रविवार, 26 दिसंबर 2010

समय का मूल्य

एक दिन पुस्तकों की एक दुकान पर एक ग्राहक आया । कुछ देर तक पुस्तकों को देखने के बाद उसने दुकान के एक कर्मचारी से पूछा, ''इस पुस्तक की क्या कीमत है ?'' उत्तर मिला,''एक डालर''। ''कुछ कम नहीं हो सकता ?''''नहीं,'' दुकान के कर्मचारी ने स्पष्ट कह दिया । ग्राहक थोड़ी देर तक अन्य पुस्तकों को देखता रहा, फिर उस कर्मचारी से पूछा, ''क्या आप दुकान के मालिक को बुला सकते हैं ? मैं उन से मिलना चाहता हूं ।''
दुकान के मालिक के आने पर ग्राहक ने उससे पूछा, ''इस पुस्तक को आप कम से कम किस कीमत पर दे सकते हैं ?'' उत्तर मिला, ''सवा डालर ।'' ग्राहक आश्चर्य चकित रह गया । उसने कहा, ''पर अभी तो आप का कर्मचारी इस की कीमत एक डालर बता रहा था ।''''जी हां, जरूर बता रहा होगा । बाकी मेरे समय की कीमत है ।''अच्छा, जो भी कीमत आप ने लेनी हो, वह अंतिम बार बता दीजिए,'' ग्राहक बोला । ''अब डेढ़ डालर । आप जितनी देर करते जाएंगे, उतनी ही कीमत बढ़ती जाएगी, क्योंकि समय का मूल्य भी इस के साथ जुड़ जाएगा ।'' ग्राहक के पास अब कोई चारा न था । वह एक के बदले डेढ़ डालर दे कर पुस्तक खरीद कर ले गया । साथ ही उसे समय का मूल्य भी ज्ञात हो गया । समय का मूल्य बताने वाले दुकान के यह मालिक थे । बेंजामिन फ्रेंकलिन, जो बाद में अमरीका के प्रख्यात आविष्कारक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक बने ।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

आत्म समीक्षा

डेनमार्क के मशहूर मूर्तिकार थोबीडन अपने समय के अद्‍वितीय कलाकार थे। एक दिन एक सभा में उसके एक प्रशंसक ने पूछा, ''जनाब आपने किस गुरु से यह मूर्तिकला सीखी और किस विद्यालय से प्रवीणता प्राप्त की।''
थोबीडन मुस्कराए व बोले, '' आत्मसुधार मेरा विद्यालय है और आत्मसमीक्षा मेरा गुरु । मैंने सदैव अपनी कृतियों में त्रुटि खोजी और अधिक उपयुक्त बनाने के लिए जो समझ में आया, उसे अविलंब अपनाया । यही कारण है कि आज मैं सपफलता के इस उच्च शिखर तक पहुंच सका हूं।''

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

हैरान

चर्चिल को  एक बार किसी  सभा में  व्याख्यान देना था । जमा भीड़ की ओर इशारा  करते हुए एक  प्रशंसक ने कहा,'' आप इतने लोकप्रिय  हैं, मिस्टर चर्चिल कि आप को सुनने के लिए 5 हजार लोग आए हैं ।'' इस पर चर्चिल ने तटस्थ भाव से कहा, ''मेरे ये मित्र भाषण सुनने नहीं, अपितु तमाशा देखने आए हैं । यदि कल मुझे इसी स्थान पर फांसी देने की घोषणा कर दी जाए तो आप को यहां 50 हजार की भीड़ को देख कर भी हैरान नहीं होना चाहिए।'' 

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

सहिष्णुता

दीवाली  की  हार्दिक  शुभकामनाएं 
उन दिनों दिवंगत लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे । एक बार वह रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे । प्रथम श्रेणी के डिब्बे में अपनी सीट पर एक बीमार व्यक्ति को लिटा कर, वह स्वयं तृतीय श्रेणी में जाकर उसकी बर्थ पर चादर ओढ़ कर लेट गए।थोड़ी देर में सो गए । कुछ समय बाद टिकट निरीक्षक आया और उन्हें सोता पाकर बुरा भला कहने लगा ।
लालबहादुर शास्त्री उसकी आवाज सुन कर जागे । जब उन्होंने टिकट निरीक्षक को अपना परिचयपत्र दिखाया तो टिकट निरीक्षक बुरी तरह घबरा गया। बोला, ''सर, आप और तीसरे दरजे में? आप चलिए, मैं आपको आपके डिब्बे में पहुंचा दूं।'' लेकिन वह मुस्कराते हुए बोले,''अरे भैया, मुझे तो नींद आ रही है।क्यों मेरी मीठी नींद खराब करते हो।'' वह फिर से चादर ओढ़ कर सो गए ।

रविवार, 24 अक्टूबर 2010

इंसानियत

विवेकानंद किशोरावस्था में व्यायाम के प्रति काफी रूचि रखते थे । वह प्रतिदिन व्यायामशाला जाया करते थे । एक बार वह व्यायामशाला में झूला लगा रहे थे, कि अचानक एक अंग्रेज नाविक ने उनसे और उनके दोस्तों से किसी बात पर झगड़ा शुरू कर दिया । अभी झगड़ा चल ही रहा था कि अचानक व्यायामशाला का एक खंभा अंग्रेज के सिर पर गिर पड़ा, जिससे उसका सिर फट गया और खून बहने लगा ।
खून देख कर अन्य किशोर तो डर गए पर विवेकानंद ने झट झगड़ा भुला दिया और मानसिक संतुलन खोए बिना अपनी कमीज फाड़ी, नाविक के घायल सिर पर पट्टी बांध दी और उसकी बगल में बैठ कर पंखा करने लगे । कुछ देर बाद अंग्रेज नाविक होश में आ गया, बाद में वह अंग्रेज विवेकानन्द का घनिष्ठ मित्र बन गया ।

