुद्ध प्रवचन कर रहे थे । प्रवचन सुनने के लिए बैठा एक व्यक्ति बार-बार नींद के झोंके ले रहा था । थोड़ी देर बाद महात्मा बुद्ध ने उसे पुकार कर पूछा-वत्स, सो रहे हो ? नहीं, महात्मन् , हड़बड़ा कर उस ने कहा । महात्मा बुद्ध का प्रवचन चलता रहा । वह व्यक्ति पहले की तरह उंघता रहा। महात्मा बुद्ध बीच-बीच में वही प्रश्न पूछ-कर उसे जगा दिया करते थे, लेकिन नहीं महात्मन् कह कर वह फिर से सो जाता था।
काफी समय के बाद बुद्ध ने पूछा- वत्स, जीवित हो? नहीं महात्मन् , हर बार की तरह इस बार भी उस ने कहा । श्रोताओं में हंसी की लहर दौड़ गई । महात्मा बुद्ध भी मुस्कराए फिर गंभीर हो कर बोले- वत्स, निन्द्रा में तुम से सही उत्तर निकल गया, जो निद्रा में है, वह मृतक समान ही है ।
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