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

आत्मविश्वास

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद उस समय 11वीं कक्षा में पढ़ते थे । वह बहुत तीक्ष्ण बुद्धि के थे । उस समय देश पर अंग्रेजों का शासन था । राजेन्द्र प्रसाद जिस स्कूल में पढ़ रहे थे, वहां एक अंग्रेज शिक्षक था । जिसके जिम्मे 11वीं कक्षा के प्रश्न पत्र जांचने का काम था ।
जब परीक्षाफल घोषित हुआ तो इस शिक्षक ने प्रथम स्थान पर किसी अंग्रेज छात्रा का नाम घोषित किया । परीक्षाफल के अनुसार राजेन्द्र प्रसाद का बहुत मामूली स्थान था । अपना परीक्षापफल देखने के बाद राजेन्द्र प्रसाद शिक्षक के पास जा कर बोले, ''सर, मेरा नाम प्रथम स्थान पर नहीं आया है । मेरा विश्वास है कि मुझे गलत स्थान दिया गया है ।'' प्रधानाध्यापक ने जाने क्या सोच कर उस आत्मविश्वासी किशोर के हल किए परचों की जांच की और पाया कि उस बालक ने वास्तव में प्रथम स्थान प्राप्त किया था ।

सोमवार, 13 सितंबर 2010

सार्थक

हिन्दी दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रसिद्ध हिंदी कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ शांतिनिकेतन में अपना अध्ययन समाप्त कर जब वापस लौटने लगे तो उन्होंने संस्था के मुख्य आचार्य क्षितिमोहन सेन से आशीर्वाद मांगने के लिए उनके पांव छुए । आचार्य ने पीठ पर हाथ रखकर कहा ,'' तुम कभी सफल न बनना ।'' ‘सुमन’ इस बात से भौंचक्के रह गए । उन्होंने सोचा, ''शायद मुझ से कोई गलती हो गई, जिससे गुरुजी क्रुद्ध हो गए ।'' साहस करके उन्होंने पूछा, ''गुरुजी, मुझ से क्या अपराध हुआ है ?'' आचार्य बोले, ''देखो, हर वर्ष लाखों लोग सफल होते हैं, लेकिन उनमें काई एकाध् ही सार्थक हो पाता है ।'' इसलिए मेरी इच्छा है कि तुम सार्थक बनो ।''

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

निर्देश

अमरीका के प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन के घर में एक बार चोरी हो गई । उसके बाद उन्होंने अपने घर के बाहर एक बोर्ड लगा दिया जिस पर लिखा - ''इस घर में अब एक ही वस्तु चुराने लायक रही है, वह है चांदी की तश्तरी जो रसोईघर में रखी अलमारी के सब से उपरी खाने में रखी है । पास ही में एक डलिया में बिल्ली के बच्चे हैं । यदि कोई सज्जन डलिया भी ले जाना चाहे तो बिल्ली के बच्चों को किसी कपड़े से ढक जाए । लेकिन किसी प्रकार का शोर न मचाए, अन्यथा घर के लोगों को असुविधा होगी । बाद में उसे भी हो सकती है ।'' यह बोर्ड टंगने के बाद पिफर कभी उनके यहां चोरी नहीं हुई ।

रविवार, 15 अगस्त 2010

प्रेरणा

आजादी की ६३वीं वर्षगाठ पर आपको हार्दिक शुभकामनांए।
स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों की बात है, जब जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने हजारों निर्दोष भारतीयों पर गोलियां चलवाई थीं और धरती खून से लाल हो गई थी । जब भगतसिंह ने यह सुना, उस समय उनकी उम्र केवल 12 वर्ष थी । अगले दिन वह घर से स्कूल जाने के लिए निकले, पर स्कूल न जाकर जलियांवाला बाग गए। वहां धरती अभी तक लाल थी । वह वहीं बैठ गए और एक शीशी में खून से सनी मिट्टी भरने लगे । मिट्टी भर कर शीशी जेब में रख ली और वहीं बैठ कर घंटों सोचते रहे । जब उन का ध्यान टूटा तो शाम घिर आई थी । स्कूल में कब की छुट्टी हो चुकी थी ।
                                        जब वह देरी से घर पहुंचे तो बहन ने पूछा, ''इतनी देर कहां लगा दी ?'' '' जलियांवाला बाग गया था,'' फिर उन्होंने शीशी जेब से निकाली । बहन ने पूछा, ''इस में क्या है?'' '' यह शहिदों का खून है।'' ''इससे क्या होगा?'' भगतसिंह ने शीशी को मजबूती से पकड़ते हुए दृढ़ता से कहा,''मुझे प्रेरणा मिलेगी।'' उसी प्रेरणा का परिणाम था कि समय आने पर वह हंसते हंसते मातृभूमि के लिए शहीद हो गए ।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

प्रसिद्ध लेखक

अंग्रेजों का जमाना था । अंग्रेज गवर्नर ने प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद को रायसाहब की उपाधि देने की घोषणा की। प्रेमचंद यह सुनकर परेशान हो गए । उनकी पत्नी ने कहा,'' इसमें परेशान होने की क्या बात है? जब उपाधि मिल रही है तो लेनी चाहिए ।''
प्रेमचंद ने कहा, ''अभी तक मैं जनता के लिए लिखता था । लेकिन फिर सरकार के पक्ष में लिखना होगा।''
उन्होंने गवर्नर को लिखा, ''मुझे जनता का रायसाहबी मंजूर है, सरकार का नहीं ।''

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

निश्चय

वल्लभ भाई पटेल का बचपन गांव में बीता था । वह जिस गांव में रहते थे, वहां कोई अंग्रेजी स्कूल नहीं था । इसलिए  अंग्रेजी पढ़ने वाले विद्यार्थी नित्य 10-11 किलोमीटर पैदल चल कर दूसरे गांव जाते थे । गर्मियों में सुबह 7 बजे स्कूल लगता था । इसलिए सूर्योदय से पहले ही घर से निकल कर खेतों से होते हुए जाना पड़ता था । एक खेत की मेड़ पर लगे पत्थर से अकसर किसी न किसी को ठोकरे लग जाती थी । एक दिन उसी खेती की मेड़ पार करने के बाद छात्रों की एक टोली ने देखा कि उनमें से एक साथी कम है । दरअसल वल्लभ भाई पटेल पीछे छूट गए थे । टोली मुड़ कर लौटी तो देखा कि वल्लभ भाई पटेल की खेत की मेड़ पर किसी चीज से जोर आजमाइश कर रहे हैं । साथियों ने आवाज दी, ''तुम पीछे क्यों रूक गए ?'' ''बस यह पत्थर हटा लूं ।'' वल्लभ भाई पटेल ने वह पत्थर हटाया और साथियों के साथ चलते हुए बोले, ''रास्ते के इस पत्थर से अकसर अड़चन पड़ती थी । अंधेरे में जाने कितनों के पैरों में चोटें आई होंगी । आते जाते चोट लगे और रूकावट पड़े, ऐसी चीज को हटा देने के सिवा कोई चारा नहीं । मैंने निश्चय किया था कि आज इसे हटा कर ही आगे बढूंगा । इसलिए रूक गया था ।''

बुधवार, 23 जून 2010

हौंसला

रूस के एक वायुयान इंजीनियर की पहले महायुद्ध में एक टांग कट गई थी। दूसरे महायुद्ध के दौरान वह अस्पतालों में घायलों को देखने पहुंचे । उन्होंने मरीजों को हौंसले बनाए रखने के लिए कहा, ''नकली टांग का फायदा यह है कि चोट लगने पर महसूस नहीं होती ।''
यह सुनकर उन्होंने अपना बेंत एक आदमी को दे कर कहा कि इसे जोर से मेरी टांग पर मारो । उसने बहुत जोर से बेंत मारी, इंजीनियर ने हंसते हुए कहा,'' देखो, मुझे कोई असर नहीं हुआ।'' इस पर सब हंस पड़े । कमरे से बाहर निकलते ही उनके मुख पर पीड़ा के चिन्ह उभर आए । उनके साथी अफसर ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा, ''उसने गलत टांग पर बेंत मार दिया था।''

गुरुवार, 17 जून 2010

स्पष्टवादिता

बालगंगाधर तिलक बचपन से ही सत्यवादी एवं निर्भीक स्वभाव के थे । बचपन में उनकी कक्षा के कुछ विद्यार्थियों ने मूंगफली खाकर छिलके फर्श पर इधर-उधर फैक दिए । अध्यापक ने आ कर देखा कि फर्श पर छात्रों ने कूड़ा फैलाया हुआ है । उन्होंने छात्रों को डांटते हुए कहा, ''यह मूंगफली के छिलके किस-किस ने फेंके हैं ?'' सब लड़के चुप रहे । किसी ने भी अपनी भूल कुबूल नहीं की तो अध्यापक ने गुस्से में लड़कों से हाथ खुलवाए और दो-दो डंडे लगाए ।
जब बाल गंगाधर तिलक की बारी आई तो वह नम्रतापूर्वक स्पष्ट शब्दों में बोले, ''सर, मैंने मूंगफली नहीं खाई । अतः छिलके फेंकने का सवाल ही पैदा नहीं होता । मैं अपराधी नहीं हूं । इसलिए मैं मार नहीं खाउंगा ।'' फिर बताओ, ''मूंगफली किसने खाई है ?'' ''सर, मुझे चुगलखोरी की आदत पंसद नहीं है । इसलिए मैं किसी अन्य छात्रा का नाम भी नहीं लूंगा ।'' लेकिन मार भी नहीं खा सकता ।'' उनकी स्पष्टवादिता ने उन्हें स्कूल से निकलवा दिया । लेकिन उनके इसी गुण ने उन्हें आगे चल कर भारत माता का महान् सपूत बना दिया ।

शनिवार, 12 जून 2010

अहिंसा का पुजारी

गांधी जी हमेशा अपने साथ लाठी रखा करते थे । एक बार जवाहर लाल नेहरू अपने पिता मोतीलाल नेहरू के साथ गांधी जी से मिलने गए । शाम हो चुकी थी । गांधी जी के कमरे में एक दीया जल रहा था । जैसे ही वे दोनों कमरे में घुसे, दीया बुझ गया । नेहरू दरवाजे के पास पड़ी लाठी से टकरा गए। नेहरू ने पूछा, ''बापू आप तो अंहिसा के पुजारी हैं । फिर आप यह लाठी अपने साथ क्यों रखते हैं?'' ''तुम्हारे जैसे उद्दंड लड़कों को सीधा करने के लिए |'' गांधी जी ने जवाब दिया ।

मंगलवार, 8 जून 2010

लगन

टामस एलवा एडीसन एक महान् वैज्ञानिक थे । उन दिनों वह स्टोरेज बैटरी बनाने में लगे हुए थे । पच्चीस बार उन्होंने प्रयत्न किया, पर वह अपने उद्देश्य में सफल न हो सके ।
जब उन्होंने छब्बीसवीं बार प्रयत्न करना प्रारम्भ कर दिया तो एक आदमी ने उनसे पूछा, ''आप इसे बनाने की 25 बार कोशिश कर चुके हैं और असफल रहे हैं । इतना समय और परिश्रम आपने व्यर्थ में ही गंवाया । इससे आप को क्या मिला?''
एडीसन मुस्कराते हुए तपाक से बोले, ''25 ऐसे ‘तरीके’ जिनसे स्टोरेज बैटरी किसी हालत में नहीं बन सकती ।''

शुक्रवार, 4 जून 2010

न्याय

यहूदी धर्म गुरु वूल्पफ बहुत ही शांतिप्रिय एवं न्यायी थे । एक बार उनके घर से एक चांदी का बरतन चोरी हो गया । वूल्पफ ' को नौकरानी पर संदेह था। पर नौकरानी अपने को निर्दोष बता रही थी । अतः वूल्पफ की पत्नी धर्म न्यायालय से न्याय पाने के लिए घर से निकल पड़ी । धर्म गुरु भी अपना धर्माचार्य का चोगा पहने चलने को तैयार होने लगे, तो उनकी पत्नी बोली, ''आप को मेरे साथ चलने की जरूरत नहीं है । न्यायालय में क्या और कैसे बोला जाता है, यह मैं खूब जानती हूं।'' ''तुम तो सब कुछ जानती हो, लेकिन यह अनपढ़ भोली भाली नौकरानी कुछ नहीं जानती, मैं उसके पक्ष में न्यायालय जा रहा हूं, ताकि उसे न्याय मिल सके ।''

रविवार, 30 मई 2010

आत्मविश्वास

नील नदी के युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के सेनाध्यक्ष नेलसन थे । जंगी बेड़े के अनेक अधिकारियों की आंखों में निराशा व भय था । पर नेलसन अद्भुत आत्म विश्वास से भरे थे । सहसा बेड़े के कप्तान ने कहा, ''अगर हमारी जीत हो जाए तो दुनिया दंग रह जाएगी ।'' नेलसन ने गंभीर और दृढ़ स्वर में कहा,'' प्तान, हम जीतेंगे और अवश्य जीतेंगे ।'' सेनापति के इन शब्दों ने मंत्र-सा प्रभाव दिखाया और वे एक नए विश्वास, नए साहस से भर गए । फलस्वरूप उन की जीत हो गई ।

सोमवार, 24 मई 2010

मूल्यवान

इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया ने एक बार विएना के प्रसिद्ध पियानोवादक को अपने महल में बुलाया । उसका मधुर संगीत सुनकर महारानी खुश हो गई । आखिर में उन्होंने आस्ट्रिया का राष्ट्रगीत सुनने की इच्छा जाहिर की । राष्ट्रगीत पूरा होने तक महारानी खड़ी रही । पियानोवादक की खुशी की सीमा न रही । उसने अपने मित्रों से कहा, ''महारानी ने पुरस्कार के तौर पर मुझे हीरे का जड़ाउं हार दिया । लेकिन मेरे राष्ट्रगीत के सम्मान में उनका खड़ा होना मेरे हार से मूल्यवान था।''

शुक्रवार, 21 मई 2010

समय की कीमत

प्रसिद्ध चिकित्सक अमरनाथ झा समय के बड़े पाबंद माने जाते थे। एक बार वह पटना गए हुए थे। वहां साहित्यकारों की एक गोष्ठी आयोजित की गई थी । जिस में डॉक्टर झा को मुख्य अतिथि बनाया गया था । उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और आयोजकों से कहा कि वे निर्धारित समय यानी 6 बजे से आधा घंटा पहले किसी को उनके निवास स्थान पर भेज दें । डॉक्टर झा 5.30 बजे तैयार हो कर बैठ गए । लेकिन उनको लेने आने वाले सज्जन 6 बजे के बाद आए। आते ही वह क्षमा मांगने लगे । डॉक्टर झा ने गोष्ठी में जाने से इन्कार कर दिया । सज्जन बहुत गिड़गिड़ाए कि आपके बिना हमारी गोष्ठी असफल हो जाएगी । उन्होंने नम्रता से जवाब दिया,''आपकी गोष्ठी असफल होने का मुझे खेद है । पर देर से जाकर मुझे लेट लतीफ कहलाना स्वीकार नहीं है।

बुधवार, 19 मई 2010

भोजन का मूल्य

स्वतन्त्रता से पहले सौराष्ट्र में ढसा राज्य के राजा थे गोपालदास देसाई । वह जवानी के दिनों में बड़े ठाट-बाट से रहते थे । एक बार वह कहीं गए । स्टेशन पर उन्हें कोई कुली नजर नहीं आया । इतने में एक किसान सा लगने वाला आदमी उनके पास और सामान ले जाकर गाड़ी पर रख दिया । गोपालदास ने उसे चवन्नी दी तो उसने लेने से इन्कार कर दिया ।
उन्होंने कुछ सोच कर कहा, ''एक समय का भोजन कितने पैसों में मिलेगा?'' उसने जवाब दिया,''तब तो मेरी मजदूरी दो अरब इकन्नियां हैं क्योंकि मुझे 40 करोड़ मनुष्यों के भोजन का इंतजाम करना है ।'' यह कहकर वह चला गया । उसी दिन शाम को गोपालदास घूमते हुए एक विशाल सभा में जा पहुंचे, उन्होंने देखा कि वही आदमी जनता को संबोधित कर रहा है । वह और कोई नहीं गांधी जी थे । गोपालदास ने उसी समय राजगद्दी को त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े ।

सोमवार, 17 मई 2010

कर्णधार

एक बार पंडित नेहरू से मिलने के लिए एक देश का राजदूत, एक सैनिक और एक नवयुवक आया । उन्होंने सचिव से कहा कि वह पहले नवयुवक, फिर सैनिक और सब से आखिर में राजदूत को भेजें। जब वे तीनों मिलकर चले गए । तब सचिव ने पंडित नेहरू से पूछा, ''आपने राजदूत और सैनिक से पहले नवयुवक को क्यों बुलाया, जबकि नवयुवक से पहले उन दोनों ने अनुमति मांगी थी ?'' नेहरू जी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, नवयुवक ही देश के कर्णधार हैं। वही बड़े होकर सैनिक बनेंगे और वही युवक विदेशों से संबंध बनाएंगे । चूंकि दो देशों के बीच संबंध उनके नागरिकों की भावनाओं के आधार पर बनते हैं । इसलिए मैंने युवक को राजदूत और सैनिक से पहले बुलाया ।''

रविवार, 16 मई 2010

ब्लॉग संचार

हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रचार और प्रसार के लिए हम सभी के द्वारा प्रयासों की आवश्यकता है। क्योंकि विश्व स्तर पर तथा ब्लॉग जगत में हिन्दी का स्थान अभी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। एतदर्थ हिन्दी ब्लॉग टिप्स के सुझाव के अनुसार एक ब्लॉग एग्रीगेटर बनाया है ‘‘ब्लॉग संचार’’ आपसे अनुरोध है कि अपने ब्लॉग को यहां शामिल करें और दूसरों को भी शामिल करने के लिए कहें।

शुक्रवार, 14 मई 2010

सिफारिश

इंग्लैण्ड के एक मंत्री के निवास पर एक सिपाही रात को गश्त लगा रहा था मंत्री की पत्नी को उसके जूतों की आवाज के कारण नींद नहीं रही थी आखिर, उन्होंने अपने पति से इसकी शिकायत की मंत्री ने सिपाही को बुला कर कहा, ''कोठी के सामने गश्त मत लगाओ, नींद में बाधा पड़ती है '' सिपाही ने जवाब दिया, ''लेकिन मेरे अफसर ने मुझे यही आज्ञा दी है ''
''क्या तुम मेरी भी नहीं मानोगे ?'' सिपाही ने इन्कार कर दिया अगले दिन सिपाही ने यह सोच कर अपना सामान बांध लिया कि अब उसकी नौकरी नहीं रहेगी लेकिन तब उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उसके अफसर ने कर सूचना दी कि मंत्री महोदय ने उसकी तरक्की के लिए सिफारिश की है

मंगलवार, 11 मई 2010

अभिमान

जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तो उसी दौरान उसकी मुलाकात एक साधु से हुई थी । जब सिकंदर उसके पास पहुंचा तो वह धूप का आनंद ले रहा था । साधु की बातचीत से प्रभावित हो कर सिकंदर ने पूछा,''महाराज, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?'' उसने कहा,''तुरंत यहां से चले जाओ ।''
सिकंदर को ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । वह क्रोधित होकर बोला, ''क्या आप जानते हैं कि मैं वह सिकंदर हूं, जो कुछ भी कर सकता है।'' साधु ने शांत भाव से कहा,''यदि ऐसा है तो मुझे मार कर फिर से जिंदा कर दो।'' साधु की यह बात सुनकर सिकंदर का सिर शर्म से झुक गया ।

सोमवार, 3 मई 2010

शब्दों का असर

बगदाद के खलीफा का एक गुलाम था हाशम । वह बहुत बदसूरत था । सब गुलाम उसका मजाक उड़ाया करते थे । एक बार खलीफा अपने बहुत सारे गुलामों के साथ बग्घी में जा रहे थे । एक जगह कीचड़ में उनका घोड़ा फिसल गया । खलीफा के हाथ में पकड़े हीरे-मोतियों की पेटी गिर कर खुल गई। खलीपफा ने गुलामों से कहा,'' ल्दी से हीरे-मोती बीन लो । सब को इनाम दिया जाएगा ।''
सुनकर सारे गुलाम हीरे-मोती बटोरने के लिए दौड़ पड़े । सिर्फ हाशम खड़ा रहा । खलीफा ने कहा, ''तुम क्यों नहीं जाते?'' उसने कहा, '' से कीमती हीरा तो आप हैं, मैं आप को छोड़कर क्यों जाऊं ?'' खलीफा उससे बहुत खुश हुए और उसी वक्त उसे आजाद कर दिया ।

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

उपहार

एक बार राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की पुत्री उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आई । साथ में उसका पुत्र भी था । कुछ देर राष्ट्रपति भवन में अपने माता-पिता के साथ ठहरने के पश्चात् जब वह विदा होने लगी तो बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी नाती को एक रूपया दिया । नाना के इस उपहार पर बाबू राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी को बड़ा आश्चर्य हुआ । वह बोल पड़ी, ''आप इतने बड़े पद पर हैं, फिर भी अपने नाती को केवल यह तुच्छ उपहार दे रहे हैं।''
पत्नी की बात सुन कर राजेन्द्र प्रसाद बड़े सहज भाव से बोले, ''मैंने तो इसे एक रूपया दे दिया, लेकिन जितनी मेरी तनख्वाह है और जितने पूरे भारत में बच्चे हैं, अगर मैं सभी का एक-एक रूपया दूं तो क्या मेरी तनख्वाह से यह सब पूरा पड़ पाएगा?'' उनके इस विषय से उनकी पत्नी एकदम निरूत्तर हो गई और बेटी ने प्रसन्नतापूर्वक विदाई ली ।

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

गहरी नींद

गहरी नींद में सोते हुए नेपोलियन को उस के सेनापति ने मध्य रात्रि में जगाया और दक्षिणी मोरचे पर शत्रु द्वारा अचानक हमला किए जाने की खबर दी, नेपोलियन आंखें मलते हुए उठा और दीवार पर टंगे 34 नंबर के नकशे को उतारते हुए बोला, इस में बताए हुए तरीके के अनुसार काम करो।
सेनतापति चकित रह गया कि जिस हमले का उसे अनुमान तक न था, उस हमले की संभावना को नेपोलियन ने समय से पूर्व ही कैसे सोच लिया और कैसे उस का प्रतिकाल खोल लिया, सेनापति को आश्चर्यचकित देख कर नेपोलियन ने कहा, ''विचारशील लोग अच्छी से अच्छी आशा करते हैं, किन्तु बुरी से बुरी परिस्थिति के लिए भी तैयार रहते हैं, मेरी मनः स्थिति सदा ऐसी ही रही है, इसलिए मुझे विपति आने से पहले ही उस का अनुमान लगाने और उपाय सोचने में संकोच नहीं होता ।

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

उदारता

एक बार इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री लायड जार्ज सभा में अपने मंत्रिमंडल के कार्यों की तारीफ कर रहे थे । तभी एक विरोधी ने खड़े होकर जार्ज से कहा, ''आप तो शायद वहीं हैं, जिस के पिता गधे की गाड़ी चलाया करते थे ।''यह सुनकर सब हंसने लगे। तब जार्ज ने शांत स्वर में कहा,''दोस्तों, मेरे पिता वाकई गधे की गाड़ी चलाया करते होंगे । पर वह गाड़ी तो अब नहीं हैं । हां, यह गधा जरूर बच गया है ।'' इस पर पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा ।

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

अक्लमंद

सम्राट जहांगीर अपने इन्साफ के लिए बहुत मशहूर थे । एक बार उनका नौकर उनके निकट खड़ा होकर गिलास में शराब डाल रहा था कि पता नहीं कैसे एक बूंद जहांगीर पर गिर गई । जहांगीर को बहुत गुस्सा आया । उसी आवेश में उसने नौकर का सिर काटने का आदेश दे दिया ।
नौकर ने यह आदेश सुनकर पूरा गिलास जहांगीर पर उड़ेल दिया । अब तो वह और भी क्रोधित हो गया और बोला,'' तुमने इतनी हिम्मत कैसे की?'' नौकर ने शांत स्वर में कहा, जहांपनाहा, आप अपने इंसाफ के लिए बहुत मशहूर हैं । मैं नहीं चाहता कि लोग आरोप लगाएं कि एक बूंद शराब के लिए बादशाह ने सिर काटने का हुक्म दे दिया । मैं आपके इन्साफ पर दाग नहीं लगने देना चाहता । इसलिए मैंने यह गुस्ताखी की।'' जहांगीर नौकर की अक्लमंदी पर दंग रह गया । उसने उसे बहुत-सा इनाम दिया और अपने विश्वासपात्रों में शमिल कर लिया ।

मंगलवार, 9 मार्च 2010

देश प्रेम

एक बार सरदार किशन सिंह ने अपने खेत में आम के कुछ पौधे लगाए थे। एक दिन वह अपने 3-4 साल के लड़के को साथ लेकर पौधों का मुआयना कर रहे थे । लड़का वहीं खेलने लगा । खेलते-खेलते उसने मिट्टी में कुछ गाड़ा और 2-4 पौधे खड़े कर दिए । यह देख कर पिता ने पूछा, ''यह क्या कर रहे हो ?'' बेटे ने जवाब दिया,'' बदूकें बो रहा हूं, जब ये आप के आमों की तरह बड़ी हो जाएंगी तो इनसे अंग्रेंजो को मारूंगा ।''
यही बालक बाद में सरदार भगत सिंह बना, जिसने अपने जीते जी कभी अंग्रेंजो को चैन से नहीं सोने दिया ।

अपराध

मुगल बादशाह बहादुरशाह जफ़र अंग्रेजों की कैद में अपने जीवन के अंतिम दिन बड़े कष्ट से बिता रहे थे । एक बार एक व्यक्ति उनसे मिलने आया। उसने बादशाह से कहा, ''आप को जो कष्ट दिए जा रहे हैं, आप उसकी शिकायत क्यों नहीं करते ?''
उन्होंने दुःख भरे स्वर में जवाब दिया, ''मेरी यही सजा है क्योंकि बादशाह होने के नाते में देश का पहरेदार था । फिर भी मैं आराम की नींद सोता रहा । समय रहते न तो मैं जागा और न ही दुश्मन को ललकारा, इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है ?''

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

गुलाल ऎसे लगाते हैं

होली पर विशेष
होली का दिन था लाल बहादुर शास्त्री जी के निवास पर होली मनाने के लिए अनेक लोग आए थे।सब ओर प्रसन्नता का माहौल था शास्त्री जी सभी से बडे़ स्नेह से मिल रहे थे। इस भीड़-भाड़ से कुछ दूर एक कोने में उनका जमादार भी हाथ में गुलाल लिए खडा़ था पर आगे बढकर शास्त्री जी को गुलाल लगाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी । सभी लोग उसकी तरफ उपेक्षा की नज़र से देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह निराश होकर हीन भावना के साथ वापस लौटने लगा तो तभी शास्त्री जी की नज़र उस पर पड़ी । वे लपक कर उस ओर गए और उसे रोककर बोले,''अरे कहां जा रहे हो? होली पर तुम्हें इतनी आसानी से नहीं जाने दिया जायेगा।'' ऎसा कह उन्होंने हाथ में लिया हुआ सारा गुलाल उसके गालों पर मल दिया ।
रंगोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

शुद्धता

एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरीका की यात्रा से स्वदेश लौट रहे थे। उनके प्रशंसक बंदरगाह पर उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही स्वामी जी बंदरगाह पर उतरे तो उतरते ही वे रज में लोटने लगे। उनके प्रशंसकों ने उन्हें मिट्टी में इस प्रकार लोटते हुए देखा तो वे हैरान रह गए। बाद में जब उन्होंने स्वामी जी से इस संदर्भ में पूछा तो वे बोले,‘‘ मैं पिछले दिनों विदेश में था और अशुद्ध हो गया था इसलिए मातृभूमि की रज में लोट कर शुद्ध हो रहा था।’’

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

शिक्षा

एक बार एक लड़का स्कूल से शिक्षक का एक पत्र आया, जिसमें लिखा था ‘आप का बेटा मंद बुद्धि है । इसे पढ़ाना व्यर्थ है । अच्छा होगा कि आप इसे स्कूल से हटा लें ।’ मां ने यह पत्र पढ़ा । उसकी आंखों में आंसू आ गए । फिर भी उसने अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,''भले ही स्कूल वाले तुम्हें न पढ़ाएं, लेकिन मैं तुम्हें पढ़ाऊंगी ।'' आखिरकार एक दिन मां की मेहनत रंग लाई और बड़ा होकर उसका बेटा विश्व का महान् वैज्ञानिक बना । उसका नाम था टामस अलवा एडीसन (1847-1931) जिस ने बल्ब का ही नहीं और भी सैकड़ों आविष्कार करके घर-घर में विज्ञान की रोशनी फैला दी ।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

कर्त्तव्य-परायणता

बात उन दिनों की है, जब बगदाद में खलीफा उमर थे । वह जितने इन्साफ पसंद, नेक-दिल थे, उतने ही अनुशासन प्रिय और कर्त्तव्य-परायण भी । उन्होंने शराबियों की शराब की लत छुड़ाने के लिए घोषणा की, यदि कोई व्यक्ति शराब पीता हुआ या पीये हुए पकड़ा गया तो उसे भरे दरबार में 25 कोड़े लगाए जाऐंगे । यह सुन कर शराबी घबरा गए। उन्होंने इस ऐलान की सच्चाई जानने के लिए खलीफा के पुत्र को शराब पिला कर बाजार में छोड़ दिया । उसे तुरंत दरबार में पेश किया गया । दरबारियों के समझाने के बावजूद खलीफा ने आज्ञा दी, ''अपराधी की नंगी पीठ पर 25 कोड़े लगाए जाएं ।'' इतने कोड़े खाने पर उनका पुत्र बेहोश होकर गिर पड़ा और उसने वहीं दम तोड़ दिया।

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

पक्षपात

उस समय लाल बहादुर शास्त्री गृह मंत्री थे एक बार उन्होंने इलाहाबाद स्थित अपना निवास स्थान इसलिए खाली कर दिया क्योंकि मकान मालिक को उसकी आवश्यकता थी उन्होंने किराए पर दूसरा मकान लेने के लिए आवेदन पत्र भरा। काफी समय हो गया लेकिन लाल बहादुर शास्त्री को मकान नहीं मिल सका। लाल बहादुर शास्त्री के मित्रों ने अधिकारियों से पूछताछ की अधिकारियों ने बताया,''शास्त्री जी का कड़ा आदेश है कि जिस क्रम में उनका आवेदन पत्र दर्ज है उसी क्रम के अनुसार मकान दिए जाएं कोई पक्षपात किया जाए। '' यह सच था और उनसे पहले 176 आवेदकों के नाम दर्ज थे

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

उत्तम

देश के सुप्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर को बनावटीपन बिल्कुल पंसद नहीं था। जो चीज सीधी और सरल होती थी, उन्हें अच्छी लगती थी । एक बार उनकी पुत्री की शादी हुई । विदाई के समय उसे बिना साज श्रृंगार के ले जाने लगे । उनके संबंधी उनकी निन्दा करने लगे । इस पर उन्होंने सरलता से उत्तर दिया,''जिस सम्मान को पाने के लिए अच्छी वेशभूषा होना जरूरी हो, उस सम्मान को न पाना ही उत्तम है।''


रविवार, 31 जनवरी 2010

इंसानियत

यह घटना उन दिनों की है, जब लालबहादुर शास्त्री हमारे प्रधानमन्त्री थे । एक दिन वह अपनी पत्नी ललिता शास्त्री के साथ एक साड़ी के कारखाने का दौरा करने गए । उनकी पत्नी को कुछ साड़ियां पंसद आईं । शास्त्री जी ने उन्हें बांधने को कहा और पैसे देने लगे । लेकिन मालिक ने पैसे लेने से इन्कार कर दिया । तब शास्त्री जी ने कहा, ''आज मैं प्रधानमंत्री हूं, इसलिए मुझे इतनी मूल्यवान साड़ियां मुफ्त में दे रहे हो, लेकिन जब मैं प्रधानमंत्री नहीं रहूंगा, तब भी क्या ऐसी साड़ियां आप मुझे मुफ्त दे सकेंगे?'' यह सुन कर मिल मालिक कुछ न बोल सका । उसने चुपचाप पैसे ले लिए ।

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

विद्वता

एक बार स्वामी विवेकानंद काशी में थे । वहां उनकी विद्वता की चर्चा बहुत फैल गई थी । अनेक लोगों ने उनसे अनेक कठिन प्रश्न किए थे । जिन का जवाब उन्होंने ऐसा दिया कि सब ने उनकी विद्वता का लोहा मान लिया था। एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, ''संत कबीर दास जी ने दाढ़ी क्यों रखी थी।'' स्वामी जी ने उत्तर दिया, ''भाई, अगर वह दाढ़ी नहीं रखते तो आप पूछते कि कबीर दास जी ने दाढ़ी क्यों नहीं रखी ।'' यह जवाब सुनकर वह व्यक्ति लज्जित होकर चुपचाप वहां से खिसक गया ।

सोमवार, 25 जनवरी 2010

संत

स्वामी दयानंद का एक शिष्य नाई था । एक बार वह स्वामी दयानंद के लिए अपने घर से भोजन लाया । स्वामी दयानंद ने उसे बड़े चाव से खा लिया। उनका दूसरा शिष्य उस घटना को देख रहा था । उसने स्वामी दयानंद से कहा,'' स्वामी जी, आप ने यह क्या किया ? आपने आज नाई की रोटी खा ली ।'' इस बात पर स्वामी दयानंद खिलखिला कर हँसने लगे । शिष्य बोला,''हाराज, क्षमा करें । यदि कोई धृष्टता गई हो क्षमा करें |'' स्वामी दयानंद बोले, ''त्स, रोटी तो गेहूं की थी, नाई की नहीं।'' यह सुन कर शिष्य निरुतर हो गया|

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

पेट

एक सज्जन के बहुत आग्रह पर प्रसिद्ध साहित्यकार बर्नाडे शा ने उन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया । लेकिन शा ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह मांसाहारियों के साथ भोजन नहीं खा पाएंगे । सज्जन ने उनकी पंसद का ध्यान रखने का आश्वासन दिया था । भोज वाले दिन शा शाकाहारी मेज पर रखे सलाद को खाने लगे । एक मांसाहारी सज्जन ने उस पर चोट करते हुए कहा, ''आप घास-फूस क्यों खा रहे हैं मुर्गा खाइए ना।'' शा ने जवाब दिया, ''जनाब मेरा पेट कोई कब्रिस्तान नहीं है कि मैं उसमें मुरदे डालता रहूं।''यह जवाब सुनकर वह निरुतर हो गया।

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

जाति

गांधीवादी नेता आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी ट्रेन में सफर कर रहे थे, उसमें एक महिला व एक पुरुष यात्री भी था । वे आचार्य कृपलानी को नहीं पहचानते थे । बातों ही बातों में उन्होंने उनसे पूछा, ''आप किस जाति के हैं?'' प्रश्न सुनकर कृपलानी तत्काल बोले, '' मैं तो कई जातियों का हूं।'' यह सुन कर लोग आश्चर्य में पड़ गए । एक बोला, ''वह कैसे?'' इस पर आचार्य कृपलानी बोले, ''जब मैं सुबह अपना जूता साफ करता हूं तब शूद्र हो जाता हूं, महाविद्यालय में पढ़ाने जाता हूं तो ब्राह्मण हो जाता हूं, वेतन का हिसाब करता हूं तो बनिया हो जाता हूं । अब आप ही बताइए मेरी क्या जाति है?'' आचार्य कृपलानी का यह उत्तर सुन कर उन यात्रियों को लज्जित हो जाना पड़ा ।

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

बराबर

फ्रांस के राजा हैनरी चतुर्थ एक दिन अपने अंगरक्षक के साथ घोड़े पर सवार होकर घूमने निकले । रास्ते में एक भिखारी ने राजा को अपनी टोपी उतार कर सलाम किया । जवाब में राजा ने भी अपनी टोपी उतार कर सलाम किया । अंगरक्षक ने कहा,'' क्षमा कीजिए, क्या यह ठीक है कि इतना बड़ा राजा अपनी टोपी उतार कर एक भिखारी को सलाम करें ?'' राजा ने कहा, ''भाई, अगर मैं सलाम न करता तो मेरा मन मुझे धिक्कारता की फ्रांस का राजा एक भिखारी के बराबर भी सभ्य नहीं है।''

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

नसीहत

टामस अलवा एडिसन अमरीका के प्रख्यात आविष्कारक थे । एक बार उनसे मिलने गई एक स्त्री ने उन्हें एक कागज पर अपने पुत्र के लिए कोई नसीहत लिखने को कहा । एडिसन ने कागज पर लिखा, ''काम के समय कभी भी घड़ी मत देखा करो।''

शनिवार, 9 जनवरी 2010

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा

रास बिहारी बोस का नाम कौन नहीं जानता । भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से अनन्य रूप से जुड़े रासबिहारी बोस उन दिनों जापान में निर्वासित जीवन बिता रहे थे । जापान में दक्षिण पश्चिम की ओर मुंह करके सोना अच्छा नहीं माना जाता है । किन्तु रासबिहारी बोस जितने दिन भी जापान में रहे, सदा दक्षिण पश्चिम दिशा में मुंह करके सोते रहे । जब उनके जापानी मित्रों ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया, ''भाई, तुम्हारे देश के दक्षिण पश्चिम की दिशा में ही तो मेरी मातृभूमि भारतवर्ष है । इस दिशा में मुंह करके सोने में मुझे यों लगता है, जैसे मैं रात भर अपनी मां की गोद में सोया हूं । जागते में तो अपनी प्यारी मातृभूमि को पा नहीं सकता, किन्तु यों सोते में तो पा लेता हूं ।'' उनकी बात सुनकर सभी मित्र मातृभूमि के प्रति उनकी श्रद्धा की भूरि-भूरि प्रशंसा किए बिना न रहे सके ।